Monday, 28 August 2017

लाइफ मंन्त्रा: एक ही बात के कई मतलब निकाले जा सकते है

एक दार्शनिक ने शराब की बुराइयों को बताने के लिए लोगो के सामने एक डेमो रखा,उसने दो जार लिए, एक मे पानी भरा और एक मे शराब डाल दी,पहले उसने पानी मे एक कीड़ा डाला,जो कि आराम से पानी मे तैरता और खेलता रहा,फिर उसने शराब के जार में एक कीड़ा डाला जो कि छटपटाता और मर गया,इस डेमो के बाद उसने लोगो से पूछा कि मेरे इस डेमो से आप लोगो ने क्या सीखा,जहां अधिकतर लोगों  ने कहा कि इसका मतलब ये है कि शराब मारने का काम करती है,सेहत के लिए हानिकारक है,वही एक इंसान का मत थोड़ा हास्यापद मगर बिल्कुल अलग और निराला था, उसने कहा आप के इस प्रयोग से हमे ये शिक्षा मिलती है कि शराब पीने से पेट के कीड़े मर जाते है,

ये बात दर्शाती है कि कई बार आप जो बात कहना चाहते है वो हमेशा उस रूप में लोगो तक नही पहुचती जिस रूप में आप कहना चाहते है,किसी भी बात का अर्थ एक से दूसरे दिल/दिमाग तक पहुचते पहुचते अलग रूप में भी पहुचती है,क्योकि एक बात से बहुत भावार्थ निकलते है,और ये हर किसी के बौद्धिक स्तर और मानसिकता पर निर्भर करता है कि कौन,कब,किस बात को किस परिपेक्ष में ले,आप जो बात कहना चाहते है ये बात उसी रूप में सामने वाले के पास पहुँचे इसके लिए शब्दो का सही चयन होने के बाद भी कई बार आपके कहने का तरीका आपके कहने का भावर्थ बदल देता है,

देश के 2009 के तत्कालीन ग्रामीण विकाश मंत्री जयराम रमेश में स्वछता को लेकर एक बयान दिया था की " घरों में देवालय से पहले सौचालय बनाने चाहिए" तो इस बात पर बहुत विवाद हुआ था,और इसे हिन्दू धर्म और आस्था से जोड़ कर देखा गया था जबकि जयराम रमेश कंही न कही एक अच्छी बात कहने की कोशिश कर रहे थे कि घरों में शौचालय जरूरी है,लगभग यही बात प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जी ने भी कही और उनकी बातों को लोगो ने हाथों हाथ लिया, एक ही बात शब्दो के हेरफेर और कहने के तरीके के कारण किसी को जीरो तो किसी को हीरो बनाती है,

कमोबेश हमारी जिंदगी में हर रोज यही होता है कभी कभी कुछ सही शब्दो के अभाव में,कुछ गलत रिप्रजेंटेशन के अभाव में,कुछ गलत तुलना के अभाव में हम जो बात कहना चाहते है उससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है फिर हमारे सकारात्मक रुख को कोई नही देखता,कुदरत का अजीब खेल है एक ही चीज को एक ही समय मे एक ही जगह में कई व्यक्ति देखते है उसके बारे में अपनी अलग अलग राय रखते है और मजे की बात सब सही रहते है,हर किसी की मानसिकता अलग है,सोच अलग है,सोचने का ढंग अलग है,

अपनी बात सही ढंग से ,सही रूप में,सही जगह तक लोगो तक पहुचना एक बहुत ही दुर्लभ कला है,जो हर किसी के बस की बात नही,बस लेकिन अपने लिए ये नियम बना के चले कि कोशिश करे कि हर बात में छुपी सकारात्मकता को ग्रहण किया गया और नकारात्मकता को इग्नोर कियाया जाए, क्योकि एक ही बात आपको बहुत कुछ सिखाती है,गन्ने के कई उपयोग है इसका शर्बत भी बनता है और विशेष परिस्थितियों में इसे लठ्ठ के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है,हर बात/कार्य के कई रूप होते है,जब कोई सोने की खुदाई के लिए जाता है तो 1 किलो  सोना पाने के लिए आपको के ट्रक मिट्टी हटानी पड़ती है,लेकिन आप का मकसद मिट्टी नही सोना पाना होता होता है,इसके लिए आप मिट्टी को इग्नोर करते है,कीमती वो  चीज है जो हम खोजना चाहते है,किसी भी बात/कार्य से सकारात्मक अर्थ ग्रहण करे,

