Thursday, 27 April 2017

हर एक के दिल में हिंदुस्तान बस जाए

शौक से मंदिरों में गायत्री मन्त्र गूंजे,
शौक से मस्जिदों में अजान बजता रहे,
बस इतना ख्याल रखना की ऐसा न हो,
किसान आत्महत्या कर ले,और जवान मरता रहे,

धूम धाम से दीपावली के दिए जले,
शौक से ईद का त्यौहार मनता रहे,
बस इतना ख्याल रखना की ऐसा न हो,
की कोई गैर सरहदों पे अपने देश पर तनता रहे,

कंही कर लो आरती,कंही पर भी नमाज हो,
बस सबक इंसानियत का सबको याद हो,
मंदिरों में जल चढ़े या मंस्जिदों में चादरे
बस कोई भूखा न हो और ना कोई नँगा नाच हो,

मंदिरों में अल्लाह और मस्जिदों में भगवान् बस जाए,
मुसलमानो में हिन्दू और हिंदुओं में मुसलमान बस जाए,
कभी हथेली जोड़कर जो कभी हथेली खोलकर माँगा,
बस इतना ही की हर के दिल में हिंदुस्तान बस जाए,

Wednesday, 26 April 2017

लाइफ मंत्रा: बदलती परिस्थिति के साथ अपनी सोच मत बदलिये,क्योकि परिस्थिति तो फिर बदलेगी

बदलती परिस्थिति के साथ अपनी सोच मत बदलिये,क्योकि परिस्थिति तो फिर बदलेगी,

राम एक निहायत गरीब गरीब मजदुर था,एक दिन वो  आदमी सड़क पे खड़े खड़े दूर से आती एक आलीशान बारात को देख रहा था,उसे पता ही नही चला की कब देखते देखते बारात पास गई,और वो बारात के रास्ते में खड़ा था,बारातियों ने उसको रास्ते से हटाने के लिए धक्का दे दिया और वो नीचे गिर गया,इस बात पर उसका बारातियों से विवाद हो गया, और बारातियों से उसे बुरी तरह धुन कर सड़क के किनारे पटक दिया,बारात के गुजर जाने के बाद अपने फटे कपडे और दर्दसे करहाते शरीर को थोड़ा व्यवस्थित कर वो रोने लगा और आसमान की और देख कर भगवान् से शिकायत की -

" हे भगवान् तुमने हम गरीबो को क्यों बनाया?? क्या सिर्फ इसलिए ताकि ये आमिर आये,हमारे साथ ज्यादती करे, हमें मारे पिटे और कचरे की तरह रौंद कर आगे बढ़ जाए, ऐसे जिल्लत भरी जिंदगी से अच्छा हम मर क्यों नहीं जाते,???

मगर ये बात उसके अहम् को ठेस पहुचा गई उसने भी पैसा कमाने के लिए खुद को समर्पित कर लिया, मेहनत मजदूरी बढ़ा दी, बाद में खुद का एक व्यापर शुरू कर दिया,और धीरे धीरे उसका व्यापार चल निकला और कुछ ही सालों में उसका नाम नगर के एक सम्पन्न और धनी व्यक्तियों की गिनती में होने लगा,और फिर एक दिन राम की शादी तय हो गयी,बड़े ही धूमधाम और आलिशान तरीके से उसकी बारात निकली,उसी रास्ते पर फिर उसकी बारात को देखने के लिए कुछ गरीब खड़े थे,और उन्हें ध्यान ही नहीं रहा की वो अनजाने में बारात का रास्ता रोक रहे है, फिर से बारातियों और वहां खड़े एक गरीब का विवाह हुआ,और बारातियों ने उस गरीब को मारा पीटा और धुन कर सड़क के किनारे फेक दिया,उस विवाद के बारे में जब राम को पता चला तो उसने फिर से आसमान की तरफ मुह किया और कहा-

" हे भगवान्! तूने इन गरीबो को क्यों बनाया,बस इसलिए की ये हमारी खुशियो के आड़े आये, हमसे विवाद करे, हमारा समय ख़राब करे,और हमारे कपडे खराब करे,ऐसे जिल्लत भरी जिंदगी जीते है और हमारी खुशिया बर्बाद करते है, ऐसी जिंदगी से अच्छा ये लोग मर क्यों नहीं जाते???

