भक्तो की भूमि है भारत , भय से ये फिर ये व्याप्त न् हो,
रक्त रंजित रहा चुका है पहले भी अतीत ,फिर यह रक्तपात न् हो,
भगवा हरा अब एक हो इस बात माँ उद्गघोष हो,
कुछ नहीं बदलेगा जब तक तिरंगा आत्मसात न् हो,
मंदिरों में जल चढ़ाया ,मस्जिदों में चादरे चढ़ई
व्यर्थ है जब तक की भूखे को भोजन प्राप्त न् हो,
व्यर्थ ये नवरात्रि के व्रत व्यर्थ व्यर्थ ये रोजा नमाज,
जब तक की हृदय की कामाग्नि में शांति पर्याप्त न् हो,
ॐ, अल्लाह,नानक जीजस, ये सब भी एक ही है,
इनके नाम पर मेरे देश में कुछ फसाद न् हो,
आइये मिल के सब ये सौगंध खाये,
बंद हो ये झगड़ा, राम और रहीम में उत्पात न् हो,
सब सियासी दावपेच है,ये कब संजहेंगे हम
मुझको दिखाओ वो धर्मग्रंथ जिसमे एकता की बात न् हो,
मंदिर मस्जिडे खड़ी होने लगे रक्त की बुनियादों पे,
इस से ज्यादा डूब मरने की भला और बात क्या हो
बन सको तो सूर्य और चंद्रमा सा बनो ,
जिसमे कोई धर्म का पक्षपात न् हो
कोई जो पूछे की तो बस इंसानियत बताना
इंसानियत हो धर्म अपना और कोई जात न हो,
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