Sunday, 27 August 2017

लाइफ मंत्रा: अकेला चना भी पहाड़ फोड़ सकता है,

लाइफ मंत्रा : अकेला चना भी पहाड़ फोड़ सकता है,

काटाबांजी और आस पास के इलाके के लोग आजाद क्ल्ब से भली भांति परिचित है,आजाद क्लब आस पास के अचल में अपने भव्य गणेश पूजा पंडाल,इसके यूनिक आईडिया,और कर्मठ और समर्पित कार्यकर्ताओ के विख्यात है,अपने भव्य गणेश पंडाल और नए आईडिया इस गणेशोत्सव की पहचान है,लगभग 25 वर्षो से आजाद क्लब गणेशोत्सव धूमधाम से पालित करती हैऔर इसके लिए इसका यूनिक नेस के लिए इसकी अलग पहचान है,आजाद क्लब का हर सद्स्य अपने स्तर पर इसमे लिए अपना सर्वश्रष्ठ देता है, मगर पिछले कुछ वर्षों से  जिस एक व्यक्ति के निर्देशन में ये का दायित्वपूर्ण मार्गदर्शन में हो रहा है वो है,  Yuva Ashish Agrawal (जिसे लोग बद्री के नाम से बेहतर जानते है) ,वर्तमान आजाद गणेश  पंडाल के निर्माण में पिछले कुछ सालों से उसके भूमिका सराहनीय है, उसके बिना आजाद गणेश पंडाल की भव्य कल्पना थोड़ा मुश्किल है,पंडाल के डिजाइन से लेकर,हर छोटी बड़ी चीज का काम वो जिम्मेदारी से करता है,और ये उस की यूनिक सोच,अथक और निरंतर मेहनत का प्रयास रहता है कि आजाद गणेश पंडाल में इतनी भव्यता आती है, आशीष आजाद क्लब के उन महत्वपूर्ण आधार स्तंबो में से एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जिस पर आजाद क्लब के गणेश पंडाल की इमारत खड़ी होती है,

आशीष जैसे लोग इस बार का उदाहरण है कि अगर  मन मे ठान लिया जाए तो सिर्फ अपनेइच्छशक्ति से भी काफी कुछ किया जा सकता है, हम अगर मन मे कुछ ठान ले,और उसके लिए पूरे दिल से अपना 100% दे कर काम करे तो कुछ भी असम्भव नही,हर काम पहले बहुत मुश्किल होता है और फिर हर मुश्किल आसान हो जाती है,लेकिन इसके लिय खुद पर भरोशा,निरन्तर कार्यशक्ति एवम समर्पण चाहिए होता है जो हर किसी के बस की बात नही,

हम बचपन से सुनते आए है कि "अकेला चना पहाड़ नही फोड़ सकता" इस कहावत का मतलब ये है कि हमे समाज मे मिलजुल कर चलना चाहिए मगर अपने अधूरे ज्ञान और सीमित सोच के कारण इस का मतलब ये समझ लिया गया कि अकेला इंसान कुछ नही कर सकता,कुछ भी करने के लिए इंसान को साथ चाहिए, एक अकेला आदमी भी दुनिया बदल सकता है लेकिन इसके लिए पहले खुद की बदलना पड़ता है,रोज आपके आंखों के सामने सैकड़ो ऐसे उदाहरण आते है जिसमे किसी ने नगर बदला है किसी मे गाव, किसी ने राज्य ,किसी ने देश,
लेकिन इसके लिए हर घड़ी अपने लक्ष्य को आंखों के सामने रखकर, दिन रात भूलकर उसके लिए प्रयास करना पड़ता है,

