भारत एक धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं का देश है जहाँ का इतिहास हमें सिखाता है यहाँ मानवीय मूल्य हमेशा धन से आगे रखे जाते है, फिर इस अध्यत्यमिक सोच वाले देश में ये टैक्स चोरी मानवीय मूल्यों का पतन है या फिर और कोई बात है, इस सवाल का जवाब ढूढने के लिए मैंने हर वर्ग के लोगो से बात की,व्यापारी, प्रोफ़ेशनल, मजदुर,छात्र गृहणी,सबका मत लिया और उन सब के निचोड़ से कुछ आश्चर्य जनक बाते सामने आयी,
एक व्यापारी ने बताया कि वो हर साल लगभग मंदिरो,और अन्य संमाजिक संस्थाओं में लगभग 50000 से 1 लाख रूपये चन्दा देता है उसकी कमाई साल में लगभग 5 लाख है मगर वो कोई टैक्स नहीं भरता, इसके पीछे जो उसने कारण बताया वो भी काफी तर्कसंगत था, उसने पिछले 70 सालों का उदहारण देते हुए बताया कि जितना पैसा सरकार टैक्स लेती है उतना काम नही दिखता,100 रूपये सरकार के खजाने में जाते है जनता तक आते आते वो 10 रूपये से भी कम हो ंजाता है, और ये आज से नहीं दशकों से चल रहा है, जब कोई व्यपारी देखता है कि उसका ढिया हुआ पैसा (टैक्स) कैसे बर्बाद हो रहा है तो वो कैसे टैक्स देगा, आदमी कुछ भी दान या कंही भी अपना योगदान तभी देता है जब उसको लगे की वो योगदान सार्थक होगा, शस्त्रों में भी कहा गया है कि कुपात्र को दान देने से सम्मान नही अपमान मिलता है, वरना जो आदमी मंदिरो में 2 लाख चन्दा देता है वो सर्कार को भी 20000 रुपया टैक्स दे सकता है, हम अपने पास आये किसी सही जरूरतमंद को 10000 रूपये की सहायता कर देते है लेकिन एक शराबी को 20 रूपये नहीं देते, निरन्तर हो रहे भृस्टाचार से सरकार ने अपना भरोसा खो दिया है, जब कोई आम आदमी देखता ही की उसके मेहनत से कमाए हुए पैसे जिनसे वो टैक्स देता है वो पैसे सिर्फ अपनी सरकार को बचाने और वोट खिंचने के लिए मुफ्त में बाट दिए जाते है, तो फिर उसका और मन नहीं करता की वो कोई टैक्स भरे,
अपने जायज बेटे को कौन भला नाजायज बनाना चाहेगा, मगर भारत में व्यवस्था ही ऐसी है कि लोग मजबूर है कानून तोड़ने के लिए, सरकार चाहती है कि अमरीका की तर्ज पर देश में कानून बने और उनका पालन हो मगर उसके लिए अमरीका के स्तर का इंफ्रास्ट्रुक्टर भी दे, सरकार ये कानून बना देती है कि रास्तों पर पेशाब न करे और 3 किलोमीटर तक कोई मूत्रालय नहीं बनाती तो आम आदमी की ये मज़बूरी बन जाती है कि वो कानून तोड़े, सरकार के कानून ऐसे है कि लोगों को बाध्य होना पड़ता है,
आज के दौर में भृस्टाचार शिष्टाचार इसलिए है कि आदमी सुविधा वादी है, कोई लाइन नहीं चाहता,लोकतंत्र में सब सामान है लेकिन सबकी इसका है कि उन सब सामानों में मैं सबसे पहले रहू, ये सबसे आगे रहने के चाहत व्यवस्तह बिगाड़ती है, मेरा एक मित्र जिसका रोज सरकारी ऑफिस में काम पड़ता है उसने बताया कि उसे हर महीने सराकरी अफसर को 5000 रूपये देने पड़ते है,क्योकि वो कुछ अद्जुस्मेंट वाले काम करता है, उसने जब वो कामबंद कर दिए तो अधिकारी को पैसे देने बंद कर दिए मगर अधिकारी ने कहा कि आप काम चालू रखईये और हमारा हिस्सा जारी रखईये, मेरे मित्र ने भी उसे पैसे देना जारी रखा है और उन् 5000 रुपयों को कैसे कमाया जाए इस जुगाड़ में लगा हुआ है,
