Tuesday, 25 April 2017

लाइफ मंत्रा: सुविधावाद : सबसे बड़ा धर्म

सुविधावाद: सबसे बड़ा धर्म,

कुछ महीनो पहले हिन्दू धर्म के ऊपर सुप्रीम कोर्ट के उपर एक याचिका दाखिल की गयी थी जिसमे हिन्दू धर्म की परिभाषा तय करने संबंधी मामला था, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि हिंदुत्व एक धर्म नहीं जीवन शैली है, धर्म आध्यत्म से ज्यादा जीवन यापन शैली और आस्था से जुड़ा है,काफी हद तक बहुत न्याय संगत और तर्क संगत फैसला था,

भारत वो देश है जहां हम अपनी धार्मिक आस्थाओं को किसी भी चीज से ऊपर रखते है चाहे वो मानवता हो, राष्टवाद हो,या समाजबाद हो,लेकिन बड़े ही अफ़सोस की बात है कि हम अपनी धार्मिक आस्थाओं को भी अपनी सुविधावादी नजरिये से ही तौलते है,हम अपने धर्म और आध्यात्म को सिर्फ तब तक पालन करते है जब तक की वो हमारे सुविधावाद के आड़े नहीं आता,

इस बात को एक उद्दाहरण से संमझते है,अगर हम रस्ते में जा रहे है और एक राम का मुखौटा और एक रावण का मुखौटा मिला और हमको एक ही मुखौटा उठाना है तो हम में से ज्यादातर लोग राम जी का ही मुखौटा उठाएंगे,मगर यदि रामजी का का मुखौटा लोहे का हो, और रावण का सोने का तो???? निसंदेह शत प्रतिशत नही तो 99 प्रतिशत लोग रावण का सोने का मुखौटा घर ले जायगे, बस हमारी आस्था यही तक सीमित है,यहाँ भौतिकतावाद और सुविधावाद आया हम अपनी आस्था और धर्म को भूल जाते है,

हम अपने धर्मग्रंथों और वेदों की सिर्फ वही बाते मानते है जिनको मानने से हमें कोई नुकसान न होता हो,हम सिर्फ अपने धर्म और शास्त्रों की वही बाते अपनाते है जिससे हमें सुविधा होती है, ख़ुशी होती है, श्री राम एक पितृभक्त,मर्यादा पुरुषोत्तम थे मगर हम उनसे सिर्फ सीताजी की अग्नि परीक्षा लेना सीखते है,भोलेनाथ ने लोगो के कल्याण के लिए विष पीया मगर हम् शास्त्रों का हवाला देकर उनसे भंग पीना सीखते है,कृष्ण जी ने भरी सभा में द्रोपदी की लाज बचाई मगर हम उनसे सिर्फ रास लीला सीखते है, हम अपने धर्म को सिर्फ अपनी सुविधा से उपयोग करते है,

भगवान् भाव के भूखे है, जब मन में भाव  होता  है तो पत्थर भी भगवान् हो जाते है, और जब भाव नहीं होता तो भगवान् भी पथ्थर हो जाते है,मन में।भावना बढ़ाइए, अपने सुविधावाद को अपने धर्म और आस्था पर हावी न होने दे,और एक बात याद रखिए मानवता सबसे बड़ा धर्म है,उस पर आस्था बनाये रखे,

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