एक अकेला दशरथ मांझी  छैनी और हथौड़ी से पहाड़ तोड़ कर रास्ता बना सकता है,एक अकेला मार्क जुकरबर्ग सारी दुनिया को फेसबुक से एक प्लेटफार्म पर ला सकता है,एक अकेला मोदी एक राजनीतिक पार्टी को फर्श से अर्श पर पहुचा सकता है,एक अकेला साधारण सा पेट्रोल पंप अटेंडर देश की सबसे बड़ी कंपनी खड़ी कर सकता है,उद्दाहरण ऐसे करोडो है मगर जो बात इन सब में कॉमन है और इन्हें भीड़ से अलग करती है वो है इनका अपने उपर विश्वास,इनके काम करने की शैली,इनका हार न मानने का जज़्बा, निरंतर लगे रहने का जुनून,ऐसी बात नही की इन जैसे व्यक्तियों को सफलता/नाम/शोहरत इसलिए मिलती है की क्योकि इनकी किस्मत अच्छी होती है बल्कि इसलिए मिलती है क्योंकि इनकी मेहनत अच्छी और निरंतर  होती है,ये असफल तो होते है मगर असफलता इन्हें निरुत्साहित नही करती बल्कि सिखाती है,ये रिस्क लेने से नही डरते,जिम्मेदार होते है, लोगो की आलोचनाओं से इनको कुछ फर्क नहीं पडता,हार के बावजूद ये अपना काम करना बंद नही करते,रुकते नही,अपने काम मे लगे रहते है,ये नतीजो की परवाह किये किये बिना अपना सर्बश्रेष्ठ देने की कोशिश करते है बस यही बात ऐसे लोगो को खास बनाती है,

ऐसे लोग इस कहावत को झूठ लाते है कि "अकेला चना पहाड़ नही फोड़ सकता"ऐसे लोग आपको सिखाते है कि अकेला चना भी पहाड़ फोड़ सकता है,बस उसमें निरतंरता होनी चाहिए,अकेला आदमी भी दुनिया बदल सकता है मगर इनके लिए पहले खुद को बदलना होता है,
कोई भी बड़ा काम और उसकों करने के लिए संघर्ष अकेले ही करना होता है भीड़ तो आपके पिछे तब आती है जब आप सफल हो जाते है,सफलता के लिए भीड़ नही खुद का भरोशा चाहिए, इस विषय में  शहीदे-आजम भगतसिंह की कही एक बात कहना चाहूंगा कि" जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है,औरो के कंधे पर तो जनाजे जाते है"

आप क्या है या क्या नहीं है ये आप खुद तय करतेे है,आप अकेले है या कोई आपके साथ है ये कोई बहुत जयादा मायने नही ंरखता है मायने ये रखता है कि आप अपने काम के प्रति कितने कमिटेड है,जैसे एक सूरज पूरी दुनिया को रोशनी देता है,जैसे एक चांद पूरी रात रोशन कर देता है,एक अकेला आदमी भी दुनिया बदल सकता है,अकेला चना भी पहाड़ फोड़ सकता है|जिसे खुद पर भरोसा है उसके लिए कोई काम मुश्किल नही

Monday, 21 August 2017

लाइफ मंत्रा: आपकी मर्जी के बिना कोई आपको छोटा महसूस नही करा सकता

घर से नहा धोकर मंदिर गया,मंदिर से बाहर निकला तो पता चला की मैं भूल से मैं दो अलग अलग चप्प्पल पहन आया था,उस दो अलग अलग चप्पल को पहन में वापस घर जाने में मन को बहुत शर्मिंदगी का अहसास हुआ ,वापस आते समय ऐसे लग रहा था की जैसे सारी दुनिया मुझे ही देख रही है,और मुझे चिढ़ा रही है,राम राम करते मैं किसी तरह घर पहुचा,मुझे किसी ने नहीं टोका,मगर घर से मंदिर को वो छोटा सा रास्ता पहाड़ की तरह गुजरा,जाते वक्त जो रास्ता पांचमिनट का था आते समय वो रास्ता बहुत लंबा प्रतीत हुआ,हर वक्त यही डर की कंही कोई देख न ले और शर्मिंदा न कर दे,लेकिन मैं बिना किसी के टोके घर पहुच गया जबकि रास्ते मे कई परिचितो से मिला भी,

इस छोटी सी घटना ने इंसानी के मनोविज्ञान की एक बहुत बड़ी बात का अहसास हुआ की हम अगर आप को गलत मान लेते है तो खुद को बहुत शर्मिन्दा कर लेते है,ये सिर्फ हमारी सोच है की कुछ गलत कर हम दुनिया के लिए दोषी हो गए या हास्यापद हो गए है,

