Tuesday, 23 February 2016

J N U प्रकरण पर मेरी "पहली कविता"

आप सब ने मेरे कई लेखो को बहुत सराहा है,
अब एक कदम और आगे बढ़कर आज पहली बार एक कविता लिखी है,

jnu प्रकरण पर मैंने भी कुछ लिखने का प्रयास किया है

आपकी राय चाहूँगा

वीर भगतसिंग के जैसे कितने ही फांसी  पर झूल गए,
भारत माता की खातिर वो सबकुछ अपना भूल गए,

ये वो परवाने थे जो मरकर अभी भी जिंदा है,
लानत उन गद्दारो पर जो अफजल की मौत में शर्मिंदा है,

लोकतंत्र के मंदिर पर हमला कर जिसने वीरो को मारा  था,
उसको फांसी वाला दिन  भारत के लिए नया उजियारा था,

आतंकी को शहीद बता कर उस पर नारे गढ़ते हो,
देश के पैसो से जो चलती उस jnu में पढ़ते हो,

अपने नाजायज अब्बा को  जायज तुम ठहरा गए,
जाने किसीकी बातो में आकर पडोसी को बाप बना गए,

राष्ट्र विरोधी नारे सुन कर पप्पू चुप रह सकता है,
जो भारत का बेटा हो वो ये कैसे सह सकता है,

अभिव्यक्ति की आजादी है माना की  देश में लोकतंत्र है,
भारत माँ को गाली देने वाला मगर क्यों स्वतंत्र है ,

हम भारत की आम नागरिक जब हम टैक्स चुकाते है,
जो हमारे टुकड़ो पर पलते वो हम पर  क्यों चिल्लाते है,

सीमा पर आज एक सिपाही ये बोल कर डटा नहीं,
गोली किस और से आएगी साहब मुझे पता नहीं,

जब तक गांधीवादी हु मेरा किसी से बैर नही,
भगत अंदर का जाग गया तो राष्ट्रदोहियो की खैर नहीं,

भारत के टुकड़ो पर पलकर जो भारत को गाली दे सकते है
ये वो है जो पैसो की खातिर बाप किसी को  कह सकते है,

कैसा पाठ पढ़ा है इनने जो इनको बिल्कुल शर्म नहीं,
मेरे लीये तो राष्ट्र धर्म से बड़ा कोई भी धर्म नहीं,

राष्ट्र धर्म दे बड़ा कोई भी धर्म नहीं,

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विकाश खेमका

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आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,