बस कहानी यही समाप्त होती है मगर एक सबक छोड़ जाती है कि हम सब एक दोहरे चरित्र और मानसिकता वाले समाज में रहते है, यहाँ आप की स्थिति,परिस्थिति और पहचान आपकी सोच तय करती है,हमको पता ही नहीं चलता की कैसे बदलते परिवेश के साथ हमारी सोच भी बदल जाती है,

बचपन में ये ये सोच कर आश्चर्य करते थे की सरकार कैसे  काम करती है और बड़े होते होते ये सोच आ जाती है कि सरकार को कैसे काम करने से रोका जाए, भ्रष्टाचार विरोधी युवा सोच कब भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला सराकरी बाबू बन जाता है पता ही नहीं चलता, पैसे के अभाव में भौतिकता और सुविधावाद के विरोधी सोच पैसे आते ही सुविधावादी हो जाती है,सास को अपने कठोर अनुशासन के लिए टोकती बहु कब खुद एक कठोर सास बन जाती है उसे पता ही नहीं चलता,अपने माँ बाप पर बच्चो को न समझने का आरोप लगाते हुए बच्चे कब माँ बाप बनकर अपने बच्चों की बद्माशिबकी शिकायत करने वाले बन जाते है पता ही नहीं चलता,किसी संस्था में अपने पदाधिकारियि को उसके मनमानी के लिए कोसते हुए कब हम उसका नेतृत्व लेकर अपनी मनमानी करने लगते है पता ही नहीं चलता,
एक गरीब के हक़ के लिए लड़ते हुए हम कब आमिर होकर गरीबो को अपना विरोधी समझने लगते हैं पता ही नहीं चलता,

हम में अपनी परिस्थिति के अनुसार अपने विचार धारा में परिवर्तन हो जाता है और हमें खबर ही नहीं होती,हम धीरे धीरे उन बातों के समर्थन करने लगते है जिनका कभी घोर विरोध किया करते थे,जो बाते हमें अच्छी नहीं लगती थी उसी बात को करने लगते है,जिन बातों से हमारा दिल दुखता था उसी से लोगो का दिल दुखाने लगते है, अपने साथ हुए कुछ गलत काम का बदला अनजाने में ही सही हम उसी तरह का काम करके कई दूसरे आदमियों से लेते है, हम बदल जाते है और हमें पता भी नहीं चलता, हमारी सोच और नजरिया हमारा अंतर्मन नहीं हमारी परिस्थिति और हमारे स्थान तय करता है,

लेकिन ध्यान रखिए परिस्थिति बदलते देर नहीं लगती, जो पौधा पेड़ बनाता है वो सुख कर ठूंठ भी बन जाता है,जो बच्चा बड़ा हो कर ताकतवर युवा होता है वो बृद्ध होकर एक शक्तिहीन व्यक्ति हो जाता है,इसलिए अपनी सोच बदलने से पहले अपने अतीत और अपने भविष्य के बारे में जरूर सोच लेना की आप अपनी सोच को बदले न बदले वक्त तो बदलता ही रहता है,बस इतना याद रखना की "ऊपर चढ़ते समय उन हाथो को हमेशा याद रखना जिन्हीने सहारा देकर तुम्हे ऊपर चढ़ाया है क्योकि नीचे गिरते वक्त वही हाथ तुम्हे थामेंगे"

Tuesday, 25 April 2017

लाइफ मंत्रा: सुविधावाद : सबसे बड़ा धर्म

सुविधावाद: सबसे बड़ा धर्म,

कुछ महीनो पहले हिन्दू धर्म के ऊपर सुप्रीम कोर्ट के उपर एक याचिका दाखिल की गयी थी जिसमे हिन्दू धर्म की परिभाषा तय करने संबंधी मामला था, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि हिंदुत्व एक धर्म नहीं जीवन शैली है, धर्म आध्यत्म से ज्यादा जीवन यापन शैली और आस्था से जुड़ा है,काफी हद तक बहुत न्याय संगत और तर्क संगत फैसला था,