कहने का अर्थ ये है की हम अपने आप को उसी रूप में देखते है जो की हम अपने बारे में सोचते है...दुनिया हमारे बारे में क्या सोचती है इसका निर्धारण हम खुद की करते है,किसी को भी अपने बारे में।सोचने का अधिकार हम खुदु देते है, उनको हमारा मजाक बनाने का अधिकार हैम खुद देते है,

इसलिए कभी कभी अपनी गलतियों के लिए
अंधे बन जाइए ,अपनी बुराइया सुनने के लिए बहरे हो जाइये,एक पुरानी कहावत है कि "गर्मी ,ठंडी और बेज्जती उतनी ही महसूस होती है जितनी कि महसूस किं जाये" कोई बात  आपको कितनी परेशान करती है ये बात आप खुद ही निर्धारित करते है, कोई आपको गुस्सा दिलाता है है तो गुस्सा व्व नही दिलाता आप होते है,कोई बात आपको चिड़चिडा करती है तो वो बात नही बल्कि आपका स्वभाव करता है,आपकी भावनाओं को कंट्रोल करने का आधिकार लोगो को मत दीजिये ,अपना रिमोट  अपने हाथ मे रखिये |

आपको  रास्तें में आने वाले कंकडों से परेशानी होती है तो पूरी दुनिया मे कार्पेट बिछाने से कंही ज्यादा आसान हौ की पांवो में जूते पहन लिया जाए, आपकी मर्जी के बिना आपको कोई छोटा महसुस नहीं करा सकता,मन के हारे हार है,मन के माने जीत...

Saturday, 19 August 2017

लाइफ मंत्रा: आपने अपने आप को आखरी बार कब फॉर्मेट किया था

मैं एक सोशल मीडिया में एक्टिव व्यक्ति हु और अपने मोबाइल का बहुत ज्यादा उपयोग करता हूं,इसके अलावा व्यापार कार्य के लिए भी इंटरनेट,ईमेल,और फ़ोन के लिए मोबाइल का लगातार उपयोग करता हु,पिछले कुछ दिनों से में ये महसूस कर रहा था कि मेरा मोबाइल बहुत स्लो हो गया है,और मैं इसे ठीक से उपयोग नही कर पर रहा हु जिससे मुझे काफी असुविधा हो रही थी,मैंने मेकेनिक को दिखाया तो उसने कहा कि आपके मोबाइल में जंक फ़ाइल,और कई मेमोरीज बहुत बढ़ गयी है,कई अनचाही फ़ाइलो ने बहुत जगह ले ली है इसलिए आपका मोबाइल स्लो हो गया है,क्योकि इंटरनेट के चलते कई फ़ाइल अपने आप मोबाइल में डाउनलोड हो जाती है,कई फ़ाइल आहि डाउनलोड होनेके राह जाती है,जो कि टेमपिरारी फ़ाइल के रूप में मोबाइल का स्पेस खाती है,मैने इसका इलाज पूछा तो बताया कि आप  अपने मोबाइल को फॉर्मेट करवा लीजिये तो इससे ठीक हो जाएगा,और उसके बाद वापस आपके मोबाइल की गति पहले जैसे हो जाएगी,

मैंने मेकेनिक से पूछा कि ये ये फॉर्मेट क्या होता है तो उसने बताया कि फॉर्मेट में हम जो जरूरी चीजे है उसका बैकअप ले कर बाकी सब डिलीट कर देते है और फिर कंपनी सेटिंग को रीस्टोर करके आपके बैकअप से जो जरूरी चीजें वापस फ़ोन में डाल देते है जिससे फ़ोन से अनवांटेड डेटा,जंक फ़ाइल, टेम्पररी फ़ाइल, वायरस और सब परेशानियां दूर हो जाती है, फ़ोन की मेमोरी फ्री हो जाती है,और हमारे मोबाइल की कार्यक्षमता बढ़ जाती है,और इसकी गति भी बढ़ जाती है,

काफी कुछ ऐसा ही हमारी जिंदगी में हमारे साथ भी है,हम अक्सर एक नियमित अंतराल में ये महसूस करते है कि हमारी कार्यक्षमता कम हो गयी है, हमारा उत्साह कम हो जाता है,हम अपने आप को डिप्रेस्ड महसूस करते है वो इसलिए होता है क्योंकि हम समय समय पर अपने आप को फॉर्मेट नही करते, हमे समय समय पर अपने आप को फॉर्मेट करते रहने की आवश्यकता है,

