लाइफ मंत्रा: शिकायत नही नियामत गिनिए
एक पुरानी कहावत है कि *जरूरते तो फकीरों की भी पूरी हो जाते है और ख्वाहिशें तो राजाओ की भी अधूरी हो रह जाती है*,इंसान के जीवन मे अगर जरूरते आरिथमेटिक प्रोग्रेसन (1,2,3,4...)के अनुपात में बढ़ रही है तो ख्वाइशें जॉमेट्रिकप्रोग्रेसिन(1,2,4,8,16...) के अनुपात में,और यही बढ़ता हुआ गैप जीवन मे सुख शांति पाने के बीचमे बाधक है,यही बढ़ती हुई इच्छाएं रोज जीवन को क्रिटिकल बना रही है,हमारे पास जो नही है उसे पाने की चाहत में जो हमारे पास है हम उसकी भी कीमत नही समझते जो हमारे पास है उसे भी एन्जॉय नही करते, इंसान का स्वभाव है कि वो उन चीजों को ज्यादा महत्व देता है जो उसके पास नही होती, उन चीजों को एन्जॉय करता है जो उसके अलावा किसी के पास नही होती,इंसान की मौलिक सोच है खुद को औरो से बेहतर एवं अच्छा दिखाने की,ये औरो से बड़ा होने का अहसास सारी समस्याओं का मूल कारण है,
हम सदैव और से बेहतर दिखने में इतने व्यस्त हो जाते है कि बेहतर बनना भूल जाते है, स्वयं को अपग्रेड करना भूल जाते है,हमे ऐसा लगता है कि हमारे पास स्वयं को बेहतर बनाने के लिए कोई साधन ही नही बचा, जबकि ऐसा कुछ भी नही है, हर व्यक्ति के पास अगर कुछ कमी है तो कुछ विशेष भी अवश्य है,
एक दुर्घटना में एक घर का एक मात्र जवान बेटा चल बसा,उसके घरवालों को उसके इन्सुरेंस के 1 करोड़ रुपये मिले, क्या आप उन घरवालों को खुशकिस्मत कहेंगे की उन्हें बिना कुछ भी किये 1 करोड़ रुपये की राशि मिल गयी,आज भारत के अधिकतर मध्यम वर्गीय परिवार एक सुविधापूर्ण जीवन यापन कर रहे है लेकिन दुखी है,क्योकि उनके पास जितना है उससे कुछ ज्यादा उनके पड़ोसी के पास है, वो खुद से नही अपने पड़ोसियों से बेहतर बनना चाहते है, उन्हें काणा होना मंजूर है बशर्ते पडोशी अंधा हो जाये,प्रगति खुद को बेहतर बनाने में है, अगर आप आज पहलेसे बेहतर मानसिक, शारीरिक,आर्थिक एवं समजिकस्थिति में है तो ये आपकी प्रगति है,अपनी खुशियों का मापदंड तय करने के अपने पैरामीटर बदलिए,खुशी और संतुष्टि एक आंतरिक भावना है इसे अहं की संतुष्टि से नही पा जा सकता, आत्म संतुष्टि एवं अहं संतुष्टि दो अलग अलग चीजे है,आत्म संतुष्टि मतलब खुदको ऊपर उठाने का भाव,अहम संतसुष्टि मतलब किसी की नीचे गिराकर खुद को ऊपर समझना,
ये प्रकृति का जीवन चक्र है कि गाँव वाला कस्बे में बसना चाहता है,कस्बे वाला शहर में, शहर वाला महानगर में और महानगर वाला शांति की तलाश में गाँव मे फर्म हाउस बना रहा है,ट्रावेल्स के चाहे जितने साधन आ जाए पैदल चलने का जो मजा है वो किसी मे नही, वस्तुओं का ,भौतिकता वादी चीजो का स्वाद तभी है जब तक हम उनको भोगने की स्थिति में रहते है वरना वो हमारे लिए सम्पति नही विपत्ति का कार्य करती है,इस बात से निराश हो न ही आपके पास अच्छे जूते नही है, इस बात का शुक्र मनाए की कम से कम आपके पास पांव तो है,इंसान का मनोविज्ञान है कि वो मुफ्त मिली चीजो की कदर नही करता क्योकि वो सहज ही हासिल है,जबकि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण वो ही चीजे है,एक अच्छा परिवार, घनिष्ठ मित्र, अच्छा परिवेश,स्वस्थ शरीर ये सब हमे मुफ्त में मिले है तो इसकी कदर करिए,क्योकि ये वो चीजे है जिसके लिए करोड़ो लोग रोज उठाकर मंदिर/ मस्जिदों में पूजा अर्चना करते है,
हमारी विडम्बना है कि हम किसी भी चीज या व्यक्ति के मूल्य का पता हमे उसे खोने के बाद ही चलता है,जब वो हमारे पास होती है तो उसे एन्जॉय नही करते जब नही होती तो सिर्फ पछतावा होता है,हम में से अधिकतर व्यक्तियों के पास 1- 2या इससे अधिक लाइफ इन्सुरेंस की पालिसी है, हमने बहुत अच्छी प्लानिंग की है अपने मरने की बस जीने की प्लानिंग करना भूल गए है,जीवन इन बातों से नही बनता की आपको जीवन से क्या मिला थाइस बात से बनता है कि जो भी मिला उसका उपयोग आपने कैसे किया,
दो पंक्तियो में सार ये है कि जो मिला उसके लिये भगवान का शुक्र कीजिये,उसका उपयोग उस चीज को पाने के लिए किजिये जो आप चाहते है,अगर आपको अभि भी ये सब बातें समझ में नही आती तो एक बार ये नीचे दिए गए गाने को ध्यान से सुनलियेगा,
* दुनिया मे कितना गम है,मेरा गम कितना गम है....
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