बदलती परिस्थिति के साथ अपनी सोच मत बदलिये,क्योकि परिस्थिति तो फिर बदलेगी,
राम एक निहायत गरीब गरीब मजदुर था,एक दिन वो आदमी सड़क पे खड़े खड़े दूर से आती एक आलीशान बारात को देख रहा था,उसे पता ही नही चला की कब देखते देखते बारात पास गई,और वो बारात के रास्ते में खड़ा था,बारातियों ने उसको रास्ते से हटाने के लिए धक्का दे दिया और वो नीचे गिर गया,इस बात पर उसका बारातियों से विवाद हो गया, और बारातियों से उसे बुरी तरह धुन कर सड़क के किनारे पटक दिया,बारात के गुजर जाने के बाद अपने फटे कपडे और दर्दसे करहाते शरीर को थोड़ा व्यवस्थित कर वो रोने लगा और आसमान की और देख कर भगवान् से शिकायत की -
" हे भगवान् तुमने हम गरीबो को क्यों बनाया?? क्या सिर्फ इसलिए ताकि ये आमिर आये,हमारे साथ ज्यादती करे, हमें मारे पिटे और कचरे की तरह रौंद कर आगे बढ़ जाए, ऐसे जिल्लत भरी जिंदगी से अच्छा हम मर क्यों नहीं जाते,???
मगर ये बात उसके अहम् को ठेस पहुचा गई उसने भी पैसा कमाने के लिए खुद को समर्पित कर लिया, मेहनत मजदूरी बढ़ा दी, बाद में खुद का एक व्यापर शुरू कर दिया,और धीरे धीरे उसका व्यापार चल निकला और कुछ ही सालों में उसका नाम नगर के एक सम्पन्न और धनी व्यक्तियों की गिनती में होने लगा,और फिर एक दिन राम की शादी तय हो गयी,बड़े ही धूमधाम और आलिशान तरीके से उसकी बारात निकली,उसी रास्ते पर फिर उसकी बारात को देखने के लिए कुछ गरीब खड़े थे,और उन्हें ध्यान ही नहीं रहा की वो अनजाने में बारात का रास्ता रोक रहे है, फिर से बारातियों और वहां खड़े एक गरीब का विवाह हुआ,और बारातियों ने उस गरीब को मारा पीटा और धुन कर सड़क के किनारे फेक दिया,उस विवाद के बारे में जब राम को पता चला तो उसने फिर से आसमान की तरफ मुह किया और कहा-
" हे भगवान्! तूने इन गरीबो को क्यों बनाया,बस इसलिए की ये हमारी खुशियो के आड़े आये, हमसे विवाद करे, हमारा समय ख़राब करे,और हमारे कपडे खराब करे,ऐसे जिल्लत भरी जिंदगी जीते है और हमारी खुशिया बर्बाद करते है, ऐसी जिंदगी से अच्छा ये लोग मर क्यों नहीं जाते???
बस कहानी यही समाप्त होती है मगर एक सबक छोड़ जाती है कि हम सब एक दोहरे चरित्र और मानसिकता वाले समाज में रहते है, यहाँ आप की स्थिति,परिस्थिति और पहचान आपकी सोच तय करती है,हमको पता ही नहीं चलता की कैसे बदलते परिवेश के साथ हमारी सोच भी बदल जाती है,
बचपन में ये ये सोच कर आश्चर्य करते थे की सरकार कैसे काम करती है और बड़े होते होते ये सोच आ जाती है कि सरकार को कैसे काम करने से रोका जाए, भ्रष्टाचार विरोधी युवा सोच कब भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला सराकरी बाबू बन जाता है पता ही नहीं चलता, पैसे के अभाव में भौतिकता और सुविधावाद के विरोधी सोच पैसे आते ही सुविधावादी हो जाती है,सास को अपने कठोर अनुशासन के लिए टोकती बहु कब खुद एक कठोर सास बन जाती है उसे पता ही नहीं चलता,अपने माँ बाप पर बच्चो को न समझने का आरोप लगाते हुए बच्चे कब माँ बाप बनकर अपने बच्चों की बद्माशिबकी शिकायत करने वाले बन जाते है पता ही नहीं चलता,किसी संस्था में अपने पदाधिकारियि को उसके मनमानी के लिए कोसते हुए कब हम उसका नेतृत्व लेकर अपनी मनमानी करने लगते है पता ही नहीं चलता,
एक गरीब के हक़ के लिए लड़ते हुए हम कब आमिर होकर गरीबो को अपना विरोधी समझने लगते हैं पता ही नहीं चलता,
हम में अपनी परिस्थिति के अनुसार अपने विचार धारा में परिवर्तन हो जाता है और हमें खबर ही नहीं होती,हम धीरे धीरे उन बातों के समर्थन करने लगते है जिनका कभी घोर विरोध किया करते थे,जो बाते हमें अच्छी नहीं लगती थी उसी बात को करने लगते है,जिन बातों से हमारा दिल दुखता था उसी से लोगो का दिल दुखाने लगते है, अपने साथ हुए कुछ गलत काम का बदला अनजाने में ही सही हम उसी तरह का काम करके कई दूसरे आदमियों से लेते है, हम बदल जाते है और हमें पता भी नहीं चलता, हमारी सोच और नजरिया हमारा अंतर्मन नहीं हमारी परिस्थिति और हमारे स्थान तय करता है,
लेकिन ध्यान रखिए परिस्थिति बदलते देर नहीं लगती, जो पौधा पेड़ बनाता है वो सुख कर ठूंठ भी बन जाता है,जो बच्चा बड़ा हो कर ताकतवर युवा होता है वो बृद्ध होकर एक शक्तिहीन व्यक्ति हो जाता है,इसलिए अपनी सोच बदलने से पहले अपने अतीत और अपने भविष्य के बारे में जरूर सोच लेना की आप अपनी सोच को बदले न बदले वक्त तो बदलता ही रहता है,बस इतना याद रखना की "ऊपर चढ़ते समय उन हाथो को हमेशा याद रखना जिन्हीने सहारा देकर तुम्हे ऊपर चढ़ाया है क्योकि नीचे गिरते वक्त वही हाथ तुम्हे थामेंगे"
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