भारत वो देश है जहां हम अपनी धार्मिक आस्थाओं को किसी भी चीज से ऊपर रखते है चाहे वो मानवता हो, राष्टवाद हो,या समाजबाद हो,लेकिन बड़े ही अफ़सोस की बात है कि हम अपनी धार्मिक आस्थाओं को भी अपनी सुविधावादी नजरिये से ही तौलते है,हम अपने धर्म और आध्यात्म को सिर्फ तब तक पालन करते है जब तक की वो हमारे सुविधावाद के आड़े नहीं आता,

इस बात को एक उद्दाहरण से संमझते है,अगर हम रस्ते में जा रहे है और एक राम का मुखौटा और एक रावण का मुखौटा मिला और हमको एक ही मुखौटा उठाना है तो हम में से ज्यादातर लोग राम जी का ही मुखौटा उठाएंगे,मगर यदि रामजी का का मुखौटा लोहे का हो, और रावण का सोने का तो???? निसंदेह शत प्रतिशत नही तो 99 प्रतिशत लोग रावण का सोने का मुखौटा घर ले जायगे, बस हमारी आस्था यही तक सीमित है,यहाँ भौतिकतावाद और सुविधावाद आया हम अपनी आस्था और धर्म को भूल जाते है,

हम अपने धर्मग्रंथों और वेदों की सिर्फ वही बाते मानते है जिनको मानने से हमें कोई नुकसान न होता हो,हम सिर्फ अपने धर्म और शास्त्रों की वही बाते अपनाते है जिससे हमें सुविधा होती है, ख़ुशी होती है, श्री राम एक पितृभक्त,मर्यादा पुरुषोत्तम थे मगर हम उनसे सिर्फ सीताजी की अग्नि परीक्षा लेना सीखते है,भोलेनाथ ने लोगो के कल्याण के लिए विष पीया मगर हम् शास्त्रों का हवाला देकर उनसे भंग पीना सीखते है,कृष्ण जी ने भरी सभा में द्रोपदी की लाज बचाई मगर हम उनसे सिर्फ रास लीला सीखते है, हम अपने धर्म को सिर्फ अपनी सुविधा से उपयोग करते है,

भगवान् भाव के भूखे है, जब मन में भाव  होता  है तो पत्थर भी भगवान् हो जाते है, और जब भाव नहीं होता तो भगवान् भी पथ्थर हो जाते है,मन में।भावना बढ़ाइए, अपने सुविधावाद को अपने धर्म और आस्था पर हावी न होने दे,और एक बात याद रखिए मानवता सबसे बड़ा धर्म है,उस पर आस्था बनाये रखे,

Wednesday, 19 April 2017

आरएसएस- एक आदर्श कार्यशैली

मेरा ये लेख उन लोगो के लिए है जो आरएसएस को सिर्फ न्यूज़,टीवी,अखबारों, और लोगो से सुनकर जानते है,मैंने इस लेख में सिर्फ शाखा की कार्यशैली के बारे में।जानकारी दी है, जो की आपको कभी बताई या दिखाई नहीं जाती,

*आरएसएस: एक पारम्पारिक भारतीय जीवन शैली,सादा जीवन: उच्च विचार,*

- *विकाश खेमका,काटाबांजी*

आरएसएस का नाम सुनते है एक चित्र जो मन में उभरता है वो है खाकी हॉफपेन्ट,और सफ़ेद शर्ट  पहने, सर में काली टोपी लागाये,हाथो में एक लठ्ठ लिए  एक इंसान और साथ में एक कट्टर हिन्दुत्वावादी सोच, अभी तक आम जनमानस में इसकी यही परिभाषा है,देश का ही नहीं विश्व का सबसे बड़े गैर सरकारी स्वयं सेवी और सामाजिक संगठन जिसके लगभग पुरे विश्व में 50 लाख से अधिक कार्यकर्ता है, इस संघटन का मूल उद्देश्य हिन्दू राष्टवाद है या राष्ट्रवादी हिन्दू होना है ये इसके आविर्भाव से विवाद का विषय रहा है मगर मेरा ये लेख इसके उद्देश्यों लेकर नहीं बल्कि इसकी कार्यशैली को लेकर है,इस लेख का उद्देश्य शाखा की कार्यशैली और  हमारी आम  जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालना है, जिस व्यक्ति ने सिर्फ आरएसएस का नाम टीवी में, मीडिया में, या लोगो से सुना है उसके लिए आरएसएस सिर्फ एक संस्था है जो  हिंदुत्व के हितों के लिए कार्य करती है,जिन्होंने इसकी निरन्तर प्रतिदिन लगाने वाली शाखा नहीं गए है वो इनकी कार्यशैली से परिचित नहीं है,

