आज की कविता,
देश में बढ़ते आरक्षण की आग के विरोध में
कैसा अंधा कानून है कैसी अंधी होड़ है,
देश ये आगे कैसे बढे जब यहाँ पिछड़ा बनने की दौड़ है,
कंही पटेल,कंही गुर्जर कंही जाट दंगा करते है,
आरक्षण के नाम पे पुरे देश में पंगा करते है,
आरक्षण के नारे लेकर देखो वो चिल्लाते है,
जिनके बेटे audi लेकर कालेज पढ़ने जाते है,
जाट पात की इस आग में देश को फिर से झोक दिया,
विजयी विश्व तिरंगे का आगे बढ़ने से रोक दिया,
जो आरक्षण की मांगे है करते वो देश से एक करार करे,
जब वो बीमार हो तो कोई आरक्षणि उनका उपचार करे,
आरक्षण जितना चहिये उतना देश से ले लो तुम,
कभी सियाचिन में जाकर
मौत से कभी खेलो तुम,
देश पे मरने की बारी आई तो आरक्षण मर जाता है,
एक साधारण जाति का सैनिक बरफ तले दब जाता है,
आरक्षण देश क कलंक इस कालिख को तुम साफ़ करो,
जात पात को भूल के काबिल के संग इन्साफ करो,
40 पर्सेंट मार्क लाकर कोई डॉक्टर बन जाता है,
कोई 90 पर्सेंट वाला दर दर ठोकर खाता है,
उसको आरंक्षण क्यों है की मिलता जो की धन्ना सेठ है,
आरक्षण अधिकार है उसका जिसका भूखा पेट है,
भीख मांगना छोड़ो अब तुम भी स्वाभिमानी बनो,
कब तक गुर्जर,जाट रहोगे,कभी तो हिन्दुस्तानी बनो,
कृपया बिना किसी कांट छाट के मूल रूप में शेयर करे,
विकाश खेमका
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आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,