Sunday, 25 September 2022

ऑफलाइन जिंदगी

लाइफ मंत्रा: ऑफलाइन जिंदगी,

विकाश खेमका
काँटाबाजी (ओडिशा)

टेक्नोलॉजी की पहुच से दूर एक अपना ठिकाना था,
अपनो के पास रहते थे  वो भी क्या जमाना था,

मोबाइल के अलार्म नही मां की दुलार से उठता था,
इन भर का मोटिवेसन पिताजी की एक डांट से मिलता था,

ऑनलाइन क्लास नही सरकारी स्कूल हुआ करते थे
दोस्तो के साथ कितने कितनी मस्ती किया करते थे,

वेदर फोररकास्ट नही था बारिश में भीगने का मजा था,
बिना व्हाट्सअप के भी दोस्तो का दरबार सजा था,

न आज तक,न जी न्यूज , न कोई समाचार था,
अपना फेवोराइट कार्यक्रम  तो चित्रहार था,

न पुब्जी,न प्रीफ़ायर,ना कैंडी क्रश, न यू ट्यूब था
अपना लिए मजा तो गिल्ली डंडा और खेल खुद था,

कुछ भी बोल देना मुश्किलों का घर नही था,
कॉल रिकॉर्ड और स्क्रीन शॉट का डर नही था,

घर मे फ्रिज नही था,कूलर नही था, टी वी नही थी
इमेज बहुत बढ़िया थी अपनी भले ही सेल्फी नाही थी,

सुविधा कम थी साधन काम थे लेकिन सुकून था,
अपने लिए तो सुप्रीम कोर्ट पिताजी का हुकम था,

आपसी चुगली-चट्ठा था, ताका झांकी थी,
अपने लिए गूगल पड़ोस की काकी थी,

बेशक मैगी,पिज़्ज़ा,बर्गर का स्वाद नही था
मगर मां में हाथ के खाने का कोई जवाब नही था

न फेसबुक,न ट्विटर न इंस्टाग्राम न जी मेल था,
मगर फिर भी बहुत पक्का आपसी मेलजोल था,

संबंध मजबूरी से नही मजबूती से निभाये जाते थे
शादीयो तंक में टेंट भी खुद ही लगाए जाते थे,

त्योहारो में हर्ष था,आंनद था ,उमंगे थी उल्लास था,
आज त्यौहार भी फिके है पहले हर दिन खास था,

पहले खुशियां थी आज कल सिर्फ खुशियों का वहम है,
पहले जिंदगी में खुशियों के पल थे अब हरपल में जिंदगी कम है,

सहज थी, सीधी थी, सरल थी,सच्ची थी,
जिंदगी जब *ऑफलाइन* थी, काफी अच्छी थी,

Wednesday, 29 June 2022

लाइफ मंत्रा: जिंदगी भाग्य(chance) से ज्यादा चुनाव(choice) है

लाइफ मंत्रा: जिंदगी भाग्य(chance) से ज्यादा चुनाव(choice) है

विकाश खेमका
कांटाबांजी(ओडिशा)

जीवन मे सफलता के ताले को खोलने के लिए कर्म और भाग्य की दो चाबियां लगतीहै, इसमें से एक चाबी हमारे पास रहती है,एक ईश्वर के पास,ईश्वर अपनी चाबी कभी न कभी अवश्य लगता है,और शायद वो समय हम अपनी चाबी को खोजने में लगा देते है,हमारी जिंदगी कैसी होगी ये अक्सर भाग्य नही हमारी चॉइस निर्धारित करती है,

हम रोज ये तय करते है कि आज का दिन कैसा होगा,हमारा भविष्य कैसा होगा,ये बात सही है कि जिंदगी अनिश्चित है,कभी भी कुछ भी हो सकता है,लेकिन हम उन अनिश्चितताओं की तैयारी तो कर ही सकते है,सिर्फ बारिश के पानी के भरोसे खेती करना,और आवश्यकता के समय पानी न मिलने के कारण फसल का सही न होना,इसे सिर्फ भाग्य का दोष तो नही कहा जा सकता,अगर हम समय पर उस पानी को संचय कर वैकल्पिक साधन जैसे  बोरवेल या अन्य किसी माध्यम से  पानी की आपातकालीन व्यवस्था रखे तो हम अच्छी फसल पा सकते थे, एक अच्छी प्लानिंग से हम किसी अनहोनी को टाल तो नही सकते लेकिन इसके दुष्प्रभाव को कम तो कर ही सकते है,ये प्लानिंग ही हमारी वो चॉइस होती है जो  अकसर हमारा परिणाम तय करती है,

