Wednesday, 30 November 2016

सिनेमाघरों में राष्ट्रीयगान की बाध्यता : इतना हंगामा क्यों??

राष्ट्रीयगान  सिनेमाघरों में बाध्य :  इतना हंगामा क्यों??

सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्णय के अनुसार  सभी सिनेमाघरों में किसी भी सिनेमा से पहले राष्ट्रिय गान चंलना बाध्य कर दिया गया है, इस राष्ट्रिय गान के समय परदे पर तिरंगा लहराता हुआ दिखाई देगा, इस दौरान सभी दर्शकों को ससम्मान खड़े होना होगा,टाकीज के दरवाजे बंद रहेंगे,

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद से इस आदेश पर शुरू हो गई है कुछः लोगो ने इस फैसले का स्वागत किया है तो कुछ ने इसे "अति राष्ट्रवाद" करार दिया है और लोगो पर देशभक्ति थोपने का आरोप लगाया है, कुछ लोगो का मानना है कि इस फैसले से लोगो में देशभक्ति की भावना बढ़ेगी तो कुछ लोगो को ये सिर्फ दिखावा और औपचारिकता भरा आदेश लग रहा है, और अपने मौलिक अधिकारों का हनन लग रहा है,हर कोई अपनी समझ के हिसाब से इस आदेश की समीक्षा में लगा हुआ है, तो मैंने भी एक प्रयास किया है,

मेरी सोच में ये फैसला बहुत ही ऐतिहासिक और सही फैसला है, भारत में आजादी के 70 वर्षो के इतिहास में बहुत कम ही ऐसे निर्णय लिए गए है जो देशप्रेम का पाठ पढ़ाते हो, शायद आप को याद न् हो आजादी के बाद भारत के तिरंगे को सरकारी कार्यालयों से आजाद होने में लगभग 60 साल लग गए और ये तिरंगा लहराने की आजादी भी तब मिली जब एक बहुत बड़े उद्यगिक घराने के मालिक और सांसद नविन जिंदल ने इसके लिए पहल की,उसके बाद ही एक आम नागरिक को देश भर में कंही भी ससम्मान तिरंगा लहराने का हक़ मिला,

कमोबेश यही हाल राष्ट्रगान का भी है जो सिर्फ 15 अगस्त,26 जनवरी और स्कुल की किताबो में कैद हो कर रह गया है,इसको भी आजाद कराने की जरुरत है,भारत में देशभक्ति का जो ज्वार 15 अगस्त और 26 जनवरी को उमड़ता है उसका 1% भी स्थायी रह जाए तो इस देश की दशा और दिशा बदल जाए, जिस तिरंगे की छत्रछाया में हम राष्ट्र वन्दना करते है,ये उस तिरंगे का सम्मान है,

किसी में भी कोई भावना जबरजस्ती नहीं भरी जा सकती,और इस बात को मैं भाई मानता हूं कि सिर्फ राष्ट्रीयगान को 52 सेकण्ड को सम्मान दे देने से आपको देशभक्त का सेटिफिकेट इससू नहीं हो जाता है मगर् ये बात भी सच है कि इस का सम्मान न् करने पर आप पर देश। विरोधी का ठप्पा अवश्य लग जाएगा, फिर भी मैं इस फैसले का समर्थक हूँ क्योंकि हम भारतीयों की प्रकृति है कि हम हर बदलाव का विरोध करते है चाहे वो हमारे हित् के लिए ही क्यों न् हो, हम किसी भी कानून में निहित अपने लाभ को नहीं उससे होने वाली असुविधाओं को देखते है,हमारा स्वाभाव बहुतकुछ उस मक्खी की तरह है जो एक साफ़ सुथरे स्थान को छोड़कर गंदगी में बैठना ही ज्यादा पसंद करती है,

ठीक बात है कि भावनाएं थोपी नहीं जा सकती मगर कभी सोचा है कि भावनाएं बनती कैसी है,अपने बच्चों में संस्कारी और धार्मिक भावनाएं भरने के लिए हम बचपन से उनको इस का अभ्यास कराते है, उसे पूजा में अपने साथ बिठाते है, और बच्चा जिस माहौल में पलता और बढ़ता है उसी के अनुरूप बन जाता है,बच्चे वैसा  नहीं बनते जो आप उनसे बनने को कहते है बच्चे वैसे बनते है जैसा आप को देखते है, किसी पर भी आपकी राय और सलाह से ज्यादा आपका उदाहरण उन प्रभाव डालता है, आप क्या कहते है उससे ज्यादा आप क्या करते है लोग इस बात से प्रभावित होते है,

