Monday, 20 June 2022

अपरिग्रह: सांसारिक जीवन मे सन्यासी होने का भाव

लाइफ मंत्रा: अपरिग्रह -सांसारिक जीवन में सन्यासी होने का मूलमंत्र

विकाश खेमका
कांटाबांजी(ओडिशा)

जैन धर्म के दो मूल मंत्र हूं,अहिंसा एवं अपरिग्रह, गांधी जी शुरू से है हमारे पाठ्य क्रम में शामिल है और ये उनकी जीवनी को निरंतर पढाए जाने का कारण है हमारे लिए अहिंसा कोई नया शब्द नही है, लेकिन अपरिग्रह शब्द शायद ही जैन धर्म से न जुड़े हुए व्यक्ति ने सुना भी होगा, 

अपरिग्रह का शाब्दिक अर्थ है किसी वस्तु को ग्रहण न करना,या आवश्यकता से अधिक न लेना, उदाहरण के लिए जितना आवश्यक हो खाने के लिए उतना ही लेना अपरिग्रह है, यह छोटा सा शब्द अपने आप मे कई वर्तमान की कई समास्याओं के मूल हल समाहित किये हुए है,अकसर हम अपने धर्म को सिर्फ एक आध्यत्मिक दृष्टिकोण  से देखते है जबकि धर्म सुख- शांति से  जीवन व्यतीत करने के लिए एक आदर्श जीवन शैली की सीख है,हम सांसारिक लोग है हम सन्यासी नही हो सकते,अपरिग्रह संसार मे रहकर सन्यास की भावना बनाये रखने का मंत्र है,एक सन्यासी की मूलभावना होती है "सर्वे भवन्तः सुखिनः,सर्वे भवन्तु निरामय:" और अपरिग्रह इसी भाव को सांसारिक जीवन मे प्राप्त करने का मंत्र है, 

जैसा कि इसका शाब्दिक अर्थ हैं "आवश्यकता से अधिक वस्तु का संचय न करना " लेकिन इसका सांसारिक जीवन के संदर्भ में ये सही अर्थ नही हो सकता। इसका सही अर्थ ये हैं कि किसी भी वस्तु या व्यक्ति या कोई भी सांसारिक वस्तुओं से टूटना हैं। यदि आपको किसी वस्तु से प्रेम हैंं, लगाव हैं उसके खो जाने से दुःख होता हैं तो इसका मतलब हैंं आपको इससे परिग्रह हैं ओर यही परिग्रह दुःख का कारण हैं। 

यदि इसका अर्थ ये मान लिया जाए कि आवश्यकता से अधिक वस्तु का संचय न करना तो इसका मतलब हुआ जो आपके पास आवश्यक वस्तु है उसी से आपको परिग्रह हो जाएगा और उसमें से किसी एक वस्तु के जाने से भी आपको दुख होगा तो फिर ये अपरिग्रह का सही अर्थ कभी नही ही सकता। 

आपके पास कितना भी धन या सम्पति हैं, ऐश्वर्य हैं लेकिन आपको इसके जाने का कोई गम या दुःख नही हैं तो फिर कोई चिंता की बात नही लेकिन यहां प्रश्न उठता हैं कि यदि आपको परिग्रह नही हैं तो धन का संचय क्यों किया। धन का संचय आपने अपने सुख के लिए, ऐश्वर्य के लिए ओर आराम की जिंदगी जीने के लिए किया हैं। आप जानते हैं पैसा कमाना ओर खर्च करना और दान देना लेकिन यदि आप इससे परीग्रह रखते हैं, उसके जाने से दर्द होता हैं, दान देने से घबराते हैं तो फिर आप अपरिग्रह का कभी पालन नही कर सकते। 

जब हम आवश्यकता से अधिक संचय करते है तो फिर आप सन्सार के बंधन में बांध लेते है,फिर हम वस्तुओं को व्यक्तियो से अधिक महत्व देने लगते है,जो की आगे चलकर पतन एवं तनाव का कारण बनता है,वर्तमान जीवन मे मानसिक अशांति,तनाव,दुखः का एक बहुत बड़ा कारण है भौतिकतावाद, मतलब भौतिक चीजो को बहुत ज्यादा महत्व देना,हम गाड़ी,बंगला,एवं विलासपूर्ण जीवन शैली के लिए दिन रात कमाने में लगे रहते है,क्योकि हमे लगता है कि सुख इसी में है,लेकिन अपरिग्रह का भाव हमे सिखाता है कि सुख पाने में नही त्यागने में है, खूब कमाइये मगर उसके प्रति मन मे अशक्ति न लाना अपरिग्रह है, मन में अपरिग्रह की भावना हो तो जीवन आसान हो जाता है,"

आम जीवन मे हमने जीवन मे धर्म को सिर्फ आध्यात्म और आडंबर से जोड़ लिया है जबकि धर्म मनुष्य को एक आदर्श जीवन शैली के लिए प्रेरित करने वाला एक भाव है,एक अच्छा और बेहतर मनुष्य बनाने के लिए धर्म से जुड़िये इसकी मूलभावना को समझिये,

धन्यवाद,

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