Sunday, 30 October 2016

सबक होशियारी का दुकानों में नहीं मिलता

सुकून घर में होता है "मकानो" में नहीं मिलता,
सबक होशियारी का दुकानों में नहीं मिलता,

शाम होते ही परिंदे वापस लौट आते है
जो सुकून जमी में है आसमानों में नहीं मिलता,

बरकत होती है माँ बाप की दुआओं में बहुत
वो मंदिर की घंटियों और मस्जिद की अजानो में नहीं मिलता,

हर किसी की किस्मत में राख  होना लिखा है एक दिन,
फर्क अमिरी - गरीबी का शमसानों में नहीं मिलता,

जो मिल गया उसका शुक्रिया अदा करना
जो हमको मिला कई इंसानों को नहीं मिलता..

एक दिया उनके लिये भी जो वापस घर ना आये,
मेरे देश में ये सम्मान क्यों जवानों को नहीं मिलता,

चलो दिवाली मनाते है..

त्यौहारों की खुशियां खो गई है कंही
चलो आज उन्हें थोड़ा ढूंढ लाते है

इस समझदार दिवाली में कोई आनंद नहीं
चलो फिर से बचपन की वो दिवाली मनाते है...

अन्धेरा बाकी न् रहे कंही,न् घर में, न् नगर में
चलो कोने कोने म आज ें दिए जलाते है,

साल भर जमा किया है दिल में शिकायतों का जो जाला
चलो आज दिवाली में उन जालो को हटाते है..

एक अरसा हो गया उनसे मिले जो जिंदगी हुआ करते थे,
चलो आज एक बार फिर उनसे मिल आते है,

वजह तो उदासियों  के लिए चाहिए
चलो आज बेवजह मुस्कुराते है,

बहुत दिल जलाया है हमने अपने अपनों का
चलो उनके साथ आज फिर दिए जलाते है

इन पटाखों के शोर में कंही खो न जाये
चलो खुशियो की एक फुलझड़ी जलाते है

बहुत हो गया ये msg ये व्हात्सप्प
चलो हम खुद से रूबरू हो जाते है

घर के साथ दिलो को रोशन करे.
आओ मिलजुल कर ये दिवाली मनाते है..

गृहणी के जीवन में कोई इतवार नहीं

कोई छुट्टी नहीं कोई छुट्टी का इंतजार नहीं,
कभी चैन नहीं कभी करार नहीं,
हर त्यौहारों में देखा है,
किस्सा कोई एक बार नहीं,
छुट्टियां हमारी उनका काम बढ़ा देती है,
गृहणी के जीवन में कोई इतवार नहीं

होली में बड़कुलिये बनाना,
और घर को रंगों से बचाना,
विधिवत पूजा कर के
सबके लिए भोजन बनाना,
रंगो का त्योव्हार है होली,
उसमे भी बेरंग रह जाना,
क्या हम इसके जिम्मेदार नहीं,
गृहणी के जीवन में कोई इतवार नही,

दीपवाली में साफ सफाई,
घर में चमक उसी से आयी,
पुरे घर को इतना सजाया,
घर का कोना कोना चमकाया,
कभी है पूजा कभी मिठाई
सारा दिन बस भागम भगाई
मैं तो इतने चैन से सोया
क्या ये उसका त्योव्हार नहीं,
गृहणी के जीवन में कोई इतवार नहीं,

वो उत्सवों में तैयारियो में व्यस्त है,
और हम अपने आप में मस्त है
हम उस पर अपना हुकुम चलाते है
उसकी ज़रा सी गलती पर चीखते चिल्लाते है,
जिससे है हमारे जीवन में खुशियां
क्या उसका ही खुशियो पर अधिकार नहीं,
गृहणी के जीवन में कोई इतवार नहीं,

सक्रांति के दिन हो या पावन नवरात्र हो,
या तीज ,सावन, राखी की कोई  बात हो
किसी का जन्म दिन हो कोई खुसी की बात हो,
कोई शादी सगाई कोई भेट सौगात हो,
भूखे रहकर भी निभाती वो अपनी जिम्मेदारियां
होई का दिन हो वो करवा चौथ की रात हो,
हमारी खुशियो के अलावा किसी से और सरोकार नहीं
गृहणी तुझे शतशत प्रणाम ,
गृहणी के जीवन में कोई इतवार नहीं,कोई इतवार नही

मैं कविताएं अपने हालात पर लिखता हूं...