ये  निर्णय भी एक प्रयास है देश के लोगो में देशभक्ति जगाने का, जब राष्ट्रगान सुनकर हममे 15 अगस्त और 26 जनवरी को राष्ट्रभक्ति जाग सकती है तो बाकी दिनों में भी कुछ न् कुछ फर्क अवश्य पडेगा, ये लोगो में सोई हुई देशभक्ति जगाने का एक अवेयरनेस कैंप है, हमारा सवाभव और प्रकृति हमारे दैनिक कार्यकलापो से निर्धारित होता है,हम रोज़् जैसा देखते है करते है वैसे ही बन जाते है,हर चीज अभ्यास से परफेक्ट होती है,हम जिस चीज का अभ्यास करते है उस में परफेक्ट हो जाते है,अगर सरकार हमें देशभक्ति का अभ्यास करने को कह रही है तो इसमें गलत क्या है??

हमको हमेशा देश के प्रति अपना अधिकार तो याद है तो देश के प्रति अपने कर्तव्य की इतनी अवहेलना क्यों?? जिस राष्ट्र से हम ये आशाएं करते है कि वो हमें अच्छा रहन सहन दे,अच्छी सड़के दे, अच्छी कानून व्यवस्था दे, अच्छा परिवेश दे क्या उसका का हम पर इतना भी हक़ नहीं वो हमसे हर महीने 52 सेकण्ड का सममान ले,

भारत की जनता और देशों से अलग है यहाँ लोग सुविधावादी है, हर चीज जब तक उनके लिए बाध्य न् की जाए वो नहीं अपनाते,मेरे हिसाब से सिर्फ सिनेमा में ही क्यों हर कालेज,हर स्कुल,हर सरकारी कार्यलय और हर सरकारी कार्य्रकम में राष्ट्रगान की बाध्यता होनी चाहिए,भारत में लोगो को हर रोज ये याद दिलाने की आवश्यकता है कि वो हिन्दू,मुस्लिम या ईसाई होने से पहले भारतीय है,और राष्ट्रगान कोई धार्मिक आलाप नहीं है देश के प्रति अपनी सम्मान प्रदेर्शन का एक तरिका है, जिन्हें ये भारी लगता है उन्हें एक आत्मसमीक्षा की आवश्यकता है, जिन्हें जय हिंद कहने में शर्म आती हो,भारत माताँ की जय कहने के लिए संविधान की पुस्तकें का हवाला देना पडे ऐसे लोगो के हाथ में देश की कमान देने से पहले एक बार अवश्य कुछ सोचने की जरुरत है कि आप अपने देश को कैसा देखना चाहते है,

मैं इस राष्ट्रवादी फैसले के साथ हूँ और इस का दायरा बढ़ाये जाने के पक्ष में हूँ, अगर इस निर्णय से हमारी न्यायपालिका पर राष्ट्रवादी होने का आरोप लगता है तो मैं बहुत खुश् हूं कि चाहे आजादी के बाद को  70 साल लग गए  मगर लोकतंत्र का ये तीसरा स्तंभ राष्ट्रवादी तो हुआ???

जय हिंद..

विमुद्रीकरण :  देश को डिजिटल इंडिया बनाने का इंजेक्शन,

मेरा देश बदल रहा है,डिजिटल हो रहा है,भारत के डिजिटल बनाने का प्रयास अपने चरम पर है,विमुद्रिकारण को भी आप देश के डिजिटलाइजेसन् का एक भाग ही मान सकते है,