मैं शिशु मंदिर में पढ़ा हुआ हुआ छात्र हु, और शिशु मंदिर आरएसएस की ही एक इकाई शिक्षा विकास समिति द्वारा संचालित होता है, इसलिए इसकी शिक्षा पद्धत्ति पास संघ की विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव है,इसके लावा पिछले एक साल से लगभग नियंमित शाखा से जुड़कर मैंने इसे महसूस किया है, उसी का कुछ अनुभव है कि शाखा की कार्यशैली कैसे एक आदर्श जीवन जीने को प्रेरित करती है,

जो लोग शाखा नहीं गए है उनको बता दू की लगभग एक घंटे की प्रतिदिन लगने वाली शाखा में क्या होता है,इस एक घंटे में सबसे पहले एक निश्चित समय में ध्वज लगाकर उसको गुरू मनाकर प्रणाम किया जाता है, फिर मिनटं का थोड़ा वर्क आउट , फिर दंड अभ्यास(लठ्ठ चलाना), फिर योगासन,योग, फिर समता( सैनिकों द्वारा किया जाना वाला साधारण अभ्यास) फिर खेल,फिर एक सामूहिक गीत, कुछ बौद्धिक चर्चा,फिर ध्वज प्रार्थना जिसका अर्थ राष्ट्रहित के लिए खुद को मजबूत बनाकर राष्ट्र का सर्वश्रेठ बनाना है के साथ शाखा समाप्त की जाती है,

इस एक घंटे में शाखा में प्रयास किया जाता है कि मानव के व्यक्तित्व विकाश के सभी पहलुओं को स्पर्श किया जाये,सबसे पहले तो शाखा में समय को बड़ा महत्व दिया जाता है ,और समय परायणता को विशेष ध्यान दिया जाता है,शाखा में किसी भी व्यक्ति को गुरु को दर्जा नहीं दिया गया ध्वज को दिया गया है,जिसके पीछे तर्क ये है कि व्यक्ति का ह्रदय परिवर्तन शील होता है जबकि भगवा ध्वज एक त्याग का प्रतिक है और हिन्दुधर्म में हमेशा स्मामन्नीय है,इसके बाद वर्क आउट और योगासन द्वारा शारीरिक विकाश, दंड अभ्यास द्वारा आत्मरक्षा के गुर सीखना, खेल द्वारा मनोरंजन, संमता एवम सामूहिक गीत में एक एकता का अभ्यास, बौद्धिक में शरीर का मानसिक विकास एवम निरन्तर प्राथना कर संघ के उद्देश्यों की पुंरावरित्ति कर उसे स्मरण रखने का प्राइस किया जाता है,

इसके अलावा शाखा की मूल सिद्धन्त है आडम्बर हिन् जीवन, छुआछूत रहित भावना, सेवा कार्य,परस्पर समानता का भाव, जो की मेरी इस चर्चा का मूल विषय है,शाखा के कोई भी कार्यक्रम जिस सादगी से होता है वो प्रशंसा के लायक है, इसमें चाहे जितना बड़ा से बड़ा अधिकारी आ जाये वो जमींन में ही बैठता है, अपनी खाने की प्लेट खुद धोता है, अपने सारे काम खुद करता है,अनुशाशीत होता है,बड़ा या छोटा नहीं होता,शाखा में धन या जाति से कोई बड़ा नहीं होता,इसमें सभी को एक समान माना जाता है,कुल मिला कर जीवन के चहुमुखी विकाश के लिए जो मैनेजमेंट के फंडे बड़े बड़े विद्यालयो की पुस्तकों में थ्योरी के रूप में पढ़ाया जाता है शाखा में वही सब व्यवहारिक रुप से बताया जाता है