ये इस देश की हकीकत है कि कोई ईमानदार बनाना चाहे भी तो बनने नहीं दिया जाता,कई विकाश कार्यो में अनाधिकारिक सरकारी खर्चा 40% तक है, 100 रूपये का काम कोई 60 में करेगा तो वो कैसा होगा?इसमें ठेकेदर को भी कमाँना है वो अलग,जब कोई टैक्स देने वाला देखता है कि उसके भरे टैक्स से बनी रोड 2 महीने में ख़राब हो जाती है , जब वो देखता है कि बिना नहर बने उसके बिल पास हो रहा है,सरकारी परिवहन शून्य है इसलिए उसको अपना खुद का जुगाड़ करना है,रस्ते में लाइट नहीं है खुद लगानी है, साफसफाई की व्यवस्था खुद करनी है, सरकारी होस्पिताल की अव्यवस्था देखकर उसे महसूस होता है कि किसी आपातकाल के लिए प्राइवेट होस्पिटल में अपने इलाज की व्यवस्था खुद करनी है, अपने बच्चों को वो सरकारी सकुलो के भरोसे नहीं छोड़ सकता उनके लिए प्राइवेट सकुलो की महँगी फ़ीस की व्यवस्था खुद करानी है तो वो टैक्स देने की जगह खुद अपने लिए व्यवस्था करता है,जब सारे काम उसे अपने भरोसे करने है तो तो सरकार को पैसा क्यों दे,??सरकार के साथ अपने बुरे अनुभावो की वजहः से सरकार ने अपना भरोसा खो दिया है ,वरना जो इंसान मंदिरो पर 2 लाख खर्च सकता है वो क्या देश को 20000 नहीं दे सकता है,
हर कोई सुविधा चाहता है,रेलवे का digitaisation होने के बाद सेउसका रेवेन्यू 100 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है, ज्यादातर लोग सिर्फ इसलिए टिकट नहीं लेते थे की उनको लाइन में खड़ा होना पसंद नहीं था, वरना पैसो की कोई कमी नहीं थी,राज्यो में सेल्सटैक्स ऑनलाइन होने के बाद टैक्स के आकड़ो में बेतहाशा वृद्धि हुई है, कारण साफ है लोग पैसा खर्च कर सकते है समय नहीं,पहले सेल्सटैक्स् आफिस में एक वेबिल या c फॉर्म के लिए दिनों तक इंताजार और बेतहासा चापलूसी करनी पड़ती थी अधिकारी वे बिल ऐसे देते थे जैसे किडनी दे रहे हो, सुविधा बढ़ाइए आपको टैक्स के लिए लोगो से भीख नही मांगनी पड़ेगी लोग खुद देंगे,
ट्रैन की टिकट 10 / बढ़ा कर अगर ट्रैन में पिने के स्वच्छ पानी की व्यवस्था कर दी जाए तो हममे से ज्यादातर लोग इसके लिए राजी होंगे, मगर ये अभी तक हुआ नहीं है,टैक्स बढे है टैक्स का दायरा बाधा है सुविधाएं नहीं, आप की टैक्स भरने की प्रक्रिया ही इतनी जटिल है कि उसको पूरा करने के लिए एक स्टाफ की जरुरत होती है, जो साल में 50000 टैक्स भरना चाहता है वो 1 लाख रुपया स्टाफ में खर्चा करे,
ये बदलना होगा, सुविधाएं बढ़ाइए, टैक्स नहीं, देश में जब भी कोई आपदा आयी है आम लोगो ने कुबेर के खजाने जितना धन प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष में जमा करवा दिया है, लोग देने के इच्छुक है लेने का तरीका सुधारिये, 90% व्यापारी अपनी टैक्स चोरी का लाभ आगे पास कर देते है, देश में 10 % ईमानदार है तो 10% बेईमान भी है, मगर 80% ऐसे बेईमान है जो बेईमानी करना नहीं चाहते मगर व्यवस्था उन्हें बेईमान बनाती है, लोग बदलना चाहते है ,व्यवस्था सुधारिये लोग अपने आप सुधर जाएंगे,
जब आप जनता को सिर्फ वोटबैंक समझना छोड़ कर आदमी समझने लगेंगे ये बदलाव आ जायेगा,
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