अगर हम सुबह लेट उठते है,तो अपने लिए एक व्यस्त शेड्यूल खुद तय करते है,

अगर हम थोड़ा योग या व्य्यायम नही करते है तो अपने लिये मोटापा खुद तय करते है,

अगर हम अपने खानपान को सही नही रखते है तो अपने लिए एसिडिटी,शुगर,बीपी जैसे बीमारियां खुद तय करते है,

अगर हम रफ़ गाड़ी चलाते है अपने लिए एक्सीडेंट खुद तय करते है,

अगर हम कमाई से अधिक खर्च करते है तो अपने लिए कर्ज खुद तय करते है,

अगर हम आवश्यकता से अधिक बात करते है तो अपने लिए असम्मान स्वयं तय करते है,

अगर हम किसी का साथ नही देते तो अपने लिए अकेलापन स्वयं तय करते है,

अगर हम अपने बच्चों को समय नही देते तो अपना खराब बुढापा स्वयंतय करते है,

अगर आप अपने जरूरी कार्यो को टालते है तो अपने लिए मुसीबते स्वयं तय करते है,

अगर हम कोई व्यसन पालते है तो अपने लिए अपना खराब स्वास्थ्य खुद तय करते है,

अगर हम अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास नही करते तो अपने जीवन को कमतर बनाना खुद तय करते है,

भाग्य एक बहुत बड़ी चीज है लेकिन सब कुछ नही है,भगवान की आपसे कोई पर्सनल दुश्मनी नही है कि आपको  हमेशा दुर्भाग्य से पीड़ित रखेगा, ईश्वर सबको अपने कर्मो के हिसाब से ही भाग्य बाटता है,माझी - the माउंटेन मेंन  फिल्म का एक संवाद याद आता है की हमेशा भगवान के भरोसे न बैठिए क्या पता भगवान खुद हमारे भरोसे बैठा हो, कर्मवादी नजरिया बनाइये, भाग्य आपके साथ होगा,

"हाथों की लकीरों को तकदीर न संमझ मेरे दोस्त,
तकदीर तो उनकी भी होती है,जिनके हाथ नही होते

Tuesday, 21 June 2022

लाइफ मंत्रा: किसी को पूर्ण रुप से गलत साबित करने से पहले उसका नजरिया भी जान लीजिए

लाइफ मंत्रा: किसी को पूर्ण रूप से गलत साबित करने से पहले उसका नजरिया जान लेना चाहिए,

कक्षा दूसरी में पढन वाले अतुल से कक्षा शिक्षिका ने गणित का एक सवाल पूछा "" अतुल, यदि में तुमको एक सेव, एवं एक सेव एवं एक सेव दूं , तो तुम्हारे पास कितने सेव हो जावेगें ?

अतुल "" मेडम जी... चार सेव ""

मेडम को लगा कि अतुल ने सवाल को ठीक से समझा नहीं है..उसने फिर से सवाल को दोहराया "" अतुल , घ्यान से सुनो..यदि में तुमको एक सेव दूं ..फिर एक सेव दूं...फिर एक सेव दूं ..तो तुम्हारे पास कितने सेव हो जायेगे.

छोटे अतुल ने अपनी उंगलियों पर केलकुलेट किया... उत्तर दिया "" चार सेव ""

मेडम झुझंला गई..उन्होने अपनी झुझलाहट को कंट्रोल किया एवं सोचा कि शायद छोटे अतुल को सेव पंसद नहीं है इसलिये वह सवाल पर घ्यान ही नहीं दे रहा है..उन्हे याद आया कि अतुल आम बहुत पंसद करता है... उन्होने फिर अपना सवाल दोहराया ...
बेटा अतुल..घ्यान से सुनो...यदि में तुमको एक आम फिर एक आम एवं फिर एक आम दूं तो ..तुम्हारे पास कितने आम हो जावेगें ?