जैसे मोबाइल का इंटरनेट से जुड़े होना उसकी कार्यक्षमता बढ़ता है,और फ़ोन ढंग सेकाम करे इसके लिए जरूरी है वैसे ही हमारा भी सामाज से जुड़े रहना जरुरी है,जहां ये हमारी कार्यक्षमता बढ़ता है वंही के बार हमारे न चाहते हुए भी कई ऐसे लोगो के कमेंट या व्यवहार हमारे मन मे घर  कर लेते है जो कि अनवांटेड होते है,और हम उन्हें अपने दिल में कोई काम न होते हुए भी स्टोर कर लेते है
जो कि सीधे हमारी कार्यक्षमता को कम करता है,कई बार गल्फहमियो के वॉयरस अपने किसी खास औए प्यारे इंसान के साथ हमें रहने से रोक देते है,कई बार हैम इसलिए वायरस के शिकार हो जाते है कि क्योकि हमने खुद को अपडेट नही किया होता,

इन सब मुश्किलो से बचने का एक ही तरीका है कि समय समय पर अपने आप को आत्मचिंतन कर के फॉर्मेट करते रहे,गलत फहमियों के वायरस को डिलीट कर,अपने आस पास केलोगों द्वारा दिये गए अनवांटेड कमेंट को इग्नोर करे,खुद को समय समय पर लोगो से मिल जुल कर उपडेटेड रखे,लेकिन इसमें भी एक बात हमेशा याद रखने की जरूरत है की मोबाइल में कुछ प्रोग्राम ऐसे होते है जो मोबीइल के लिए डिफ़ॉल्ट होते है ये भले ही बहुत स्पेस लेते है मगर जिनके बिना मोबाइल चल नही सकता कभी उनको डिलीट करने की मत सोहिये,हमेशा उनका बैकअप रखिये और उन्हें रिस्टोर करिये,

अपने मातापिता  अपने दोस्त यार एंटीवायरस की तरह होते है जैसे एंटीवायरस किसी भी एप्प या प्रिग्राम को मोबाइल में में लोड होने से पहले उसे जांचते है कि कंही उनमे कोई वायरस तो नही,कंही व्व मोबाइल के लये हानिकारक तो नही,इससे आप को चिड़चिड़ापन तो होता है क्योकिनये कुछ अतिरिक्त समय लेता है मगर आपके मोबाइल  को आगे केलिए सिक्योर भी करता है,वैसे ही मातापिता ,सही दोस्त यार,वैलविशेर कि बाते भी एंटीवायरस है जो क्षणिक तौर पर हमें चिड़चिड़ा  बनाती है मगर हमारी आने वाली जिंदगी को सेक्योर करती है,

आपके जिंदगी में आपका ऑपरेटिंग सिस्टम हमेशा सही ढंग से काम करे और स्मूथली काम करे,एक अच्छी स्पीड से काम करे इसके लिए अपने आप को नितमित अंतराल आत्मचिंतन से फॉर्मेट करते रहे,आपकी कार्यक्षमता बनींरहेगी,

Friday, 18 August 2017

लाइफ मंत्रा: आप अपनी ब्रांडिंग खुद करते है

आज का लेख थोड़ा लंबा लग सकता हैंगर बेहद महत्वपूर्ण है अगर आप एक सक्रिय सोशल मीडिया यूजर है तो,थोड़ा समय निकालकर अवश्य पढ़ें,