भारत एक ऐसा देश है जहां लोगो को समझा कर नहीं डरा का मनाया जाता है,यहाँ के लोग काफी कुछ बनिया प्रवृत्ति के है जो या " आंट(मुश्किल)"में देते है या "खाट"में देते है, यहाँ लोग पास के फायदे को दूर के नुकसान से अधिक पसंद करते है, 8 नवम्बर से पहले मोदी जी ने अपने हर भाषण में,हर मन की बात में कहा कि देशवासियो डिजिटल हो जाओ,अपने बैंक अकाउंट खुलवाओ,कैशलेस हो जाओ, मगर किसने ध्यान दिया,सब को लगा की की हर बार की तरह ये भी डरायेगा,धमकाएगा और फिर कुछ दिनों में सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो जाएगा, मगर इस बार कुछ और हुआ, जब प्यार से कहा तो कोई नहीं माना अब सभी भागे भागे फिर रहे है कैशलेस होने के लिए,अगर यही परिवर्तन के लिए हम 8 नवम्बर के पहले अपने आप को आस्वस्त कर लेते तो ये बैंको और एटीएम में लाइन लगाने से बच जाते, मगर नहीं भारत एक जुगाड़ वाला देश है यहाँ लोग बिमारी से बचने के लिए टीकाकरण पसंद नहीं करते यहां बीमार होने के बाद एंटीबायोटिक खाना पसंद करते है, 

यहाँ हम सरकार के हर निर्णय को अपने आथिर्क लाभ और हानि के परिदृश्य से सराहते है,जिस निर्णय से हमें त्वरित आर्थिक फर्क नहीं पड़ता उसे हम ध्यान ही नहीं देते,ट्रैन में जब तक 50 रूपये फाइन था तब तक हम ट्रैन में कभी टिकट लेकर नहीं बैठे,अचानक 1 दिन वो फाइन 250 हो गया हम टिकट खरीदने लगे, हम में ज्यादातर भारतीयो की ये आदत होती है कि वो अंतिम तरीखो तक फ़ोन बिल,बिजली बिल,इनकम टैक्स,सेल्स टैक्स बाकी रखते है,जिस दिन हमें लगता है कि आज यदि बिल नहीं भरा तो फ़ोन बंद हो जाएगा उस दिन बिल भरते है, जिसदिन लगे की आज बिल नहीं भरा तो लाइन कट जायेगी उस दिन बिजली का बिल भरते है,जबकि अंतिम दिनों में हमें पता है कि हमारे ही जैसे लोगो की हमें कतार मिलेगी,अपने आप को कतारों में लगाने की प्रस्तावना हम खुद तैयार करते है,

भारत एक देश है जहाँ आज भी बैटमैन,सुपरमैन,और ही मेन से ज्यादा लोगो को हनु"मेन" पर भरोसा है,यहाँ लोग वैज्ञानिक मान्यताओं से ज्यादा धार्मिक मान्यताओं पर भरोसा करते है,वो अपनी जिंदगी नयी तकनीको को अपना कर आसान नहीं करना चाहते वो चाहते है कि वो भगवान् की पूजा करे और भगवान की पूजा करे और भगवान् प्रसन्न होकर " तथास्तु," कहे और उनकी जिंदगी आसान हो जाए,

हम भारतीयों में एक और ख़ास बात है की हम सिर्फ उसी बात को समझ्ते है या समझना चाहते है जिससे हमें लाभ मिलता है, श्री भगवत गीता को हम् धर्मग्रथ मानते है उसकी पूजा करते है,मगर उसका पालन नहीं करते,श्री भगवत गीता का सार यही है कि भाग्यवादी नहीं कर्मवादी बनो मगर हम भाग्यवादी ही बनते है,और उससे ज्यादा अवसरवादी, हम बदलाव चाहते है मगर बदलना नहीं, हम वक्त के साथ नहीं बदलते इस बात का इंतजार करते है कि वक्त हमें बदल दे,और वक्त जब हमें बदलता है तो हमें बदलना ही पड़ता है चाहे हम इसके लिए तैयार हो न् हो, कैशलेस इकॉनमी भी वही बदलाव है, जो भविष्य है,और जिसमें हम सभी का भविष्य है,