मेरी साथ गुजरी हर बात लिखता है
मैं कविताएं अपने हालात पर लिखता हूं
सिर्फ अल्फाज पढोगे तो समझ न पाओगे,
मैं मेरे शब्द मेरे जज्बात पर लिखता हूं,
          मैं कविताएं अपने हालात पर लिखता हूं,...

माना कि औरो से कुछ अलग है,जुदा है
मगर में अपने जीने के अंदाज पर लिखता हूं,
जिन्होंने खुब् निभाया उनका बहुत शुक्रिया
जिन्होंने ना निभाया उनके साथ पर लिखता हूं
          मैं कविताएं अपने हालात पर लिखता हूं,...

जब से सुना की सच कड़वा है बहुत
मैं झूठ की बिसात पर लिखता हूं
मुझे मालूम है कि मेरी पहुच क्या है
मैं अक्सर अपनी औकात पर लिखता हूं
         मैं कविताएं अपने हालात पर लिखता हूं,...

दिन में मेरे साथ साया बन कर खूब रहते है,
इसलिए मैं तन्हाईयो की रात पर लिखता हूं
कोई शौक,कोई हालात कोई मज़बूरी कहता है
मैं खुद को बयां करने को हर बात पर लिखता हूं,
                   मैं कविताएं अपने हालात पर लिखता हूं,...

खुद् में ही छुपा है जो तरक्की का रास्ता
अक्सर उस रास्ते की तलाश पर लिखता हूं,
अब तक छिपा है ये हुनर कभी छप भी जाए,
आज कल बस इसी ताक में लिखता हूं
                    मैं कविताएं अपने हालात पर लिखता हूं,...

कुछ गलत महसूस हो तो बदलना चाहिए
बस बुलंद करने को इसी आवाज पर लिखता हूं,
बहुत कुछ है जो बया नहीं हो पाता..
मैं अक्सर इसी भड़ास पर लिखता है..
                      मैं कविताएं अपने हालात पर लिखता हूं,...
                      मैं कविताएं अपने हालात पर लिखता हूं...

Tuesday, 25 October 2016

मेरा नगर-अव्यवस्था से जूझता..

मेरे काटाबाँजी के क्या बताऊँ हालत क्या है??
सरकारी नजरो में मेरे शहर की औकात क्या है??

750 एकड़ जगह है रेलवे की मगर इसकी कोई कदर नहीं,
कोई रेलवे की इंडस्ट्री नहीं, नयी ट्रेनो की फ़िकर नहीं,
कई मेट्रो शहरो के लिए कोई यहाँ ट्रैन प्रयाप्त नहीं,
स्टेशन में यात्रियों को सही सुरक्षा प्राप्त नहीं,

बिजली का मेरे नगर में कितना बुरा है हाल है,
गर्मी में तो जीना हो जाता मुहाल है,
वोल्टाज़् इतना की पंखे बड़े मुश्किल से हिलते है
ऑफिस में बस "ग्रिड बनेगा" के झूठे आश्वाशन मिलते है,

छात्रों के भविष्य का यहाँ कोई लेता संज्ञान नहीं
एक पुराने कालेज के अलावा कोई ढंग का शिक्षण संस्थान नहीं,
न् संगीत, न् खेल , कला का कोई स्कुल है
अब क्या ये भी जानता की भूल है

