हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
इस ब्लॉग में आपको व्यक्तित्व विकास से रिलेटेड लेख मिलेंगे, किसी भीछूती बड़ी बात का आपके जीवन में क्या प्रभाव पड़ेगा मैं उस पर लिखता हूँ, मैं अपनेआप में छुपे हुए काबिलियत और हुनर को कैसे पहचाना जाए उस पर लिखता हूं,आप सभी को उन चीजों को समझाने के लिए लिखता हूँ जो आप रोज देखते है, मगर महसूस नहीं करते, मैं आम आदमी की सोच लिखता हूं,बहुत कुछ आपकी सोच... मेरे ब्लॉग पर आप सभी की प्रतिक्रियायों की प्रतीक्षा में - विकाश खेमका,
Thursday, 20 October 2016
दुष्यंत कुमार की मेरे पसंदीदा कविता
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