ये तर्क काफी दिया जा रहा है कि भारत की 70% जनता डिजिटल इलीट्रेट या तकनिकी अनपढ़ है तो भारत कैशलेस कैसे बनेगा, एक बात मैं उनसे पूछना चाहूंगा कि जब भारत में 25 करोड़ लोग तकनिकी अनपढ़ होकर व्हात्सप्प और फेसबुक चला सकते है तो डिजिटल बैंकिंग और कैशलेस लेनदेन भी सिख सकते है, सब कुछ अपनी सुविधा और शौक के हिसाब से नहीं कुछ चीजे जरूरतों के लिहाज से भी आवश्यक है उन्हें अपनाने की आवश्यकता है, आवश्यकता आविष्कार की जननी है लोगो को तकनिकी ज्ञान की आम जिंदगी में आवश्यकता होगी तो वो अपने भीतर तकनीकी ज्ञान का अविष्कार खुद करेंगे,

भारत की जनता की प्रकृति रामचरित मानस की उस चौपाई से संचालित होती है जहाँ लिखा है कि " भय बिन प्रीत न् होई गोसाई" भारत के लोग व्यवस्था से प्रेम करके नहीं व्यवस्था से डर कर काम करना चाहते है, आज भी देहातो में बिमारी के इलाज के लिए टैबलेट और कैप्सूल्स से ज्यादा एक इंजेक्शन को पसंद किया जाता है वहां ये सोच है कि इंजेसेक्शन लगाने से बिमारी जल्द ठीक हो जाती है क्योंकि इंजेक्शन जल्दी इफ़ेक्ट करता है भले ही ये क्षणिक तौर पर दर्द देता है,अपनी बातों और विभिन्न योजनाओं के टेबलेट्स और कैप्सूल्स से सरकार ने बहुत कोशिश की हम ये कैश ट्रंसक्शन की बीमारी से ठीक हो जाए,मगर इस बिमारी का इलाज विमुद्रिकरण का इंजेक्शन ही था, जो एक बार दर्द दे रहा है मगर इसका असर बहुत जल्द दिखने लगेगा, एक पेन्सिलिन के इंजेक्शन की तरह ये कैश ट्रंसक्शन की बीमारी की तरह और कई अन्य बिमारी जैसे जाली नोट,कालाधन,भृष्टाचारइत्यादि के विरूद्ध भी अतिरिक्त कार्य करेगा, खैर जैसे की आप को पता है कि पेनिसिलिन हर एक के शरीर के शरीर को सूट नहीं करता, कुछ लोगों को तो तकलीफ होगी, मगर कल को देश कैश से लैस न् हो इसलिए आज से ही हमें कैशलेस होना होगा,

मेरे इसी तरह के और लेख और विचार और कविताएं पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करे,
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पुराण अर्थपूर्ण है,

एक लेख जो मुझे बहुत अच्छा लगा.संनातन हिन्दू धर्म की वैज्ञानिकता को प्रमाणित करता हुआ

बेटे ने माँ से पूछा - "माँ,  मैं एक आनुवंशिक वैज्ञानिक हूँ | मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम कर रहा हूँ | विकास का सिद्धांत, चार्ल्स डार्विन, आपने उसके बारे में सुना है ?"

उसकी माँ उसके पास बैठी और मुस्कुराकर बोली - “मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ, बेटा | मैं यह भी जानती हूँ कि तुम जो सोचते हो कि उसने जो भी खोज की, वह वास्तव में भारत के लिए बहुत पुरानी खबर है |“

“निश्चित रूप से माँ !” बेटे ने व्यंग्यपूर्वक कहा |

“यदि तुम कुछ होशियार हो, तो इसे सुनो,” उसकी माँ ने प्रतिकार किया | “क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है ? विष्णु के दस अवतार ?” बेटे ने सहमति में सिर हिलाया |
“तो मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम और मि. डार्विन क्या नहीं जानते हैं |

पहला अवतार था मत्स्य अवतार, यानि मछली | ऐसा इसलिए कि जीवन पानी में आरम्भ हुआ | यह बात सही है या नहीं ?” बेटा अब और अधिक ध्यानपूर्वक सुनने लगा |

उसके बाद आया दूसरा कूर्म अवतार, जिसका अर्थ है कछुआ, क्योंकि जीवन पानी से जमीन की ओर चला गया 'उभयचर (Amphibian)' | तो कछुए ने समुद्र से जमीन की ओर विकास को दर्शाया |