कल मेरे एक कजिन Vineet Agrawal के साथ बहुत दिन बाद मुलाकात हुई,विनीत एक कंप्यूटर इन्जिनियर  है,और उसकी एक रेपुटेड आई टी कंपनी में प्लेसमेंट हो चुकी है, मगर अभी कॉल नही आया है,अभी अपने खाली वक्त में वो वेबसाइट डेवलोपमेन्ट और डिजिटल मार्केटिंग का काम कर रहा है,उसकी बातें,उसके साथ गुजारे हुए 3 घण्टे और उसके वर्किंग स्टाइल को देखकर ये बात मैं शर्तिया कह सकता हु की वो एक भविष्य का बिलेनियर और एक सक्सेस युथ आइकॉन है,उसका ज्यादा फोकस डिजिटल मार्केटिंग में है,और उसके साथ डिजिटल मार्केटिंग को लेकर कई बातें हुईं,जिसमे उसने बताया कि वो उसे पिछले कुछ महीनों से एक ब्रांड मैनेजर के साथ काम करने का अवसर मिला जो कि किसी भी चीज के ब्रांडिंग में स्पेशलिस्ट है,उससे काफी कुछ सीखने को मिला कि कैसे कोई चीज ब्रांड बनती है या बनाई जाती है,किसी चीज को एक ब्रांड बनाने के लिए उसके छोटे छोटे पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है,ब्रांड के लोगो से लेकर टैगलाइन तक सभी चीजों के लिए डीप रिसर्च की जाती है, उस ब्रांड के प्रोस्पेक्टिव यूजर के बारे में डेटा कलेक्ट किया जाता है, उनके मनोविज्ञान और मानसिकता को समझा जाता है उस पर स्टडी की जाती है,और ये सभी चीजें निर्धारित करने के बाद लगातार उस का विज्ञापन किया जाता है,उस ब्रांड से रेलेटेड हर चीज एक ही लोगो, कलर कॉम्बिनाशन,डिज़ाइन टैगलाइन,बारम्बार अपने प्रोस्पेक्टिव ग्राहक के सामने रिपीट किये जाते है,जिससे धीरे धीरे ग्राहक के दिमाग मे उस की छवि अंकित होने लगती है, और धीरे धीरे ग्राहक को उस ब्रांड को इग्नोर करना मुश्किल हो जाता है,और वो उसका निरन्तर ग्राहक बन जाता है, साथ ही ये निरंतरता इतना इफ़ेक्ट करती है कि उससे मिलती जुलती लोगो या कलर कॉम्बिनाशन में भी उसे वो ही ब्रांड नजर आने लगता है,उदाहरण के तौर पर लाल रंग की हिंदी में लिखा हुआ कोई भी लोगो देखने पर हमें" आज तक" याद आता है,कही लाल सफेद पट्टी दिख जाए और उस पर कुछ लिखा हो तो एयरटेल याद आ जाता है,ये मेमोरी धीरे धीरे इतनी स्ट्रांग होती जाती है कि हम धीरे धीरे बिना नाम के भी सिर्फ लोगो से उस ब्रांड को पहचानने लगते है,इसे बिज़नेस की भाषा मे ब्रांडिंग कहा जाता है,

जैसे ब्रांड मैनेजर किसी चीज का ब्रांड बनाते है वैसे ही हम खुद भी अपना ब्रांड बनाते है,आजकल सोशल मीडिया में हम इतने एक्टिव है कि वो हमारे जिंदगी का हिस्सा बन गया है,और जाने अनजाने हम इसको उपयोग कर के अपनी सही या गलत ब्रांड बनाते है, यहां ब्राण्ड मतलब आपकी इमेज अपनी छवि,वो पूर्वाग्रह जो लोग आपके बारे में आपसे मिलने से पहले सोचते है,आपके प्रति लोगों की सोच है,हमारे बारे में लोगो की राय क्या है वो क्या सोचते है इसका निर्धारण हम खुद ही करते है,और आज कल इसबात के निर्धारण में हम जिस तरह से  सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और व्हाट्सएप्प को उपयोग करते है,वो बहुत महत्वपूर्ण हो गया है,हम अपनी दिन प्रतिदिन दिन की एक्टिविटी सोच,प्रोग्राम सोशल मीडिया में पोस्ट करते है जो कि लोगो के मन मे हमारी वैसे ही छवि बनाता है,

