खुद से ज्यादा मोबाइल में खो गया हूँ
अपनों से ज्यादा इंटरनेट का हो गया हूँ
जिगरी दोस्तों का वक्त व्हात्सप्प ले गया है,
परिवार से प्यारा अब फेसबुक हो गया है,
माँ का प्यार, पत्नी का श्रृंगार भी बस ऑनलाइन निहारते है,
बच्चे की शरारत,अपनों की चाहत बस ऑनलाइन ही पाते है,
आँखे हर वक्त नेटवर्क का सिग्नल तलाशती रहती है,
जो पास है उसकी खबर नहीं बस ऑनलाइन को तलाशती रहती है
ऑनलाइन क्या हो रहा है बस इसकी फ़िक्र है,
अपने घर के लोगो का अब कहा जिक्र है,
एक कमरे में एक पलंग में लेट कर भी ऑनलाइन बाते होती है,
सिर्फ आँखे बंद होती है वरना नींद आज कल कहा सोती है,
लाइक्स और कमेंट्स बताते है हमें खुशियां और गम
सेल्फिया दिखाती है हमें की कितने अकेले है हम
गो ग्रीन के नारों के बाद कागजो से जैसे रश्क हो गया है,
उंगलियां दिन भर मोबाइल में सरकती है इसी से इश्क हो गया है,
प्यार,तकरार,ब्रेकअप सब मोबइल में हो रहा है,
अब फेसबुक बताता है कौन हँसता है कौन रो रहा है,
आज किस मोड़ पर आकर हम खड़े हो गए है,
ऑनलाइन स्टेटस जिंदगी के उसूलों से बड़े हो गए है,
जिंदगी जीने का ये कैसा नया आर्ट हो गया है
इंसान अकेला हो गया है जबसे फ़ोन स्मार्ट हो गया है,
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