छोटे अतुल ने कांउट किया "" मेडम जी तीन आम ""

मेडम का चेहरा..खुशी से दमक उठा...चेहरे पर मुस्काराहट आ गई..उन्हे अपने प्रयास पर गर्व महसूस हुआ...कि चलो छात्र की समझ में गणित आ या तो.

उन्होने फिर से अतुल से पूछा अच्छा अब बोलो ""यदि में तुमको एक सेव दूं ..फिर एक सेव दूं...फिर एक सेव दूं ..तो तुम्हारे पास कितने सेव हो जायेगे""

अतुल ने सहम कर उत्तर दिया "" मेडम जी चार ""

मेडम झल्ला गई....उन्होने ने झल्लाकर कहा "" कैसे अतुल..कैसे ""

मासूम अतुल सहम गया...उसने अपना हाथ सहमते हुये अपने स्कूल बेग में डाला..उसके हाथ में एक सेव था ..उसने मेडम को दिखाते हुये कहा सहम कर कहा "" एक सेव मेरे पास पहले से है ""

कहानी का  सार यह है कि यदि कोई व्यक्ति आपके सवाल के जबाब में आपका अपेक्षित उत्तर नहीं देता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह गलत है..उसे पूर्ण् रूप से गलत घोषित करने से पूर्व उसका नजरिया जान लेना जरूरी है,हम अक्सर लोग से उनकी राय नही सहमति चाहते है,ये जीवन की खूबसूरती है कि किसी विषय पर आपसे विपरीत विचार धारा रख करभी दोनों सही हो सकते है,

Monday, 20 June 2022

लाइफ मंत्रा: बिज़नेस मंत्रा(cash is king)

बिज़नेस में अगर आप पैसे सही समय पर देते है तो आपको cash डिस्काउंट के साथसाथ कई और चीजे भी मिलती है जो कि बहुत ही कीमती है

आपको मिलती है dignity(इज्जत) जो कि आपके व्यापार में आपको आगे बढ़ने में मदद करती है,

आपको मिलती है priority(प्राथमिकता) जो कि व्यापार में आपका बहुत फायदा करवाती है,

आपको मिलती है certinity(निश्चतता), की आपने आर्डर दिया है तो आपका माल जरूर आएगा,

आपको मिलती है avilability(उपलब्धता) आपके ऑडर को व्यपारीं सीरियस लेता है और हर संभव कोशिश करता है, आपके आर्डर को पूरा करने की,

आपको मिलती है acceptibility(स्वीकार्यता),हर कोई आपको पसंद करता है और आपसे जुडना चाहता है,

आपको मिलती है credibility(विश्वसनीयता) हर कोई आप पर भरोसा करता है,

आपको मिलती flexibility(लचीलापन),किसी की गुड़ बुक में आने के बाद आप उसे आने हिसाब से मोड़ सकते है,

आपको दिया गया उधार सिर्फ एक सुविधा है,इसका दुरुपयोग न करे,सही समय पर पेमेंट करे,अपने ब्यापार को बढ़ाना आपके हाथ मे है,

विकाश खेमका
खेमका ऑटो,
कांटाबांजी(ओडिशा)

लाइफ मंत्रा: जिंदगी आज कल(40+)

लाइफ मंत्रा: जिंदगी आज कल

सूरज कभी नही डूबता ये सिर्फ हमारा भ्रम होता है असल मे ये पृथ्वी ही होती है जो सूरज की और से मुह मोड़ लेती है जिसे हम रात कहते है,ऐसे ही जिंदगी कभी नही बदलती बस ये हम ही है जो जिंदगी के लिए बदल गए है क्योंकि हमारी सोच,हमारा नजरिया जिंदगी केप्रति बदल गया है,

