सामाजिकता का कीड़ा,
मुझे आज भी याद है वो दिन,हमारी 7 वी क्लास का साइंस पीरियड, आज हमें ये पढ़ाया जा रहा था की दूध से दही कैसे जमाया जाता है,
आचार्य जी ने समझाया की दूध में जब हम कुछ जामन डालते है तो उसके बाद से उसमे कुछ कीटाणु सक्रीय हो जाए है और उसमे रासायनिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है और फिर एक निश्चित समय के बाद दूध से दही जम जाती है, गर्मी में वो कीटाणु अपेक्षकृत तेजी से सक्रीय होते है इसलिए दही जल्दी जमती है,और ठण्ड में धीरे,
जब से ये जानकारी मिली की दूध से दही जमने का मुख्य कारण कुछ कीटाणु होते है तो इस जानकारी के बाद से मुझे दही खाने में झिझक हिने लगी,मुझे समझ में नहीं आ रहा था की बड़े लोग तो कहते है की दही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है जब की विज्ञान कहता है इसमें कीटाणु भरे है,उस समय सुबह का नास्ता ही दही रोटी था, जब अगली सुबह मैंने दही खाने से मना किया और कारण पूछने पर बताया की आज हमें स्कूल में पढ़ाया गया है की दूध में जब कीटाणु सक्रीय होते है तो दही जमता है,और मैं कीटाणु वाली चीज नहीं खाऊंगा,तब मेरी माँ ने मुझे समझाया की बेटा स्कूल में बिलकुल सही पढ़ाया गया है और मेरा संयश दूर किया की ये कीटाणु ही हमारे स्वास्थ्य का आधार है ये वो कीटाणु है जो हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता पैदा करते है, और हमें बीमार होने से बचाते है,कुल मिलाकर हमारे शरीर में अच्छे और बुरे दोने कीटाणु होते है बुरे कीटाणु वायरस का काम करते है हमें बीमार करते है और वंही जो कीटाणु दूध दही,इत्यादी में रहते है वो एंटी वायरस का काम करते है,तो हमारे अंदर जितना ज्यादा एंटीवायरस होगा हम उतने कम बीमार पड़ेंगे,स्वस्थ्य रहेंगे,
बात मुझे संमझ में आई और फिर से मैंने निरन्तर दही खाना जारी रखा,
ऐसा ही कुछ फिर से मेरे साथ हाल ही के दिनों में फिर से हुआ,आपने आसपास के प्रभाव और कुछ अपनी सोच से मैं पिछले 3 वर्षो से समाज सेवा,सामजिक कार्यो और संस्थाओ से जुड़ा और कई संस्थाओ में सक्रीय भाव से काम किया, जब अपने आस पास के दोस्तों में मैं एक सामजिक कार्यकर्ता के रूप में जाना जाने लगा तो अक्सर ये सुनने को मिलने लगा की इसको समाजिकता या समाजसेवा के कीड़े ने काट लिया है ये अपने बस में नहीं है,लगातार ये समाजसेवा के कीड़े काटना की बात ने मुझे बहुत सोचने पर मजबूर किया, कई बार नकारत्मक सोच भी आई की क्या मैंने सामाजिक होकर कोई गलती तो नहीं की है???
बहुत सोचने के बाद इसका जवाब मुझे अपने 7वी कक्षा में पढ़ाये गए उपरोक्त पाठ से याद आया, तब लगा की ये कीड़ा सबमे होना चाहिए,
ये वो कीड़ा है जो मन में आने वाले हर नकारत्मक सोच के लिए एंटी वायरस का काम करता है, ये वो कीड़ा है जो किसी भी असफलता को आप पर हावी नहीं होने देता है,
ये वो कीड़ा है जो आपको एक बार हारने के बाद भी दोबारा खड़े होने की शक्ति देता है, ये वो कीड़ा है जो आप की सफलता के प्रति भूख बढ़ाता है, ये वो कीड़ा है जो हमारे मन की आंतरिक स्वास्थ्य को बनाये रखने में मदद करता है, ये वो कीड़ा है जो बाहर की नकारात्मक बातो को आप में घुसने से बचाता है, तो अगर ये कीड़ा आप में है तो आप के पास एक ताकत है,
अगर आप के अंदर ये समाजिक होने का समाज के लिए कुछ करने का कीड़ा नहीं है तो आप को सोचने की आवश्यकता है ,मुझे एक कीड़े की कदर पता है,
और मैं हमेशा कोशिश करता हु की ये कीड़ा और मजबूत होता रहे,
आप ये आप को ये सोचने की जरुरत है की कौन सही है,
इसी तरह के
मेरी और भी विषयो पर मेरे विचार पढ़ने के लिए लोग इन करे http://vikashkhemka.blogspot.com
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