अपने अपनों में ऐसी फिर लड़ाई न् हो,
दोनों की ऐसी फिर जग हसाई न् हो,
कुछ दूरियां हम दोनों में है मानता हूं मैं
इसका ये मतलब नहीं की हम भाई न् हो,
एक कदम हम बढ़ाये तो एक तुम बढ़ाओ
कोशिश करो की किसी की रुसवाई न् हो
खुब् लड़ेंगे हम खूब झगड़ेगे फिर से
मगर दिल से भावनाएं पराई न् हो
गलत तुम भी नहीं, गलत हम भी नहीं,
बस गलती हमने अपनी छुपाई न् हो
हम दो पाटों में पीस रहे है कुछ अपने
कोशिश करे की फिर उनकी ये पिसाई न् हो,
बस इतने दूर न् निकल जाए कभी
की आइंदा मिले तो नजरो की मिलाई न् हो
किस काम की है सामाजिकता अपनी
अगर इसमें अपनों की ही भलाई न् हो...
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