अब त्यौहार में उल्लास इसलिए नही है की हमारे मन मे त्यौहारों के लिए उत्साह ही नही है,रीमझिम की बरसाती बूंदे जो कभी मन मे रूमानी तरंगे उत्पन्न करती थी वो आज कल काम मे असुविधा उत्पन्न करने वाली चिड़चिड़ाहट का कारण बनती है,रिश्तेदारों से शादियों एवं पार्टियों में मुलाकात बस औपचारिकता में लिए है,दोस्त यार से बेवजह मिले जमाना सा गुजर गया, जिनसे मिले बिना दिन अधुरा सा लगता था आज कल उनसे महीनों मुलाकात नही होती,शौक ने जिम्मेदारियों के आगे हार ली है, शौक पूरे करना बोझ लगने लगा है,शरीर चार कदम चलने पर वक्त बेवक्त अहसास दिला देता है कि अब चालीस पूरे हो गए है,खाना क्या और कितना खाना है ये जायका नही एसिडिटी तय करती है,ख्वाहिशें और पेट पर कंट्रोल ही नही रहा,मुस्कुराने और हसने के लिए वजह ढूंढनी पड़ती है,अपना जन्मदिन आज कल कोई खास दिन नही रहा, आज कल ये नही गिनते की कितने सालके हो गए अब तो ये हिसाब लगाते है कि कितने बचे है? जो मेरे साथ हो रहा है ये सिर्फ मेरे साथ ही नही हो रहा है,ये लगभग मेरी उम्र के हर व्यक्ति केसाथ हो रहा है,बस खुद पर बितती है तो पता चलता है,अब खुशी खुश रहने में नही खुश रखने में है,सारी तकलीफे बच्चों की तुतलाती बाते सुनकर दूर हो जाती है,

कुल मिलाकर जीवन इसलिए बदल गया है क्योंकि अब हम अपने लिए नही अपने परिवारके लिए जीते है,कुल मिलाकर ये परिपक्व होने का अहसास एक संतुष्टि तो देता है लेकिन कही न कही बचपन का बिछड़ जाना का अहसास कुछ तकलीफ देह तो है ही...

खैर जीवन जैसा भी है..बेहतरीन है
अभी इसी नियम पर जीना है की

यू न अपने आप को कभी शर्मिंदा रखिये
उम्र को हराना है तो कोई शौक जिंदा रखिये!!!

एंजोयिंग 40+ लाइफ

लाइफ मंत्रा: आपके ब्रेक आपकी गति का निर्णय करते है

लाइफ मंत्रा: आपके ब्रेक आपकी स्पीड का निर्णय करते है

अगर मैं कहूँ की कोई बताएगा कि हम जो अपनी गाड़ी में ब्रेक लगाते हैं उसका काम क्या है?? सब लोगों का अलग अलग जवाब होगा,कोई कहेगा,-गाड़ी को कंट्रोल करने के लिए,कोई कहेगा गाड़ी की स्पीड कम करने के लिए ,स्पीड पर नियंत्रण के लिए , गाड़ी को रोकने के लिए,

अगर मैं कहूं कि हम गाड़ी में ब्रेक गाड़ी की स्पीड बढ़ाने के लगाते हैं तो??अगर मैं कहु की ब्रेक से गाड़ी की स्पीड बढ़ सकती है तो?? सबको बहुत आश्चर्य होगा, कैसी बातें कर रहा है, ब्रेक का काम तो गाड़ी को रोक के रखना है,

कुछ कंफ्यूसन है,!!!!

तो सोचिए की आप कोई गाड़ी चला रहे हैं जिसमे आप को पता है कि ब्रेक नही है, तो क्या आप स्पीड चला पाएंगे,आपको हमेशा ये डर रहेगा कि मेरा एक्सीडेंट हो जाएगा ,मैं गिर जाऊंगा, इसलिए आप संभल कर गाड़ी चलाते है,कम स्पीड से चलाते है, अभी सोचिए कि आपके पास एक अच्छे ब्रेक वाली गाड़ी हो तो आप कितनी स्पीड से चला सकते है,क्योकि आपको पता है कि आपके पास कंट्रोल है,आप जब चाहे गाड़ी रोक सकते है,सब कुछ आपके कंट्रोल में है ये सोच आपका आत्मविश्वास बढ़ाती है और आप को तेज गति से चलने के लिए हौसला देती है,आप अच्छे ब्रेक के साथ गाड़ी की अधिकतम सीमा तक तेज चल सकते हैं,