तीसरा था वराह अवतार, जंगली सूअर, जिसका मतलब है जंगली जानवर जिनमें बहुत अधिक बुद्धि नहीं होती है | तुम उन्हें डायनासोर कहते हो, सही है ? बेटे ने आंखें फैलाते हुए सहमति जताई |

चौथा अवतार था नृसिंह अवतार, आधा मानव, आधा पशु, जंगली जानवरों से बुद्धिमान जीवों तक विकास |

पांचवें वामन अवतार था, बौना जो वास्तव में लंबा बढ़ सकता था | क्या तुम जानते हो ऐसा क्यों है ? क्योंकि मनुष्य दो प्रकार के होते थे, होमो इरेक्टस और होमो सेपिअंस, और होमो सेपिअंस ने लड़ाई जीत ली |" बेटा देख रहा था कि उसकी माँ पूर्ण प्रवाह में थी और वह स्तब्ध था |

छठा अवतार था परशुराम - वे, जिनके पास कुल्हाड़ी की ताकत थी, वो मानव जो गुफा और वन में रहने वाला था | गुस्सैल, और सामाजिक नहीं |

सातवां अवतार था मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, सोच युक्त प्रथम सामाजिक व्यक्ति, जिन्होंने समाज के नियम बनाए और समस्त रिश्तों का आधार |

आठवां अवतार था जगद्गुरु श्री कृष्ण, राजनेता, राजनीतिज्ञ, प्रेमी जिन्होंने ने समाज के नियमों का आनन्द लेते हुए यह सिखाया कि सामाजिक ढांचे में कैसे रहकर फला-फूला जा सकता है |

नवां अवतार था भगवान बुद्ध, वे व्यक्ति जो नृसिंह से उठे और मानव के सही स्वभाव को खोजा | उन्होंने मानव द्वारा ज्ञान की अंतिम खोज की पहचान की |

और अंत में दसवां अवतार कल्कि आएगा, वह मानव जिस पर तुम काम कर रहे हो | वह मानव जो आनुवंशिक रूप से अति-श्रेष्ठ होगा |

बेटा अपनी माँ को अवाक होकर देखता रहा | “यह अद्भुत है माँ, आपका दर्शन. वास्तव में अर्थपूर्ण है |“

पुराण अर्थपूर्ण हैं | सिर्फ आपका देखने का नज़रिया होना चाहिए धार्मिक या वैज्ञानिक |

लाइफ मंत्रा : कोई उंम्मीद आखरी नहीं..

कोई उंम्मीद आखरी नहीं...

कैंडी क्रश मेरा बहुत ही पसंदीदा मोबाइल गेम है, मगर बहुत दिन पहले मैंने ये गेम इसलिए खेलना बंद कर दिया था क्योकि मेरे बहुत खेलने के बाद भी उसका 455 नंबर गेम पार नहीं हों रहा था, लगभग 50 बार खेलने के बाद मैंने कैंडी क्रश खेलना ही छोड़ दिया,

दुसरी और मेरी धर्मपत्नी इस गेम में 800 से ज्यादा लेवल में थी जबकि उसने मुझ से बहुत बाद में खेलना चालू किया था, मैं हमेशा स्मार्टनेस में, दिमाग में, समझ में उसको मुझ से कम समझता था,मेरे लिए ये आश्चर्य की बात थी की कैसे वो इतना आगे बढ़ गई, मैंने देखा की वो इसलिए आगे बढ़ी की वो लगातार खेलती है, उसके पास भी कई लेवल थे जो 3-4 दिन तक लगातार खेलने के बावजुद पार नहीं हुए मागर उसने हिम्मत नहीं हारी,और कई लेवल तो पर करने के लिए 100 बार भी खेलना पड़ा मगर उसने खेला और जिसके परिणाम स्वरूप वो आज 800 से अधिक लेवल पर है और मुझे पता है कि वो जल्द ही ये गेम पूरा कर के उसके उपड़ते के लिए इंतेजार करेगी,

उसको 800 के पार देखकर मुझको फिर से कैंडी क्रिश खेलने का जोश आया मैंने फिर से 455 से खेलना चालू किया और 10-15 बार की असफलता के बाद 455 नंबर लेवल पूरा हो गया, और आगे की लेवल भी इसी तरह 2-3 प्रय्यास में कुछ 10 प्रय्यास में पार हो गए, और मैं अब 488 में पहुच गया हूँ,800 के पार पहुचने के लिये अभी काफी समय है मगर अभी ये भरोसा है कि मैं 800 के पार पहुच जाऊंगा बस इसके लिए लगातार खेलने की जरुरत है,

