Monday, 9 January 2017

फिर से यादआया गुजरा ज़माना

एक पुरानी कविता..
आज याद आयी...कुछ अभी के हालातों पर एडिटिंग के साथ मेरे सभी  fb मित्रो के लिए...पेश-ए-खिदमत है..

यु तेरे साथ बाते बनाना अच्छा लगा..
यु पुरानी यादो का याद आना अच्छा लगा
अपने दिल का यु हाल बताना अच्छा लगा
वो लड़कपन का बिता ज़माना अच्छा लगा,

चोरी चोरी छुप छुप के तुझसे वो बाते अच्छी लगी
जो बिना झिझक के कह दी जो सारी बातें सच्ची लगी,
वो तेरे इंतज़ार का पल भी कितना अच्छा था..
दो पल का ही सही ये साथ मगर सच्चा था

ये मेरी कमजोरी है कि मेरा दिल पर काबू नहीं होता
बाते वक्त पर खत्म हो जाए तो दिल बेकाबू नहीं होता
जिस फूल को माली अपने दिल से जोड़ लेते है
उस फूल को वो अक्सर शाखों में ही छोड़ देते है..

कुछ फैसले दिल से नहीं दिमाग से किया करते है,
जिन्हें दिल दिया हो उन्हें कभी परेशान नहीं करते है
तुम अपनी दुनिया में खुश रहो, इससे खुशि की और बात क्या है??
तेरी एक ख़ुशी के आगे मेरे लाखों गम की औकात क्या है??

तुम सालों से जुदा थी उसकी आदत हो गयी थी
न जाने इन दो पलो में क्यों तुम से इतनी चाहत हो गई थी
दिल को राहत तो थी और मेरे दिल को सुकून भी था
तुमसे बाते करने का इस दिल को जूनून भी था...

लेकिन वो वक्त जुदा था और ये एक अलग दौर है..
कुछ पल साथ चले हम मगर तुम्हारी मंज़िल कोई और है...

मैं फिर से तुमसे अजनबी बन जाऊंगा
फिर से अपनी अलग दुनिया बसाउंगा..
तुमने मुझे शायद भूल से याद किया होगा
मैं तुम्हे जान बूझ कर भूल जाऊंगा.....

फिर भी शायद दिल के किसी कोने में ये आस रहेगी..
झूठी तसल्ली रहेगी, तुमसे मिलने की प्यास रहेगी
किसी मोड़ पर शायद फिर अपनी मुलाकात हो..
शायद एक भूल और हो तुमसे और अपनी बात हो..

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