वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।
हाथ में ध्वजा रहे ,
बाल - दल सजा रहे ,
ध्वज कभी झुके नहीं ,
दल कभी रुके नहीं ।
वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।
सामने पहाड़ हो ,
सिंह की दहाड़ हो ,
तुम निडर हटो नहीं,
तुम निडर डटो वहीं ।
वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।
मेघ गरजते रहें
मेघ बरसते रहें
बिजलियाँ कड़क उठें
बिजलियाँ तड़क उठें
वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो
प्रात हो कि रात हो
संग हो ना साथ हो
सुर्या से बढे चलो
चंद्र से बढे चलो ।
वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो
-द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी
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