आज के आडम्बर पूर्ण जीवन में जहा लोग भौतिक सुखों के पीछे भाग रहे है,एक छोटे से आयोजन के लिए लाखी खर्च कर देते है है ऐसे में एक सिमित व्यवस्था में केवल अनुशाशन और अभयास के द्वारा कैसे आडम्बर हींन आयोजन किया जाये इसका उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है,शाखा में आपको ये याद दिलाया जाता है कि चाहे आप जितनी भी धनी या बड़े पहुच वाले व्यक्ति है आपकी मौलिक आवश्यकताएं बहुत सीमित है और बहुत कम में आराम से गुजारा किया जा सकता है, इसके अलावा शाखा का एक सिद्धन्त है कि शाखा किसी भी सेवा कार्य या अपने आयोजनों में बैनर का उप्योगमहि करता उसकी पहचान ही उसका बैनर है,जो की इस बात का प्रतिक है  सामाज सेवा केवल नाम और यश के लिए मन की शांति के लिए की जाती है,

अगर आज देश के प्राधानमंत्री समेंत कई राज्यो के मुख्य मंत्री आरएसएस के पृष्ठभूमि के है और स्वच्छ छवि के है तो इस के पीछे कंही म् कंही शाखा के बुनियाद है,ये सभी व्यक्तित्व विकाश की उस गंगा शाखा में नहाए हुए हीरे है,जहा राष्ट्रवाद का ज्ञान दिया जाता है,जहा स्वम से आगे राष्ट्र को रखा जाता है,

आप शाखा की विचार धारा से सहमत हो न हो,ये आपका मत हो सकता है मगर आप शाखा की कार्यशैली के विरोधी नहीं हो सकते,आज के आधुनिक शिक्षा प्रणाली में जहा स्कुल बच्ची को एडुकेटेड बनाते है वही शाखा आपको सिविलाइज्ड बनाता है,

मेरे इस लेख का मकसद कोई शाखा की पैरवी करना नही,सिर्फ आपके सामने शाखा की कार्यशैली बताना है, अक्सर हम बिना किसी चीज/व्यक्ति/संगठन के बारे में पूरा जाने उसके बारे में अपनी धारणा बना लेते है मेरा उद्देश्य बस उस अधूरी जानकारी के बारेमें कुछ जानकारी आप के समक्ष रखना है,शाखा का लक्ष्य में पहले राष्ट्र है या हिदुत्व ये बहस का मुद्दा हो सकता है मगर शाखा की कार्यशैली  एक आदर्श जीवन शैली सादा जीवन उच्च विचार जीने के लिए प्रेरित करती  है,

अगर कोई संस्था आपको आपके धर्म और आपकी गौरवशाली संस्कृति को स्मरण करवा कर आपको उस पर गर्ब करने का अवसर देती है, और इस के लिये उस पर स्माप्रदायिक होने का स्टाम्प लगता है तो मैं जरूर कहूंगा कि आरएसएस एक स्माप्रदायिक सगठन है,मैं आपके को ये भी नहीं कहता की शाखा से जुड़िये बस यही कहता हूं कि आपनी जीवन शैली को भौतिकता वादी और सुविधावादी सोच से दूर करके राष्ट्रवादी बनाइये,

Tuesday, 18 April 2017

लाइफ मंत्रा:अपना रास्ता बदलिये- लक्ष्य नहीं

रास्ता बदलिए: लक्ष्य नहीं,

एक व्यक्ति रात को एक स्ट्रीट लाइट के नीचे कुछ ढूंढ रहा था, उसको कुछ ढूंढते देख लोगो ने उससे पूछा की क्या ढूंढ रहे हो,उस व्यक्ति ने बताया कि उसका पर्स गिर गया है,उसे खोज रहा हूं, लोगो ने उसकी पर्स ढूढने में मदद की मगर नहीं मिला तो लोगो ने उससे पूछा की कुछ अंदाजा है कि पर्स कहा गिरा, तब उस व्यक्ति ने बताया कि यहाँ से आधा किलो मीटर दूर एक अँधेरे रस्ते में उसका पर्स गिर गया है, लोगो ने उस पर गुस्सा किया और कहा- क्या पागलो के जैसे हरकते कर रहे हो, जब पर्स यहाँ से आधा किलोमीटर दूर अँधेरे रास्ते में गिरा है तो यहाँ क्यों ढुढ रहे हो, तो उस आदमी ने मासूमियत से जवाब दिया की क्योकि वहां अन्धेरा है, और किसी भले मानस ने मुझसे कहा कि उजाले में ढूंढना जल्दी मिल जाएगा,और यहाँ उजाला है इसलिए उजाले में ढूढने से जल्दी मिल जाएगा,शायद इसलिए यहाँ स्ट्रीट लाइट के उजाले में ढूंढ रहा हु,लोगो ने अपना सर पिट लिया,

