Monday, 9 January 2017

एक कविता मेरी पत्नी की नजर से

अपनी पत्नी को समर्पित ये कविता,
एक पत्नी की नजर से दुनिया को देखने की कोशिश की है..ये लिखने की कोशिश की है कि वो मुझसे क्या कहना चाहती है,

मैं तुम्हारे लिए बाबुल का घर छोड़ के आयी है,
उनसे सारे रिश्ते नाते उनसे तोड़ के आयी हु,

मैं ये नहीं कहती की तुमने मुझे प्यार नहीं दिया
भूल सकू मायको को इतना दुलार नहीं दिया

मगर जो मिल जाए ख्वाहिश उससे ज्यादा की होती है,
बस कभी कभी पूछ लिया करो की तू क्यों रोती है

इतने प्यारे हो तुम की तुम्हारी आदत सी हो गई है,
बस तुम्हे रोज एक बार छू लू ये चाहत सी हो गई है,

कभी कभी घर, बच्चे, चूल्हे चौके से थक सी जाती हूँ
खुद को अकेला सोच कर इस जिंदगी से पक सी जाती हूं

बहुत फ़िक्र होती है जब तुम बस आया कह कर 1 घंटे तक नहीं आते,
अच्छा नहीं लगता जब अपनीं दुःख और तकलीफे मुझे नहीं बताते,

इसलिए सजती सवारती हु की तुम एक झलक निहारोगे
इसलिए रूठती हो तुमसे की की तुम मुझे मनाओगे,

वैसे मेरी दुनिया तुम हो, और तुम्हारा ये संसार है,
तुम्हारा 'सुनती हो" कहना,नयी ऊर्जा का संचार है

मैं बिमार रहु तू बस थोड़ी देर मेरे पास बैठ जाया करो,
मेरी भूख मिट जायेगी बस तुम ठीक से खाया करो,

जब तुम अच्छे दीखते हो तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है,
तुम्हारी उदासियाँ मुझे तड़पाती है,बड़ी तकलीफ होती है,

बड़ा अच्छा लगता है जब तुम मेरा बनाया हुआ खाना सराहते हो,
बस कभी कभी जता भी दिया करो की मुझे कितना चाहते हो,

अजनबी थे तुम कभी,मगर भरोसा तुम पर खुद से ज्यादा है
अब तेरे सहारे ही मेरा भविष्य,तू ही मेरा भाग्य निर्माता है,

No comments:

Post a Comment

आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,