एक सरकारी अस्पताल है जिसमे स्टाफ की भारी कमी है,
अस्पताल की दिवारी यहाँ अवस्यस्था से सनी है,
कोई टैक्निनिकी सहायता नहीं,कोई सुरक्षा गॉर्ड नहीं,
ब्लड बैंक में ब्लड नहीं, मरीजो के किये वार्ड नहीं,
जरुरी मशीन नहीं निशुल्क दवाई नहीं,
इतनी अपील की मगर इसकी कोई सुनवाई नहीं,

मेरे कृषक प्रधान गाँव में खेती के संसाधन नही,
व्यपार को बढ़ाने के लिए कोई सरकारी साधन नहीं,
कोई बड़ी इंडस्ट्री नहीं, कोई सरकारी वेतन नहीं,
इतने बड़े इलाके में कोई जलसेचैन नहीं,
पलायन की समस्या का कोई स्थायी निदान नहीं,
इतनी लिखा पढ़ी हुई पर सरकार को इसका ज्ञान नहीं

कहने को एन ए सी है मगर कोई प्रयास नहीं,
70 सालकी आजादी में अब तक कोई विकास नहीं,
साउंड बजाने की छोटी सी अनुमति भी टिटलागढ़ से मिलती है,
इतने बड़े नगर में सुविधाओं की कमी बहुत खलती है,

मांगने से नहीं मिलेगा हक़ के लिए लड़ना होगा,
अपने नगर की खातिर हमको प्रसासन से भिड़ना होगा,
अपने नगर की खातिर आओ हम हड़ताल करे
हक़ हमारा सहुपा कहा है इसकी हम पड़ताल करे,

हम अमनपसंद नागरिक है हमारा किसी से बैर नहीं,
यु ही हमें सताया तो फिर  " बलांगीर" "भुवनेश्वर"की खैर नहीं
बहुत हुआ समझाना करना अब बंद ये करुण वंदन होगा,
इस सोए कुम्भकार्णो को जगाने अब तो आंदोलन होगा..
अब तो आंदोलन होगा...अब तो आंदोलन होगा.....

बिना लक्ष्मी जी के सरस्वती जी का दरबार नहीं लगता


बिना मरे किसी को जन्नत का दीदार नहीं मिलता
सिर्फ सच बोल कर किसी का व्यापार नहीं चलता

छोटी छोटी बाते समझाना है बड़प्पन
बड़ी बड़ी बातें कह देने से कोई होशियार लगता

कुंछः कमियां भी जरूरी है जिंदगी के लिए
सब कुछ पाकर जीवन गुलजार नहीं लगता

खुशियो बात कर देखिये उत्सवों का रंग कितना बढ़ता है
सिर्फ अपना घर सजा लेने से त्योव्हार,त्योव्हार नहीं लगता

हुनर वही अच्छा जो धन में बदला जा सके..आजकल
बिना लष्मीजी के सरस्वाति का दरबार नहीं लगता

एक भरोसा था जो तुमने खो दिया है अपने झूठ से
भरोसा स्टिकर सा है एक बार उतर जाए तो बार बार नहीं लगता,

कभी हंस कर,कभी मुस्कुरा कर,कभी गुनगुना कर मिला,
मैं इस तरह से मिला लोगो से की अब मैं बीमार नहीं लगता,

ये जरुरी है कि अपना अहम् झुका लिया जाए
सिर्फ सर झुका देने से पववरदीगार नहीं मिलता,

सिर्फ लहजा बदल कर बोलने से ही टूट जाते है
दिल तोड़ने के लिए  कोई हथियार नहीं लगता,

छुरी , चाकु, बंदूकों ने कबुल की अपनी शिकस्त
की उनका वार "शब्दो" सा धारदार नहीं लगता

शुक्रिया कैसे अदा करूँ तेरा ये ए "स्वार्थ"
तू नहीं होता तो कोई मेरा यार नहीं लगता

वो गिरे, फिर उठे,फिर गिरे,फिर उठ कर चलने लगे
जिसने हिम्मत खो दी उन्हें सफलता का संसार नहीं मिलता,