हम भी बहुत कुछ उस व्यक्ति की तरह है जो  हमेशा अपना सुख,चैन, सफलता, ख़ुशी, ढूंढते है लेकिन वहां जहा वो नहीं होता है, हम पैसो की चकाचौन्ध,गाडियो की चमक, भौतिकतावाद की रौशनी में अपना सुख खोजते है,जो की वहां है ही नही, उस सुख को तो हम अपने परिवार की अँधेरी गालियो में छोड़ आए है, अपने सोते हुए बच्चो के पास छोड़ आए है,वो सुख हम भावनाओ को दरकिनार करके उत्पनन हुए अंधेरों में छोड़ आए है, और सुख को हम सुविधावादी जीवन शैली में तलाश करते है,हम् मानव जाति है जो समाज से जुड़े है, समाज के अंधेरों को दूर किये बिना हम अगर अपनी घर में रौशनी करने की कोशिश करते है और सोचते है कि खुश रह लेंगे तो ये हमारा भ्रम है, अपने परिवार की अवहेलना कर अगर हम पैसे कमा कर अपने आप को सुखी रख सकते है ये हमारा भ्रम है,

इसके अलावा एक बात और है,हम जब किसी कार्य में असफल होते है तो उसके लिए अपने प्रयासो को सुधारने और बंदलने की जगह हम अपना लक्ष्य बदल देते है,जिस जगह आप को पता है कि 20 फ़ीट खोदने के बाद पानी निकलेगा,वहा हम 5 - 5 फ़ीट के 4 गड्ढे खोद कर कहते है कि हमने तो पूरी कोशिश की थी मगर हमारी किस्मत ही ख़राब थी,की हमें सफलता नहीं मिले,हम हमेशा उन बातो में सुधार करते है जो आसान  तो होता है मगर हमारी असफलता के लिए मुख्य कारण नहीं होता, और जो असफलता के लिए मुख्य कारण होता है उसे सुधारना थोड़ा मुश्किल होता है ,इंसान की प्रकृति है कि वो मुश्किल काम से भागता है,और हम अक्सर अपने प्रयासो का दिखावा करते है, हमें असफल होना गवारा है मगर अपने आप को प्रयास करता दिखाकर हम सामाजिक उपेक्षा से बचना चाहते है,लेकिन अगर कुछ पाना है या कुछ ढूढना है तो पहले इन बहानो को भूलना होगा,और मुश्किल काम करना होगा, हर आसान काम पहले मुश्किल होता है और फिर हर मुश्किल आसान हो जाती है,नादिया रास्तो की लंबाई देखकर बहना नहीं छोड़ती,अपने प्रयास जारी रखिये, और बहाने छोड़िए,

अपने प्रयास सही जगह और सही क्षेत्र में  में लगाये, जहा आवश्यक्ता है वहां मेहनत कीजिये,रास्ते की मुश्किलें देखकर लक्ष्य मत बदलिए,बल्कि अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपना रास्ता बनाइये,

कोई लक्ष्य मनुष्य के साहस से बड़ा नही,
हारा बस वो है जो मुश्किलों से लड़ा नहीं,

लाइफ मंत्रा: अपनी क्षमता पहचानिए: उसी अनुसार कार्य कीजिये

अपनी क्षमता पहचानिए: अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करे,

राहुल द्रविड़ भारत के सबसे भरोसे मंद बल्लेबाज के रूप में जाने जाते है उन्हें क्रिकेट में "द वाल" यानी दिवार कहां जाता है, उनके बारे में ये मशहूर था कि उनके क्रिकेट  केरियर के बारे में उनकी खासियत वो गेंदे नहीं जो उन्हने खेली थी बल्कि वो गेंदे थी जो उन्होंने नहीं खेली,यानी की लेफ्ट कर दी,उनको टेस्ट क्रिकेट का सबसे महानतम बल्लेबाज में एक  बनाने में उनकी गेंद लेफ्ट करने की तकनीक का सबसे ज्यादा योगदान था, मशहूर कॉमेंटेटर हर्षा भोगले ने उनके बारे में एक कमेंट दिया था कि ये सब वो इंस लिए आसानी से कर पाते है है क्तयोकी उनको पता है कि उनका ऑफ स्टाम्प कहा है,उनको अपनी क्षमता का अंदाजा है,पहचान है, अपनी सीमितता पता है, और वो अपनी सीमितता जानते हुए अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करते है,