बस यही बात जिंदगी में भी लागू होती है,जिंदगी में माँ बाप की डांट,बड़ो की रोक टोक,अनुशाशन,नियम कानून ये सभी ब्रेक है,जो कि हमे ऐसा लगता है कि हमे तेज चलने से,आगे बढ़ने से रोक रहे है,लेकिन असल मे ये हमारी जीवन की गति को बढ़ाने का काम करते है, इस ब्रेक के बिना हम अपने जीवन मे बहुत आगे नही बढ़ सकते,बहुत तेजी से नही बढ़ सकते, हमारा एक्सीडेंट होना तय है,जो पतंग अपनी डोरियों से जुड़ कर नही रहती,जो पतंग से सोच लेती है कि डोर मुझे ऊपर जाने से रोक रही है,वो पतंग जल्द ही जमीन पर होती है, ये ब्रेक जीवन मे गति बनाये रखने का काम करते है,ये बात जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है चाहे वो सामाजिक हो, पारिवारिक हो, आर्थिक हो ,अगर हमें आगे बढ़ना है तो हमेशा अपने ब्रेक पर ध्यान देना होगा,क्योकि यही ब्रेक हमे जीवन के सफ़र मे आत्मविश्वास और हौसला देता है और आपकी  भविष्य की दशा और दिशा तय करता है,

धन्यवाद
विकाश खेमका

लाइफ मंत्रा: शिकायत नही, नियामत गिनिये

लाइफ मंत्रा: शिकायत नही नियामत गिनिए

एक पुरानी कहावत है कि *जरूरते तो फकीरों की भी पूरी हो जाते है और ख्वाहिशें तो राजाओ की भी अधूरी हो रह जाती है*,इंसान के जीवन मे अगर जरूरते आरिथमेटिक प्रोग्रेसन (1,2,3,4...)के अनुपात में बढ़ रही है तो ख्वाइशें जॉमेट्रिकप्रोग्रेसिन(1,2,4,8,16...) के अनुपात में,और यही बढ़ता हुआ गैप जीवन मे सुख शांति पाने के बीचमे बाधक है,यही बढ़ती हुई इच्छाएं रोज जीवन को क्रिटिकल बना रही है,हमारे पास जो नही है उसे पाने की चाहत में जो हमारे पास है हम उसकी भी कीमत नही समझते जो हमारे पास है उसे भी एन्जॉय नही करते, इंसान का स्वभाव है कि वो उन चीजों को ज्यादा महत्व देता है जो उसके पास नही होती, उन चीजों को एन्जॉय करता है जो उसके अलावा किसी के पास नही होती,इंसान की मौलिक सोच है खुद को औरो से बेहतर एवं अच्छा दिखाने की,ये औरो से बड़ा होने का अहसास सारी समस्याओं का मूल कारण है,

हम सदैव और से बेहतर दिखने में इतने व्यस्त हो जाते है कि बेहतर बनना भूल जाते है, स्वयं को अपग्रेड करना भूल जाते है,हमे ऐसा लगता है कि हमारे पास स्वयं को बेहतर बनाने के लिए कोई साधन ही नही बचा, जबकि ऐसा कुछ भी नही है, हर व्यक्ति के पास अगर कुछ कमी है तो कुछ विशेष भी अवश्य है,

एक दुर्घटना में एक घर का एक मात्र जवान बेटा चल बसा,उसके घरवालों को उसके इन्सुरेंस के 1 करोड़ रुपये मिले, क्या आप उन घरवालों को खुशकिस्मत कहेंगे की उन्हें बिना कुछ भी किये 1 करोड़ रुपये की राशि मिल गयी,आज भारत के अधिकतर मध्यम वर्गीय परिवार एक सुविधापूर्ण जीवन यापन कर रहे है लेकिन दुखी है,क्योकि उनके पास जितना है उससे कुछ ज्यादा उनके पड़ोसी के पास है, वो खुद से नही अपने पड़ोसियों से बेहतर बनना चाहते है, उन्हें काणा होना मंजूर है बशर्ते पडोशी अंधा हो जाये,प्रगति खुद को बेहतर बनाने में है, अगर आप आज पहलेसे बेहतर मानसिक, शारीरिक,आर्थिक एवं समजिकस्थिति में है तो ये आपकी प्रगति है,अपनी खुशियों का मापदंड तय करने के अपने पैरामीटर बदलिए,खुशी और संतुष्टि एक आंतरिक भावना है इसे अहं की संतुष्टि से नही पा जा सकता, आत्म संतुष्टि एवं अहं संतुष्टि दो अलग अलग चीजे है,आत्म संतुष्टि मतलब खुदको ऊपर उठाने का भाव,अहम संतसुष्टि मतलब किसी की नीचे गिराकर खुद को ऊपर समझना,