मरने से पहले कुछ अच्छे करम कर लेना,
सूना है वहां कोई सिफारशी पत्राचार नहीं चलता

Sunday, 23 October 2016

मेरे हिन्दुतान से सीखिए

चार दिन की जिंदगी है ज़रा ध्यान से सीखिए
जिंदगी कैसी हो गीता के ज्ञान से सीखिए,

भाई का प्रेम क्या है भरत के किरदार से सिखये
धैर्य क्या है शबरी के इंतेजार से सिखये,
जीवन को एक आदर्श कैसे बनाया जाए
पिता के वचन निभाने वाले श्री राम से सीखिए

अर्जुन के लक्ष्य भेद से,कंर्ण के दान से सीखिए
एकलव्य के गुरु को दिए मान से सीखिए
युधिष्ठिर के सत्य के ज्ञान से सिखये,
मित्रता श्री् कृण्ण के सुदामा को दिए सम्मान से सिखये
सत्ता की की चाहते में कितना रक्तपात होता है
इसे कभी महाभारत के परिणाम से सिखये,

राजनीती की समझ चाणक्य के विचार से सिखये,
त्याग और समर्पण मीरा के प्यार से सीखिए
नारी की कुर्बानी जौहर की आग से सिखये
स्वाभिमान की समझ राणा प्रताप से सिखये,
कैसे देश के लिए जिया जाता है
ये गुरु गोविंद के  बेटों के बलिदान से सीखिए

भारत के स्वर्णिम इतिहास से सिखये
सिकंदर और पोरस् की बात से सिखये
देशभक्ति भगत और सुभाष से सिखये
फ़ासी चढ़े शहीदो की लाश से सिखये
आजादी की कीमत अभी भी नहीं समझे
तो इसकी कीमत जालिया वाला बाग़ से सीखिए,

धर्मनिरपेक्षता अब्दुक कलाम से सिखिये,
समर्पण देश के प्रति मोदी के काम से सिखीये,
मिलजुल कर एक दूसरे के योगदान से सिखये
कभी छोटे कभी बड़े नाम से सीखिए
कंही दूर नहीं जाना पड़ेगा आपको,
मन की आँखे खोलिय,अपने आत्म ज्ञान से सिखये

असफलता कुछ नहीं क्षणिक रुकावट है,
एक अनुभव है सफलता की आहट है,
मंजिले उन को मिल ही जाती है जिनमे सफलता की चाहत है,
सफलता की कद्र किसी असफल इंसान से सीखये

जीवन एक त्याग है, प्रण है, तपस्या है,
सिर्फ अपने लिए जीना जीवन नहीं समस्या है,।
इस समस्या का निदान क्या है,जीवन का आदर्श क्या है
ये सब कुछ सीखना है तो मेरे हिंदुस्तान से सिखये...

तुम यु ही खूबसूरत हो

ये सोने चांदी के गहने..क्यों तुमने पहने??
से साज-ओ- श्रृंगार यु ही दो रहने..

क्योकि तुम यु ही खूबसूरत हो...

ये हाथों में कंगना ये होठो पे काली
ये फूलों की माला गले में क्यों डाली
ये चेहरे पे पाउडर ये आँखों में काजल
रहने दो,छोडो न्, पहनो ना पयाल

तुम यु ही खूबसूरत हो,

श्रृंगार से किसी को यु खूबसूरत बनाया नहीं जाता,
जो खुद चाँद हो उसे सजाया नहीं जाता,
तेरी सादगी ही सुंदरता की मूरत है
तुझे श्रृंगार की क्या जरुरत है,

तुम यु ही खूबसूरत हो...