यही बात हमारी जिंदगी के लिए भी महत्वपूर्ण है, हमें भी अपनी जिंदगी में अपनी क्षमताओं का अहसास हुआ चाहिए, साथ में ये भी पता होना चाहिए की हमारा ऑफ स्टाम्प कहा है, किसी की जिंदगी परफेक्ट नहीं है हर किसी में कुछ न कुछ कमी है हर किसी की जिनदगी कीच सिमित है, मगर इस सीमितता के भीतर रह कर अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करना ही सफलता है,

अक्सर हम अपने आप को बहुत कम या बहुत ज्ज्यादा
आकलन कर उस हिसाब से अपना कार्य करते है, जहा कम आंकलन से हम हीन भावना का शिकार होते है,वही ज्यादा आकलन कर हम उस पूरी तैयारी के आभाव में खुद को असफल कर लेते है,तो एक बार किसी भी काम को करने से पहले अपनी क्षमताओं का आकलन कीजिये, उस हिसाब से काम कीजिये, घोड़ा तेज दौड़ाने के लिए अपने पैरों में नाल लगवाता है इसका मतलब ये नहीं की मेढ़क भी लगवाए, हर किसी की शक्ति अलग है, खासियत अलग है, अपनी खासियत में साथ अपनी लिमिट भी ध्यान रखे,

और एक खास बात अपना प्रयास निरंतर रखे,कोई इतना आमिर नहीं की अपना इत्तिहास बदल ले, और कोई  गरीब नहीं की अपना भविष्य न सुधार सके,अपनी कोशिश जारी रखिये, जो है उसका उपयोग कर जो नहीं है उसको पाने का प्रयास कीजिये,

बस ये याद रखिए कि आपका" ऑफ स्टाम्प कहा है,"

Friday, 14 April 2017

मेरा छोटा सा नगर कितना महान है

मेरा नगर भी कितना महान है...
एक छोटा सा हिंदुस्तान है...

पानी का स्वाद एक सा है
चाहे वो लहर है या रहमान है...

पैरों में कोई फर्क नहीं समझती
यहाँ शिव शक्ति के साथ अल-हबीबी की दूकान है..

कोई असहिष्णुता नहीं, कोई भेदभाव नहीं
हिंदुओ की मैजोरिटी में भी विधायक मुसलमान है,

बड़े जोर से बजते है गायत्री मंत्रोचार
और स्वछंद होती यहां अजान है..

इससे बड़े सद्भाव की मिसाल क्या हो vikash khemka
राम मंदिर काम्प्लेक्स में अली की दूकान है..

रामनवमि की भी धूम  है यहां..
ईद का त्यौहार भी आलीशान है...

मेरा नगर कितना महान है
एक छोटा सा हिन्दुतान है....

Wednesday, 12 April 2017

लाइफ मंत्रा: कोई ऐसे ही नंबर वन नहीं होता:

कोई ऐसे ही निरंतर नंबर वन नही होता: कोई न कोई कारण होता है,

पुरे उड़ीशा में उड़िया दैनिक संवाद उड़ीसा के पत्रकारिता में सबसे बड़ा नाम है,अनाधिकारिक रूप से ये खा जाता है कि जितना सर्कुलेशन उड़ीशा में सम्वाद का है बाकी सब अखबारों का मिला कर भी उतना नहीं है,सम्वाद उड़ीशा का नंबर एक अखबार है,यही स्थान पश्चिम उड़ीशा में हिंदी दैनिक नवभारत  है, जो पश्चिम उड़ीशा का सबसे बड़ा और ज्यादा सिर्क्युलते होने वाला हिंदी दैनिक है, इस विषय में आज मेरे एक मित्र Banti Gupta पसे मेरी बात हुई तो उन्हीने कहा कि कोई ऐसे ही नंबर वन नहीं होता,इन लोगो का काम करने का तरीका ही अलग है,रेस्पॉन्सिव है, छोटी छोटी बातों का केअर करते है,