कुछ इसी तरह का हाल मेरा स्कुल के समय था जब मैं और मेरे साथ पढ़ने वाली बहन दोनों ये मानते थे की मैं पढाई में तेज हूं और मेरा पढाई में दिमाग ज्यादा है मगर एग्जाम में हमेशा मेरे उससे कम मार्क आते थे,क्योकि वो लगातार पढ़ती थी, मैं बहुत कमसमय देता था पढाई को,मुझसे काम काबिलियत के बावज्जुड उसका रिजल्ट मुझ से बेहतर होता था,

इस बात से जिंदगी की एक बहुत ही बड़ी और गहरी बात का पता चला की कोई भी प्रयास आखरी नहीं होता, हमारी काबिलियत, ज्ञान, सामर्थ्य,साधन सब मिलकर भी हमें तब तक सफलता नहीं दिला सकते जब तक की हमारे प्रयास में निरंतरता नहीं होती, आज अगर हम देखते है कि हमसे कम काबिल, और ज्ञान वाले लोग हमसे आगे की पंक्ति में खड़े है तो वो सिर्फ इसलिए नहीं की उनकी किस्मत बहुत अच्छी है इसलिए क्योंकि उनका प्रय्यास निरंतर है, वो हिम्मत नहीं हारते,अपने काम में लगे होते है,...
जो सिर्फ किस्मत के भरोसे रहते है वो बहुत आगे या बहुत समय तक आगे नहीं रहते, ज्ञान होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसका उपयोग करना,हम में से ज्यादातर लोग कुछ प्रायसो के वाद असफलता की अपना भविष्य मान लेते है ऐसा कुच भी नहीं है बिना चाबी के कोई ताला नहीं बनता,कभी कभी गुच्छे की आखरी चाबी ताला खोल देती है,समाधान हर समस्या का होता है बस हमें नजर नहीं आता, एक गलत चाबी से जितना भी प्रयास किया जाये ताला नहीं खुल सकता, उसकी सही चाबी ढूढने की जरुरत है, अपनी गलतियों में सुधार की जरुरत है, मेहनत कितनी करनी है ये तो जानना चाहिए साथ ही ये भी जानना चाहिए की मेहनत कहा करनी है,

हार जाना उतने शर्म की बात नहीं है जितने शर्म की बात है फिर से प्रयास न् करना,एक बार फिर कोशिश कीजिये,ये मत सोचिये की आप के पास क्या नहीं है,ये सोचिये की आप के पास जो है उसे कैसे बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर सकते है,उसे हासिल करने के लिए जो आपके पास नहीं है,

हमेशा हरिवंश राय बच्चन जी की ये पंक्तियां याद रखे,
"कुछ किये बिना जयजयकार नहीं होती,
मेहनत करने वाले की कभी हार नहीं होती"

100 ग्राम निरंतरता 1 क्विंटल काबिलियत पर भारी होती है...

Tuesday, 29 November 2016

कल जब मैं नहीं रहूंगा

एक मन को छू लेने वाला सन्देश मिला। जोकि अंग्रेजी में था उसको हिंदी में ट्रांसलेट किया है,

*पढ़े एवं विचार करें*

कल जब मैं नहीं रहूँगा
तब तुम मेरे लिए आंसू बहाआगे
पर मुझे पता नही चलेगा
तो उसके बजाय मेरे लिए आज रोओ ना,!!

कल जब मैं नहीं रहूँगा
तब तुम मुझ ओर फूल चढ़ाओगे
पर मैं तो नही देखूंगा
तो उसके बजाय मुझे आज फूल दो ना,!!

कल जब मैं नहीं रहूँगा
तो तुम मेरी तारीफ़ में लफ्ज़ बोलोगे
पर मैं तो नही सुन पाऊंगा
तो उसके बजाय आज तारीफ़ के लफ्ज़ बोलो ना!!