ये प्रकृति का जीवन चक्र है कि गाँव वाला कस्बे में बसना चाहता है,कस्बे वाला शहर में, शहर वाला महानगर में और महानगर वाला शांति की तलाश में गाँव मे फर्म हाउस बना रहा है,ट्रावेल्स के चाहे जितने साधन आ जाए पैदल चलने का जो मजा है वो किसी मे नही, वस्तुओं का ,भौतिकता वादी चीजो का स्वाद तभी है जब तक हम उनको भोगने की स्थिति में रहते है वरना वो हमारे लिए सम्पति नही विपत्ति का कार्य करती है,इस बात से निराश हो न ही आपके पास अच्छे जूते नही है, इस बात का शुक्र मनाए की कम से कम आपके पास पांव तो है,इंसान का मनोविज्ञान है कि वो मुफ्त मिली चीजो की कदर नही करता क्योकि वो सहज ही हासिल है,जबकि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण वो ही चीजे है,एक अच्छा परिवार, घनिष्ठ मित्र, अच्छा परिवेश,स्वस्थ शरीर ये सब हमे मुफ्त में मिले है तो इसकी कदर करिए,क्योकि ये वो चीजे है जिसके लिए करोड़ो लोग रोज उठाकर मंदिर/ मस्जिदों में पूजा अर्चना करते है,

हमारी विडम्बना है कि हम किसी भी चीज या व्यक्ति के मूल्य का पता हमे उसे खोने के बाद ही चलता है,जब वो हमारे पास होती है तो उसे एन्जॉय नही करते जब नही होती तो सिर्फ पछतावा होता है,हम में से अधिकतर व्यक्तियों के पास 1- 2या इससे अधिक लाइफ इन्सुरेंस की पालिसी है, हमने बहुत अच्छी प्लानिंग की है अपने मरने की बस जीने की प्लानिंग करना भूल गए है,जीवन इन बातों से नही बनता की आपको जीवन से क्या मिला थाइस बात से बनता है कि जो भी मिला उसका उपयोग आपने कैसे किया,

दो पंक्तियो में सार ये है कि जो मिला उसके लिये भगवान का शुक्र कीजिये,उसका उपयोग उस चीज को पाने के लिए किजिये जो आप चाहते है,अगर आपको  अभि भी ये सब बातें समझ में नही आती तो एक बार ये नीचे दिए गए गाने को ध्यान से सुनलियेगा,

* दुनिया मे कितना गम है,मेरा गम कितना गम है....

वेल सेटल्ड: कुछ आधुनिक परिभाषाएं

वेल सेटल्ड: कुछ आधुनिक परिभाषाएं,

जब आपका पैसा आपसे ज्यादा कमाने लगे,

जब आप व्यापार से जितना कमाते है,लगभग उतनी ही कमाई का जुगाड़ के लिए कोई प्लान बी भी हो,(आप काम करके जीतना कमाते है ,काम बिना करे भी लगभग उतना ही कमाए)

जब आप अपने पडोशी और अधिकतर रिस्तेदारो से ज्यादा कमाने लगे,

जब गाड़ी और बंगला emi प्रूफ हो,

जब आपका क्रेडीट कार्ड  सिर्फ सोशल स्टेटस के लिए रखे उपयोग के लिए नही,

जब आपको बैंकों से लोन के लिए  फोन आये और आपको कोई आवश्यता न हो,

जब आप अपनी पत्नी की हर *जायज*  मांग पूरी कर सके,

जब आपको ये दिखाने के लिए खर्चा न करना पड़े की आप अमीर है,

जब आप अपने दोस्त यार - रिश्तेदार की उतनी आर्थिक मदद कर सके जिससे डूब जाने पर भी आपको कोई फर्क नही पड़ता,