इस बात ने कुछ सोचने पर मजबूर किया,हम अक्सर हम देखते है कि कई क्षेत्रों में कई कंपनिया, या कई लोग  हमेशा नंबर वन होते है, उनका कोई मुकाबला ही नहीं है,क्रिकेट में सचिन हो,ओलिंपिक में माइकल फिलिप हो,गायन में लता मंगेशकर हो, अभिनय में अमिताभ हो, या और स्मार्टफोन में सैमसग हो,कंप्यूटर चिप में इंटेल हो,सॉफ्टवेयर में माइक्रोसॉफ्ट हो या फिर सोशल मीडिया में फेसबुक और व्हात्सप्प,इनका कोई मुकाबला ही नही है,कोई निकटतम प्रतिद्वंदी ही नहीं,

क्यों कोई व्यक्ति,कंपनी या संस्ता इतना बड़ा हो जाता है कि बाकी सब उसके सामने कोई टिक ही नहीं पाता,बाहर सेदेखने पर लगता है कि उनकी किस्मत अच्छी थी वरना वो ऐसे ऊँचे मुकाम पर नहीं पहुचते,लेकिन मित्रो ये सिर्फ किस्मत नहीं है ये अपने काम के प्रति उनका समर्पण उनका विश्वास,उनका जुनून है जो अपने अपने क्षेत्र में उन्हें नंबर वन बनाता है, किस्मत से आप कभी एक बार के लिए नंबर वन बन तो सकते है लेकिन टिके नहीं रह सकते,अगर ये सब आज अपने क्षेत्र में निरंतर उंचाईयों पर है तो इसके पीछे कोई न कोई कारण है,

ये कारण है उनका काम करने का तरीका, परफेक्शन,जोश,उत्साह, से काम करना, वो कुछ अलग काम नहीं करते मगर हर काम अलग तरीके से करते है, दंगल भारत के इत्तिहास में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है जिसका श्रेय बहुत कुछ आमिर खान को जाता है उन्हें mr परफेक्शनिस्ट भी कहा जाता है,उनका काम करने का तरीका अलग है इस बात को इस बात से समझा जा सकता है कि इस फिल्म में 15 सेकेंड के उनके फाइट सीन के लिए उन्होंने 6 मंहिने तक मेहनत की और अपना वजन 34 किलो काम किया और फिर उस सीन के बाद एक प्रौढ़ व्यक्ति दिखने के लिए अगले 6 महीने में अपना वजन 52 किलो बढ़ाया,ये है परफेक्शन, सचिन तेंदुलकर क्रिकेट मे सबसे बड़ा नाम होने के बाद भी जब तक टीम में रहे लगातार 6 घंटे क्रिकेट की प्रैक्टिस की, तैराक माइकल फेलप जिन्हीने तैराकी में 21 ओलम्पिक स्वर्ण जीते वो ओलिंपिक में अपने 2 मिनट के प्रदेर्शन के लिए प्रतिदिन 12 घंटे अभ्यास करते है,

कुल मिला कर जो नंबर वन है उनका मुकाबला खुद से होता है और जो खुद से निरंतर जीतता रहता है उसे कोई नहीं हरा सकता,अगर आज कोई व्यक्ति सफलता का सूरज बन कर चमक रहा है तो इसलिए क्योकि वो पहले सूरज की तरह जला होगा,हर सफलता की ऊंचाई में खडे लोगो के पाँव में छाले होते है,

कोई ऐसे ही निरंतर नंबर वन नहीं होता ये उसकी किस्मत नहीं उसकी निरंतर मेहनत का प्रमाण है जो उसे लगातार उंचाईयों पर बनाये रखती है,इन सभी के जीवन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है, सिर्फ अपनी किस्मत को कोसना छोड़िए,अपने आप पर भरोसा कीजिये,आपकी किस्मत हमेशा तो ख़राब नहीं होती,अपने प्रयास को निरंतर रखिये,अक्सर कड़ी मेहनत काबिल लोगों को हरा देती है अगर काबिल मेहनत न करे ,

जो मुस्करा रहा है उसने कभी दर्द पाला होगा
जो चल रहा है उसके पैर में कंही छाला होगा,
ऐसे ही कोई नहीं चमकता सूरज सा मेरे दोस्तो,
जो जला होगा पहले उसी के पीछे तो उजाला होगा,

कोशिश करते रहिए...