मेरे नगर का ये क्या हाल हो गया है

मेरे नगर का ये क्या हाल हो गया है,
यहाँ शांति से रहना मुहाल।हो गया है,

हर किसी को शौक है अखबारो में रहने का
हर कोई आज कल केजरीवाल हो गया है,

मुदद्दा ये नहीं की आग कैसी बुझाये जाए,
आग कहां लगी इस बात बवाल हो गया है,

क्या खूब तोहफा दिया है तूने हमको ए सियासत,
घायलों से भरा आज कल हस्पताल हो गया है,

जिन्हें कभी लख्ते जिगर कहा करते थे हम
आज कल उनसे मिले कई साल हो गया है,

अपने मतलब की बाते, और अपने मतलब की दुनिया
साजिशें ऐसी की शर्मिन्दा मकड़जाल हो गया है

डरता ह् आज कल किसी का नाम पूछते हुए,
किसी से उसका नाम पूछना मजहबी सवाल हो गया है,

इनानियात हो धर्म अपनाऔर कोई जात् न् हो,

भक्तो की भूमि है भारत , भय से ये फिर ये व्याप्त न् हो,
रक्त रंजित रहा चुका है पहले भी अतीत ,फिर यह रक्तपात न् हो,

भगवा हरा अब  एक हो इस बात माँ उद्गघोष हो,
कुछ नहीं बदलेगा जब तक तिरंगा आत्मसात न् हो,

मंदिरों में जल चढ़ाया ,मस्जिदों में चादरे चढ़ई
व्यर्थ है जब तक की भूखे को भोजन प्राप्त न् हो,

व्यर्थ ये नवरात्रि के व्रत व्यर्थ व्यर्थ ये रोजा नमाज,
जब तक की हृदय की कामाग्नि में शांति पर्याप्त न् हो,

ॐ, अल्लाह,नानक जीजस, ये सब भी एक ही है,
इनके नाम पर मेरे देश में कुछ फसाद न् हो,

आइये मिल के सब ये सौगंध खाये,
बंद हो ये झगड़ा, राम और रहीम में उत्पात न् हो,

सब सियासी दावपेच है,ये कब संजहेंगे हम
मुझको दिखाओ वो धर्मग्रंथ जिसमे एकता की बात न् हो,

मंदिर मस्जिडे खड़ी होने लगे रक्त की बुनियादों पे,
इस से ज्यादा डूब मरने की भला और बात क्या हो

बन सको तो सूर्य और चंद्रमा सा बनो ,
जिसमे कोई धर्म का पक्षपात न् हो

कोई जो पूछे की तो बस इंसानियत बताना
इंसानियत हो धर्म अपना और कोई जात न हो,

मुझे गर्व है कि मैं मारबाड़ी हूं

तरक्की का द्योतक ह् मैं निरंतर चलती गाड़ी हूँ
हां मुझे गर्व है कि मैं एक मारबाड़ी हूँ

मुझे मत सिखाओ business , मेरे खून में व्यापार है
मेरी मेहनत की वजह से लष्मी जी की कृपा अपार है,
मेरी मेहनत की वजह से आज भी दुनिया में अगाडी हूं
हां मुझे गर्व है कि मैं मारबाड़ी हूँ

मैं वो है जो अपने दम अपर जीता है
सारा नगर हमारे खोदे कुए का पानी पिता है
हमने न् जाने कितनी धर्मशालाएं बनवाई है
प्राणो से प्यारी गौ माता के लिए गौशाला बनवाई है ,
कहने को वैश्य ह् पर जीता जीवन रजाड़ी ह्
हां मुझे गर्व है कि मैं एक मारबाड़ी ह्,

मैं वो हू जो लाखो को रोजगार देता हू
देश की प्रगति में अपना हिस्सा हर बार देता हूँ,
देश का सबसे ज्यादा टैक्स मैं ही भरता हू
फिर भी न् कभी आरक्ष्षण की मांग करता हूं,
देश को जिताने के लिए मंझा हुआ खिलाड़ी हूँ
हां मुझे गर्व है कि  मैं एक मारबाड़ी ह्