जब आपकी साल की एक घूमने की ट्रिप सिर्फ पैसे के लिए कैंसल न हो,

जब आपके जेब मे पैसे हो न हो साहूकारी जरूर हो,

जब आपकी सोच "बुरे वक्त के लिए बचाना चाहिए" से " जिंदगी एक ही बार तो मिलती है " हो जाये,

जब आपको इनकम करने से ज्यादा टेंशन *इनकम टैक्स* का होने लगे,

आप भी अपने विचार कमेंट सेंक्शन में जोड़ सकते है

ऑफलाइन जिंदगी

लाइफ मंत्रा: ऑफलाइन जिंदगी,

विकाश खेमका
काँटाबाजी (ओडिशा)

टेक्नोलॉजी की पहुच से दूर एक अपना ठिकाना था,
अपनो के पास रहते थे  वो भी क्या जमाना था,

मोबाइल के अलार्म नही मां की दुलार से उठता था,
इन भर का मोटिवेसन पिताजी की एक डांट से मिलता था,

ऑनलाइन क्लास नही सरकारी स्कूल हुआ करते थे
दोस्तो के साथ कितने कितनी मस्ती किया करते थे,

वेदर फोररकास्ट नही था बारिश में भीगने का मजा था,
बिना व्हाट्सअप के भी दोस्तो का दरबार सजा था,

न आज तक,न जी न्यूज , न कोई समाचार था,
अपना फेवोराइट कार्यक्रम  तो चित्रहार था,

न पुब्जी,न प्रीफ़ायर,ना कैंडी क्रश, न यू ट्यूब था
अपना लिए मजा तो गिल्ली डंडा और खेल खुद था,

कुछ भी बोल देना मुश्किलों का घर नही था,
कॉल रिकॉर्ड और स्क्रीन शॉट का डर नही था,

घर मे फ्रिज नही था,कूलर नही था, टी वी नही थी
इमेज बहुत बढ़िया थी अपनी भले ही सेल्फी नाही थी,

सुविधा कम थी साधन काम थे लेकिन सुकून था,
अपने लिए तो सुप्रीम कोर्ट पिताजी का हुकम था,

आपसी चुगली-चट्ठा था, ताका झांकी थी,
अपने लिए गूगल पड़ोस की काकी थी,

बेशक मैगी,पिज़्ज़ा,बर्गर का स्वाद नही था
मगर मां में हाथ के खाने का कोई जवाब नही था

न फेसबुक,न ट्विटर न इंस्टाग्राम न जी मेल था,
मगर फिर भी बहुत पक्का आपसी मेलजोल था,

संबंध मजबूरी से नही मजबूती से निभाये जाते थे
शादीयो तंक में टेंट भी खुद ही लगाए जाते थे,

त्योहारो में हर्ष था,आंनद था ,उमंगे थी उल्लास था,
आज त्यौहार भी फिके है पहले हर दिन खास था,

पहले खुशियां थी आज कल सिर्फ खुशियों का वहम है,
पहले जिंदगी में खुशियों के पल थे अब हरपल में जिंदगी कम है,

सहज थी, सीधी थी, सरल थी,सच्ची थी,
जिंदगी जब *ऑफलाइन* थी, काफी अच्छी थी,

अपरिग्रह: सांसारिक जीवन मे सन्यासी होने का भाव

लाइफ मंत्रा: अपरिग्रह -सांसारिक जीवन में सन्यासी होने का मूलमंत्र

विकाश खेमका
कांटाबांजी(ओडिशा)

जैन धर्म के दो मूल मंत्र हूं,अहिंसा एवं अपरिग्रह, गांधी जी शुरू से है हमारे पाठ्य क्रम में शामिल है और ये उनकी जीवनी को निरंतर पढाए जाने का कारण है हमारे लिए अहिंसा कोई नया शब्द नही है, लेकिन अपरिग्रह शब्द शायद ही जैन धर्म से न जुड़े हुए व्यक्ति ने सुना भी होगा, 