कल जब मैं  नहीं रहूंगा
तो तुम मेरी गलतियां भूल जाओगे
पर मुझे नही पता चलेगा,
तो उसके बजाय आज मेरी गलतियां भूल जाओ ना!!

कल जब मैं नहीं रहूँगा
मेरे बाद तुम मेरे लिए तड़पोगे,
पर मैं नही महसूस करूँगा
तो उसके बजाय आज मेरे लिए तड़पो ना!!

कल जब मैं नहीं रहूँगा
तो तुम तमन्ना करोगे की
काश मेरे साथ और वक़्त बिता पाते
तो उसके बजाय मेरे साथ आज वक़्त बिताओ ना!!

मोरल- हर उस आदमी के लिए वक्त निकालो जिसे आप चाहते है, पसंद करते है, प्यार करते हो,उसकी परवाह कीजिये,उन्हें महसूस कराइए की वो आप के लिए खास है,क्या पता वक्त कब उसको आपके पास से छीन ले और आपके पास पछतावा रह जाए,

🌹🌹🙏🙏🌹🌹

लाइफ मंत्रा : अपने लिए जामवंत खुद बनिए

अपने लिए जामवंत खुद बनिए

हर किसी के जीवन में कौई न कोई दुःख, कोई न कोई परेशानी हमेशा  है,और इनके लिए हमेशा वो भगवान् को कोसता है, लेकिन हकीकत ये है कि हम अपने जिस जीवनशैली  में नुक्स निकालते रहते है उसी जीवन शैली को पाने के लिए कोई दिन रात मंदिरो में माथा टेका कड़ता है, 

हमारी जो कुछ भी समस्याएं है वो सिर्फ हमारी बनायी हुई है, और जैसे हमने समस्याएं बनायीं है वैसे समाधान भी बना सकते है, बस ज़रा सी सोच बदलने की देर है, सदियों से हम पढ़ते आये है कि इंसान भगवान् की श्रेष्ठतम रचना है, कभी सोचा है कि ऐसा क्यों कहा गया है??? ऐसा इस लिए कहा गया है क्योंकि  केवल इंसान ही है वो सदियों से लेकर आज तक अपनी हर समस्या के निदान से  एक नए आविष्कार तक पहुचा है,पाषाण युग से लेकर से लेकर संचार क्रान्ति के इस युग में निरंतर अपने आप को विकसित किया है, इसके लिए इंसान को प्रेरणा कहा से मिलती है,??

एक आम आदमी और एक सफ़ल आदमी के बीच में अंतर सिर्फ इसी प्रेरणा  का है, एक आम आदमी को जहा खुद को प्रेरित करने के लिए बाहरी शक्तियां चाहिए वंही एक सफल  आदमी अपने अंतः प्रेरणा से खुद को प्रेरित करता है, सफलता का धमाका करने के लिए जो हौसले बारूद चाहिए होता है वो प्रायः सभी के पास होता है मगर इसे धमाके को ब्लास्ट करने के लिए जो प्रेरणा की चिंगारी चाहिए होती है वो हर किसी के पास नहीं होती,हम सब अपने आप में उस हनुमान की तरह है जो खुद अपनी शक्ति नहीं जानते, हमें अपनी शक्ति पहचानने के लिए जिस जामवंत की आवश्यता है वो जामवंत हर किसी के पास नहीं है,

अपने बचपन का एक किस्सा याद आता है, बचपन में अपने स्कुल जाने के लिए एक गली से गुजरना पड़ता था,उस गली के बारे में ये प्रचारित था कि वो गली भूतिया है, इसलिए मैं उस गली से कभी अकेला नहीं गुजरता था,हमेशा किसी के साथ जाता था,एक दिन मैं स्कुल जाने के लिए उस गली के पास खड़ा था और ये देख रहा था कि कोई आये तो उसके साथ गली पार करू, तभी अचानक पास खड़े कुछः कुत्ते मुझ पर भौकने लगे और मुझे दौड़ाने लगे , मैं कुत्तों के डर से उस गली में घुस गया और दौड कर गली पार कर ली, गली पार करने के मैंने अपनी सांसे व्यवस्थित की तब मुझे ख़याल आया की मैंने वो गली बिना किसी डर के पार कर ली जिसे मैं भूतिया समझता था, डरता था, मैं खुश् हुआ की एक अप्रत्याशित घटना में मेरे मन से एक बहुत बड़ा डर निकाल दिया,अब मैं समझ गया था कि अगर मैं एक बार कुत्तों के डर के मारे उस गली को पार कर सकता हूँ तो फिर हर  बार कर सकता हूँ,