इलजाम मुझ पर कई लगे की मैं एक कायर हूँ
मुझमें गुस्सा और जोश नहीं मैं फ्यूज वायर हूँ
पर मत भूलो तुम ये भी की मैं भामाशाह का वंशज हूं
देश की खतिर कुर्बान किये सर्वस्व मैं भी देश का रक्षक हूँ
देश की सेना को जो रसद पहुचाये मैं वो रेलगाड़ी हूँ
हां मुझे गर्व है कि मैं एक मारबाड़ी हूं,

देश से कुछ न् मागा हमने सिर्फ देश को दान दिया
हमने अपने धनवैभव पर कभी न् कुछ अभिमान किया
जहा भी गए वंही के हो गए हम
हर धरा का हमने सम्मान किया
हर जगह मैं पनपा ह् मै अमरबेल की झाडी हूँ
हां मुझे गर्व है कि मैं मारबाड़ी हूं,

Thursday, 20 October 2016

मैं क्यों न् मुस्कुरा दू...

एक शहीद का शव घर आया,
पुरे घर में जैसे मातम छाया,

जिसके सहारे थी पूरी घर की कश्ती
एक झटके में वो मझधार में छोड़ आया,

मगर पूरी फॅमिली ये देख कर परेशान् थी,
की उसकी पत्नी के चेहरे पर अभी भी मुस्कान थी,

उसकी मुस्कुराहट देख एक बुजुर्ग उसके पास आया,
और बातों बातों में उसको समझाया,

की बेटी ,पति की मौत पर इस तरह ना मुस्कुरा
परवाह कर दुनिया की ज़रा तो लोकलाज निभा,

पत्नी का जवाब मगर दिल को बिंध गया
बुजर्ग के आँखों से भी उदासी छीन गया,

जब ये सरहद पर जाने को तैयार था
तब से ही हम दोनों के बीच करार था,

अपने आप को गम की भट्टी में नहीं झुलासायेगे,
जब भी मिलेंगे हम दोने मुस्कुरायेंगे,

उससे किया वादा मैं कैसे भुला दू,
वो आज़् घर आया है तो मैं क्यों न् मुस्कुरा दू...

पूल न् बना पाए खड़ी दिवार हो गयी

वही सीमेंट, वही रेट, उसी पानी से तैयार हो गई,
जिससे पूल बना करते थे उसी से आज खड़ी दिवार हो गई,

बीमार माँ को घर पर छोड़ आया वो अकेला,
माताँ रानी के मंदिर के सामने कतार हो गयी,

भूख से तड़पता वो बच्चा कब का मर गया,
उसकी तस्वीर आज कल रौनक-ए-अख़बार हो गई,

उस सिगरेट के धुएं ने न् जाने कितनों को मारा होगा,
उसके मालिक के केन्सर हॉस्पिटल की जय जयकार हो गई,

बड़े शौक से उसने पंडित जिमाये श्राद्ध में बहुत
उसके माँ बाप की जिंदगी वृद्धाश्रम में खाकसार हो गई,

आज उनके बच्ची को कान्वेंट स्कूल में देखता हूं
जिनके जिहाद के कारण जन्नत आज उजड़ा बाजार हो गई,

खबर सुनी की एक कन्या भ्रूण को फिर से कुत्ता चबा गया,
दोष कुत्ते का नहीं ये तो इंसानियत शर्मशार हो गयी,

कभी जात्, कभी नॉट, कभी अपनी सुवुधा को देख कर वोट दिया जिन्होंने,
आज वही कहते की राजनीति आजकल बेकार हो गई,

बचपना vs परिपक्वता

बचपन vs परिपक्वता

कितनी आसान  थी जिंदगी जब हम बच्चे हुआ करते थे,
सब ईमान के बहुत पक्के थे घर भले ही कच्चे हुआ करते थे,

किसी से बैर पानी के बुलबुले जैसा था कुछ पल के लिए,
कुछ पलों बाद हम फिर से एक दूसरे के लिए अच्छे हुआ करते थे,