अपरिग्रह का शाब्दिक अर्थ है किसी वस्तु को ग्रहण न करना,या आवश्यकता से अधिक न लेना, उदाहरण के लिए जितना आवश्यक हो खाने के लिए उतना ही लेना अपरिग्रह है, यह छोटा सा शब्द अपने आप मे कई वर्तमान की कई समास्याओं के मूल हल समाहित किये हुए है,अकसर हम अपने धर्म को सिर्फ एक आध्यत्मिक दृष्टिकोण  से देखते है जबकि धर्म सुख- शांति से  जीवन व्यतीत करने के लिए एक आदर्श जीवन शैली की सीख है,हम सांसारिक लोग है हम सन्यासी नही हो सकते,अपरिग्रह संसार मे रहकर सन्यास की भावना बनाये रखने का मंत्र है,एक सन्यासी की मूलभावना होती है "सर्वे भवन्तः सुखिनः,सर्वे भवन्तु निरामय:" और अपरिग्रह इसी भाव को सांसारिक जीवन मे प्राप्त करने का मंत्र है, 

जैसा कि इसका शाब्दिक अर्थ हैं "आवश्यकता से अधिक वस्तु का संचय न करना " लेकिन इसका सांसारिक जीवन के संदर्भ में ये सही अर्थ नही हो सकता। इसका सही अर्थ ये हैं कि किसी भी वस्तु या व्यक्ति या कोई भी सांसारिक वस्तुओं से टूटना हैं। यदि आपको किसी वस्तु से प्रेम हैंं, लगाव हैं उसके खो जाने से दुःख होता हैं तो इसका मतलब हैंं आपको इससे परिग्रह हैं ओर यही परिग्रह दुःख का कारण हैं। 

यदि इसका अर्थ ये मान लिया जाए कि आवश्यकता से अधिक वस्तु का संचय न करना तो इसका मतलब हुआ जो आपके पास आवश्यक वस्तु है उसी से आपको परिग्रह हो जाएगा और उसमें से किसी एक वस्तु के जाने से भी आपको दुख होगा तो फिर ये अपरिग्रह का सही अर्थ कभी नही ही सकता। 

आपके पास कितना भी धन या सम्पति हैं, ऐश्वर्य हैं लेकिन आपको इसके जाने का कोई गम या दुःख नही हैं तो फिर कोई चिंता की बात नही लेकिन यहां प्रश्न उठता हैं कि यदि आपको परिग्रह नही हैं तो धन का संचय क्यों किया। धन का संचय आपने अपने सुख के लिए, ऐश्वर्य के लिए ओर आराम की जिंदगी जीने के लिए किया हैं। आप जानते हैं पैसा कमाना ओर खर्च करना और दान देना लेकिन यदि आप इससे परीग्रह रखते हैं, उसके जाने से दर्द होता हैं, दान देने से घबराते हैं तो फिर आप अपरिग्रह का कभी पालन नही कर सकते। 

जब हम आवश्यकता से अधिक संचय करते है तो फिर आप सन्सार के बंधन में बांध लेते है,फिर हम वस्तुओं को व्यक्तियो से अधिक महत्व देने लगते है,जो की आगे चलकर पतन एवं तनाव का कारण बनता है,वर्तमान जीवन मे मानसिक अशांति,तनाव,दुखः का एक बहुत बड़ा कारण है भौतिकतावाद, मतलब भौतिक चीजो को बहुत ज्यादा महत्व देना,हम गाड़ी,बंगला,एवं विलासपूर्ण जीवन शैली के लिए दिन रात कमाने में लगे रहते है,क्योकि हमे लगता है कि सुख इसी में है,लेकिन अपरिग्रह का भाव हमे सिखाता है कि सुख पाने में नही त्यागने में है, खूब कमाइये मगर उसके प्रति मन मे अशक्ति न लाना अपरिग्रह है, मन में अपरिग्रह की भावना हो तो जीवन आसान हो जाता है,"

आम जीवन मे हमने जीवन मे धर्म को सिर्फ आध्यात्म और आडंबर से जोड़ लिया है जबकि धर्म मनुष्य को एक आदर्श जीवन शैली के लिए प्रेरित करने वाला एक भाव है,एक अच्छा और बेहतर मनुष्य बनाने के लिए धर्म से जुड़िये इसकी मूलभावना को समझिये,

धन्यवाद,