कुछ लोग बिना किसी बात/खबर को कन्फर्म किये उसको पोस्ट करते है जिनमे से ज्यादा अफवाहै होती है,लगातार ऐसी पोस्ट उनकी विश्वसनीयता कम करती है,कुछ लोग दिन रात सोशल मीडिया पर गुड़ मॉर्निंग से लेकर गुड़ नाईट तक अपनी हर एक्टिविटी सोशल मीडिया पर पोस्ट करते है उनके लिए लोगो के मन मे ये नकारात्मकता आती है कि वो बहुत खाली/और आम जीवन में निष्क्रिय है,जो लोग लगातार अंधविश्वास और "7 लोगो को भेजो मंगल होगा" जैसे पोस्ट लगातार करते है उनके बारे में ये सोच आम हो जाती है कि वो एक डरे हुए,वहमी,और अंधविश्वासी इंसान है,कुछ लोग लगातार " इसे शेयर करे और फ्री टॉकटाइम पाए" जैसे पोस्ट शेयर करते है ऐसे लोग अपने आप को एक लोभी और मनी माइंडेड  के रूप में अपनी इमेज बनाते है,लगातार दुखी शायरी /रोमांटिक पोस्ट छोड़ने वाले अपने आप को आशिक/दुखी आशिक के रूप में प्रोजेक्ट कर लेते है,लगातार अश्लील पोस्ट/चुटकुले/गालिया पोस्ट करने वाले कि मन मे अपने आप एक ठरकी/रसिक छवि बन जाती है,अपने बहूत ज्यादा सेल्फी और स्टॉउस अपडेट करने वाले के बारे में अहंकारी होने की धारना बनती है,जो लोग हर बात पर बहस करते आए और रिप्लाई देते है उनकेे बातो को लोग गंभीरता से लेना बंद कर देते है,वो अपनी कीमत ख़ुद। करते है,किसी भी बात का रिप्लाई न देने से आपकी व्यस्त नही एक अहंकारी इमेज बनती है,

जाने अनजाने हम अपनी सोशल मीडिया एक्टीविटी से अपनी छवि काफी डेमेज कर लेते है

वही कई लोग इसका अच्छी और व्यवस्थित ढंग से उपयोग कर अपनी सकारात्मक छवि भी बनाते है,जैसे कुछ लोग सोशल मीडिया में किसी भी गलत खबर/अफवाह का खंडन कर अपनी एक बुद्धिजीवी छवि बनाते है, किसी गलत बात का सही तरीके से विरोध कर वो अपनी बोल्ड और साहसिक इमेज बनाते है,अपने निरंतर सामाजिक संदेशो से वो एक सामाजिक छवि बनाते है,कई लोग अपनी आर्ट/टेलेंट को इसमे पेश कर अपने अपनी कलाकार की इमेज बनाते है,मेने खुद ये महसूस किया है कि जब से मै निरन्तर जीवनुपयोगी ब्लॉग/सक्सेस लिटरेचर/जानकारी / सोच लिख रहा हु तो मैरे बारे में भी लोगो की सोच काफी बदली है,

कुल मिलाकर मेरे कहने का मतलब ये है कि हम अपनी ब्रांडिंग खुद करते है,हम जो ये सोच कर सोशल मीडिया में कुछ भी पोस्ट कर देते है कि ये तो मुफ्त है इसके कोई पैसे नही लगते,हमे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, सोशल मीडिया वो आईना है जहां न चाहकर भी आपका असली चेहरा/व्यक्तित्व झलक जाता है,इसलिए अपनी सकारात्मक छवि बनाने के लिए इसका सम्भाल कर उपयोग करे,अपनी ब्रांडिंग खुद कीजिये,अपनी ब्रांड वैल्यू खुद बढाइये,

Thursday, 17 August 2017

लाइफ मंत्रा: एक गंभीर बात भी आसान तरीके से समझाई जा सकती है

टॉयलेट एक प्रेम कथा ,आज ये फ़िल्म देखी,मै सिर्फ टाइम पास के हिसाब से ये फ़िल्म देखने गया था, मगर फ़िल्म देखने के बाद मेरा एक ही कहना है कि आप सभी ये फ़िल्म जरूर देखें,इसलिए नही ंकी ये एक कमर्शियल मजेदार फ़िल्म है, इसलिए क्योकि ये फ़िल्म नही अपने आप मे एक स्कूल है,जिससे आपको जिंदगी को आसान बनाने के कई पाठ सीखने को मिलेंगे,