चेहरे पर नकाब लगाया करते थे सिर्फ एक दूसरे को डराने के लिए,
वरना हम अपने किरदार में बिलकुल सच्चे हुआ करते थे,

ना साजिशें,न् तरकीबें,न्  चुगली,न् चापलूसी न् ये दिखावा,
दिल बहलाने के लिए बस राजा रानी के किस्से हुआ करते थे,

अब तो एक आंसू भी  रुसवा कर जाता है,
बचपने में दिल खोल के तो रो लिया करते थे,

इन चार पैसो से क्या मुकाबला हो बचपन की अमीरी का,
जब पानी पर चलती थी कश्तियां हमारी और हवा में जहाज उड़ा करते थे

हर ऐशो-आराम भी आज कल खुश् नहीं रख पाता,
बचपन में टूटे खिलौने भी हमें खुश् रहा करते थे,

बारिश आ जाये तो जिंदगी थम सी जाती है आजकल,
वो दिन भी क्या थे जब बारिश के कितने मजे हुआ करते थे,

चंलना,बोलना,हँसना, आज कल सब सलीके से होता है,
उस बे-सलीके की जिंदगी के अब हम तरसा करते है,

मेरी लिखी हुई कुछ कविताएं और कुछ मेरी सबसे पसंदीदा कविताएं पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग में जाए...
Www.vikashkhemka.blogspot.com

आप की प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित है!!!

अपने अपनों मे फिर कभी ऐसी लड़ाई न् हो..

अपने अपनों में ऐसी फिर लड़ाई न् हो,
दोनों की ऐसी फिर जग हसाई न् हो,
कुछ दूरियां हम दोनों में है मानता हूं मैं
इसका ये मतलब नहीं की हम भाई न् हो,

एक कदम  हम बढ़ाये तो एक तुम बढ़ाओ
कोशिश करो की किसी की रुसवाई न् हो
खुब् लड़ेंगे हम खूब झगड़ेगे फिर से
मगर दिल से भावनाएं पराई न् हो

गलत तुम भी नहीं, गलत हम भी नहीं,
बस गलती हमने अपनी छुपाई न् हो
हम दो पाटों में पीस रहे है  कुछ अपने
कोशिश करे की फिर उनकी ये पिसाई न् हो,

बस इतने दूर न् निकल जाए कभी
की आइंदा मिले तो नजरो की मिलाई न् हो
किस काम की है सामाजिकता अपनी
अगर इसमें अपनों की ही भलाई न् हो...


खंडहर बता देते है कि इमारत कितनी शानदार रही होगी

मेरे जाने के बाद वो भी बहुत रोइ होगी,
उसकी जिंदगी भी कुछ ग़मगीन कुछ बेजार रही होगी,

ये वक्त का पहिया कितना कुछ बदल देता है,
खंडहर बता देते है कि इमारत शानदार रही होगी,

उन लोगो की कद्र कीजिये जो पतझड़ में साथ देते है,
उनकी वजह से  आपकी जिंदगी में बहार रही होगी,

कभी दूर से देखा,कभी गुरुर से देखा तुमने,
हमें बड़ा देखने के लिए तुम्हे चश्मे की दरकार रही होगी,

परछाईया कद से और बाते औकात से बड़ी हो जाए जब,
ये कुछ नही बस उसकी डूबने की शुरुवात हुई होगी,

कुछ छोटो के हाथ छोड़ के उसने बड़ो के पाँव पकड़ लिए
उसके लिए सफलता के आगे गैरत् बेकार रही होगी

मैं सूरज के  साथ के साथ रह भी मैंने की अदब से बाते,
जुगनू के साथ पा कर किसी की बाते धार-धार हुई होगी

मंजिल उनको ही मिली जो घर से निकले और भटके,
कुएं के मेढकों की जिंदगी बस शफलता तलबगार रही होगी,

कानून अंधा नहीं, बड़े और छोटे में फर्क बखूबी पहचानता है,
ये  झुठी बाते जरूर किसी ने भूल से बार बार कही होगी,

वो जोर जोर से कह कर झूठ को सच बना  सकता है,
वकील अच्छा हो तो सच की क्या दरकार रही होगी,

दुष्यंत कुमार की मेरे पसंदीदा कविता

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

Wednesday, 19 October 2016

क्या है मेरे नाम का???