एक बार गली पार करने  की प्रेरणा कुत्तों का डर थी, और उसके बाद मैंने आपने मन को समझा लिया की ऐसा भूतिया कुछ भी नहीं है सिर्फ मन का वहम है, यही बात हमारी जिंदगी में हर क्षेत्र में लागू होती है हम अक्सर उन बातों से डरते है वो हमने पहले कभी नहीं की, हमारा ये डर काल्पनिक है हमारे दिमाग की उपज मात्र है, हमारे साथ वही होता है जो हम सोचते है, अगर् हम सोचते है कि हम कर सकते है तो हम सही नहीं अगर हम सोचते है कि हम नहीं कर सकते तो भाई हम सही है,

कई कंपनियां सेल्स प्रमोशन का निरंतर ऑफर देती है वो हमें आधिक् कमीशन का  लालच दे कर सेल्स प्रमोशन के लिए प्रेरित करती है, अधिक कमीशन खत्म,सेल्स खत्म,कई कंपनिया टारगेट का डर दिखा कर हमें सेल्स के लिए प्रेरित करती है, टारगेट का डर खत्म सेल्स खत्म,हम तभी कुछ अतिरिक्त सेल्स करने के लिए प्रेरित होते है जब कोई बाहरी अतिरिक्त फोर्स प्रेरित करे,जब वो बाहरी फाॅर्स खत्म हमारी प्रेरणा खत्म,जो बातें हम बाहरी प्रेरणा से कर सकते है अगर वही बाते अंदुरनी प्रेरणा से प्रेरित हो कर करे तो हमारी प्रेरणा कभी ख़त्म नहीं होगी,

हमारे अंदर के बारूद और ताकत को उपयोग करने के लिए जो चिंगारी चाहिए उसे खुद पैदा कीजिये, जो काम आप खुद कर सकते है उसको दुसरो को भरोसे मत चाहिए, अपने आप से प्रेरणा लीजिए,स्यवं खुद को प्रेरित करिए,

हर इंसान की शारीरिक संरचना सामान है फिर क्यों कुछ लोग दिन प्रतिदिन सफलता की बुलंदिया छुते है और कुछ लोग अभाव में जीने को ही अपनी नियति मानकर संतुष्टि कर लेते है, हर कोई बड़ा और सफल सिर्फ इस लिए नहीं होता की उसका भाग्य अच्छा था बल्कि इसलिए की उसका प्रयास और खुद को प्रेरित करने का तरीकाअच्छा था, आप प्रारंभ तो कीजिये, काम अपने आप हो जाएंगे, आप अपने आप पर भरोसा रखिये पूरी दुनिया आप पर भरोषा करेंगी,

आपने कभी महसूस किया है कि गुस्से में हमारी ताकत कैसे असीमित ढंग से बढ़ जाती है, हम अपने से कही ज्यादा वजनी चीजो को उठा देते है, अपने शारीरिक शक्ति से कही ज्यादा क्षमता कें कार्य कर सकते है, ये शक्ति कहा थी, हमारे अंदर ही थी, जो की एक विशेष परिस्थिति में शरीर से बाहर  आई, इस विशेष परिस्थितयो का निर्माण हम खुद भी कर सकते है, हममे जितनी क्षमता है हम उसका 20 % भी उपयोग करे यो इतिहास रच सकते है,हम में शारिरीक या मानसिक शक्ति कितनी है इसका पता सिर्फ हमें तभी चलता है जब हम पर कोई मुसीबत आती है, वही शक्ति अगर हम अपने आप में साधरण परिस्थितियों में उत्पन्न कर सके तो हमारी सफलता निश्चित है,

अपनी शक्ति पहचानिए,..
अपने भीतर के हनुमान को पहचानिए
आपको हर समय जामवंत नहीं मिलेगा
अपने लिए जामवंत खुद बनिए...

आप कर सकते है...
आप इंसान है...