टॉयलेट एक प्रेम कथा ,आज ये फ़िल्म देखी,मै सिर्फ टाइम पास के हिसाब से ये फ़िल्म देखने गया था, मगर फ़िल्म देखने के बाद मेरा एक ही कहना है कि आप सभी ये फ़िल्म जरूर देखें,इसलिए नही ंकी ये एक कमर्शियल मजेदार फ़िल्म है, इसलिए क्योकि ये फ़िल्म नही अपने आप मे एक स्कूल है,जिससे आपको जिंदगी को आसान बनाने के कई पाठ सीखने को मिलेंगे,
इस फ़िल्म की खासियत या इसका मुख्य हीरो अक्षय कुमार या अनुपम खेर नही,इस कि ख़ासियत है इसकी पटकथा,कहानी,कांसेप्ट,इस फ़िल्म में इतने गंभीर विषय को जिस आसानी और सहजता से पेश किया गया है वो अपने आप मे काबिले तारीफ है,ये फ़िल्म हमे सिखाती हैं कि समस्या कितनी भीं गंभीर हो उसे आसान भाषा मे भी लोगो को समझाया जा सकता है और उसके समाधान के लिए प्रेरित किया जा सकता है फ़िल्म में नायिका की तकलीफ आपको महसूस होती है,ये खास बात है,फ़िल्म आपको आपके साथ जोड़ती है, भले ही मल्टीप्लेक्स में बैठी पब्लिक जो शुरू से टॉयलेट उपयोग करती है उनको ये कहानी काल्पनिक या सिर्फ मजकिया लगे मगर ये फ़िल्म भारत के गावो की रूढ़िवादी सोच को उजागर करतो है,
ये बात हमेशा बहुत मायने रखती है कि आप जो कह रहे है या कहना चाहते है वो लोगो तक उसी रूप में पहुचता है जिस रूप में कहना चाहते है, फिल्मकार अपनी बात पूरी तरह से लोगो तक बहुत ही सहज तरीके से पहचाने में शत प्रतिशत सफल रहे है,उनको शत शत बधाई,
मुझे पता है ये फ़िल्म अच्छी कमाई भी करेगी,मगर कमर्शियल हिट के मामले में कोई बहुत बड़ा कीर्तिमान नही बनायेगी,लेकिन एक गंभीर समस्या को एक सरल रूप से लोगो के सामने पेश करने को लेकर ये फ़िल्म हमेशा याद रखी जायेगी,देश के प्रधानमंत्री जब स्वच्छ भारत की बात करते है तब तक ये स्वछता या शौचालय इतनी बड़ी समस्या नही लगती थी मगर इस फ़िल्म में जिस बारीकी से इस समस्या की गंभीरता को समझता और दिखाया गया है उससे एक आदमी भी इस समस्या को महसूस करता है,जब हम किसी समस्या को अपनी समस्या महसूस करते है तोउसके समाधन के बारे भी गंभीरता सें सोचते है और जब बात दिल को छूती है आदमी उसके बारे में सोचता है,काम करता है, सुधरता है,
फ़िल्म के कुछ संवाद दिल को छूते है,एक संवाद की औरत ही औरत को आगे बढ़ने नही देती,अपने आप मे काफी गूढ़ अर्थ लिए हुए है,चाहे वो,भ्रूण हत्या हो, रेप हो,दहेज प्रतारणा हो या आनर किलिंग या औरतो से जुड़ी हर समाजिक समस्या में कंही न कंही औरत का दखल बहुत ज्यादा है,
फ़िल्म ये भी सिखाती है कि सहन करना या अडजस्ट करना बहुत अच्छी बात है मगर जो गलत लगे उसका विरोध जरूरी है,फ़िल्म सिखाती है कि"जिद करो दुनिया बदलो" ,जब आप किसी अच्छे काम के लिए निकलते है तो आपकी राहो में बहुत मुश्किले आती है मगर उनसे घबराना नही उनका सामना करना हल है,
फ़िल्म में एक गभीर विषय को हल्के फुल्के,ढंग से कई मजाकिया सीन के साथ पेश किया गया है,इससे ये सीखा जा सकता है कि आपकी समस्या को बोझ बनाकर नही मनोरंजक बनाकर पेश कीजिये उसे बहुत तवज्जो मिलेगी,आपके कहने का ढंग आपकी समस्या की गंभीरता का पैमाना है,
कुल मिला कर एक सुखद अनुभव ,मेरी व्यक्तिगत राय की इस फ़िल्म को भारत के प्रत्येक गांव में निशुल्क प्रदर्शन किया जाए इससे स्वच्छ भारत अभियान को बल मिलेगा,भारत मे शौच संबधी समस्याओं के लिये शौच व्यवस्था नही लोगो की सोचने की व्यवस्ता में परिवर्तन ज्यादा जरूरी है,इस। फ़िल्म को देखने के बाद एक बधाई में भारत सरकार के उस अधिकारी को भी देना चाहूंगा जिसने शौचालय कार्यक्रम के लिए ये टैगलाइन बांयी कि "जहा सौच वहां शौचालय".ये फ़िल्म इस टैगलाइन को पूरा सार्थक करती है, भारत मे ऐसी और फिल्मों की जरूरत है, क्योकि भारत के एक बडे हिस्से की आम जान जीवन शैली बड़े पर्दे से प्रेरित है,
No comments:
Post a Comment
आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,