ये कविता किसने लिखी मुझे पता नहीं जिसने भी लिखी उसको मेरा प्रणाम, उसने मेरे दिल को छू लिया

देह मेरी, हल्दी तुम्हारे नाम की।
हथेली मेरी, मेहंदी तुम्हारे नाम की।
सिर मेरा, चुनरी तुम्हारे नाम की।
मांग मेरी, सिन्दूर तुम्हारे नाम का।
माथा मेरा, बिंदिया तुम्हारे नाम की।
नाक मेरी, नथनी तुम्हारे नाम की।
गला मेरा, मंगलसूत्र तुम्हारे नाम का।
कलाई मेरी, चूड़ियाँ तुम्हारे नाम की।
पाँव मेरे, महावर तुम्हारे नाम की।
ऊंगलियाँ मेरी, बिछुए तुम्हारे नाम के।
बड़ों की चरण-वंदना मै करूँ, और ‘सदा-सुहागन’ का आशीष तुम्हारे नाम का ।
और तो और – करवाचौथ/बड़मावस के व्रत भी तुम्हारे नाम के ।
यहाँ तक कि कोख मेरी/ खून मेरा/ दूध मेरा, और बच्चा ? बच्चा तुम्हारे नाम का ।
घर के दरवाज़े पर लगी ‘नेम-प्लेट’ तुम्हारे नाम की ।
और तो और-मेरे अपने नाम के सम्मुख लिखा गोत्र भी मेरा नहीं, तुम्हारे नाम का ।
सब कुछ तो तुम्हारे नाम का…
मैं नम्रता से पूछती हूँ?
आखिर तुम्हारे पास… क्या है मेरे नाम का?

जिद

पप्पू की जिद है कि उसको वीडियो गेम चाहिए,
जैसा पड़ोस के रानू के पास है बिलकुल सेम चाहिए,

उस वीडियोगेम पर एमआरपी 3000 / का तख्त है,
और गली के एलोक्ट्रोनिक्स दूकान में उपलब्ध है,

पप्पू पहले बोला, फिर चिल्लाया फिर रो कर डराने लगा,
शाम दाम दंड भेद से माँ को रिझाने लगा,

माँ मान गई अब अब पिताजी की बारी थी
सुप्रीम कोर्ट के बाद हाई कोर्ट की तैयारी थी,

पिताजी के सामने पप्पू ने सारे हथकंडे अपनाए,
कभी गिड़गिगडाया कभी चिल्लाया कभी आंसू बहाए,

मगर पप्पू की सारी दलील बेकार हो गयी,
पिता का दिल जैसे दिल्ली की सरकार हो गई,

थोड़ी देर बाद पपपु ने अपना रौद्र रुप दिखाना शुरू किया,
असहयोग के साथ भूख हड़ताल का आंदोलन कुरु किया,

पिता भी घाघ था पल में हालात को बदल दिया,
उसे रामलीला मैदान के रामदेव के आनदोलन सा कुचल दिया,

दो पुलिसिया चाहते पप्पू की गाल पर धर दिए,
और तिहाड़ के कैदी सा एक कमरे में भर दिया,

रोते पप्पू के चेहरे पर पिताजी को दया न आयी,
6 घण्टे कैद-इ-बंशकक्त की उसे सजा सुनाई

पिछले 4 घंटे से कमरे में पप्पू बंद कमरे में आहे भर रहा है,
मुझे समाझ में नहीं आया की जिद कौन कर रहा है,???