इस फ़िल्म की खासियत या इसका मुख्य हीरो अक्षय कुमार या अनुपम खेर नही,इस कि ख़ासियत है इसकी पटकथा,कहानी,कांसेप्ट,इस फ़िल्म में इतने गंभीर विषय को जिस आसानी और सहजता से पेश किया गया है वो अपने आप मे काबिले तारीफ है,ये फ़िल्म हमे सिखाती हैं कि समस्या कितनी भीं गंभीर हो उसे आसान भाषा मे भी लोगो को समझाया जा सकता है और उसके  समाधान के लिए प्रेरित किया जा सकता है फ़िल्म में नायिका की तकलीफ आपको महसूस होती है,ये खास बात है,फ़िल्म आपको आपके साथ जोड़ती है, भले ही मल्टीप्लेक्स में बैठी पब्लिक जो शुरू से टॉयलेट उपयोग करती है उनको ये कहानी काल्पनिक या सिर्फ मजकिया लगे मगर ये फ़िल्म भारत के गावो की रूढ़िवादी सोच को उजागर करतो है, 

ये बात हमेशा बहुत मायने रखती है कि आप जो कह रहे है या कहना चाहते है वो लोगो तक उसी रूप में पहुचता है जिस रूप में  कहना चाहते है, फिल्मकार अपनी बात पूरी तरह से लोगो तक बहुत ही सहज तरीके से पहचाने में शत प्रतिशत सफल रहे है,उनको शत शत बधाई,

मुझे पता है ये फ़िल्म अच्छी  कमाई भी  करेगी,मगर कमर्शियल हिट के मामले में कोई बहुत बड़ा कीर्तिमान नही बनायेगी,लेकिन एक गंभीर समस्या को एक सरल रूप से लोगो के सामने पेश करने को लेकर ये फ़िल्म हमेशा याद रखी जायेगी,देश के प्रधानमंत्री जब स्वच्छ भारत की बात करते है तब तक ये स्वछता या शौचालय इतनी बड़ी समस्या नही लगती थी मगर इस फ़िल्म में जिस बारीकी से इस समस्या की गंभीरता को समझता और दिखाया गया है उससे एक आदमी भी इस समस्या को महसूस करता है,जब हम किसी समस्या को अपनी समस्या महसूस करते है तोउसके समाधन के बारे भी गंभीरता सें सोचते है और जब बात दिल को छूती है आदमी उसके बारे में सोचता है,काम करता है, सुधरता है,

फ़िल्म के कुछ संवाद दिल को छूते है,एक संवाद की औरत ही औरत को आगे बढ़ने नही देती,अपने आप मे काफी गूढ़ अर्थ लिए हुए है,चाहे वो,भ्रूण हत्या हो, रेप हो,दहेज प्रतारणा हो या आनर किलिंग या औरतो से जुड़ी हर समाजिक समस्या में कंही न कंही औरत का दखल  बहुत ज्यादा है,

फ़िल्म ये भी सिखाती है कि सहन करना या अडजस्ट करना बहुत अच्छी बात है मगर जो गलत लगे उसका विरोध जरूरी है,फ़िल्म सिखाती है कि"जिद करो दुनिया बदलो" ,जब आप किसी अच्छे काम के लिए निकलते है तो आपकी राहो में बहुत मुश्किले आती है मगर उनसे घबराना नही उनका सामना करना हल है,

फ़िल्म में एक गभीर विषय को हल्के फुल्के,ढंग से कई मजाकिया सीन के साथ पेश किया गया है,इससे ये सीखा जा सकता है कि आपकी समस्या को बोझ बनाकर नही मनोरंजक बनाकर पेश कीजिये उसे बहुत तवज्जो मिलेगी,आपके कहने का ढंग आपकी समस्या की गंभीरता का पैमाना है,

कुल मिला कर एक सुखद अनुभव ,मेरी व्यक्तिगत राय की इस फ़िल्म को भारत के प्रत्येक गांव में निशुल्क प्रदर्शन किया जाए इससे स्वच्छ भारत अभियान को बल मिलेगा,भारत मे शौच संबधी समस्याओं के लिये शौच व्यवस्था नही लोगो की सोचने की व्यवस्ता में परिवर्तन ज्यादा जरूरी है,इस। फ़िल्म को देखने के बाद एक  बधाई में भारत सरकार के उस अधिकारी को भी देना चाहूंगा जिसने शौचालय कार्यक्रम के लिए ये टैगलाइन बांयी कि "जहा सौच वहां शौचालय".ये फ़िल्म इस टैगलाइन को पूरा सार्थक करती है, भारत मे ऐसी और फिल्मों की जरूरत है, क्योकि भारत के एक बडे हिस्से  की आम जान जीवन शैली बड़े पर्दे से प्रेरित है,