कभी हाथ में झंडे लेकर सड़को पे भी उतारिये जनाब,
सिर्फ कागजो में लिख देने से इंकलाब नहीं आता,
कौन कहते है की कभी पुरे नहीं होते,
किसी को ऐसे ही कोई ख्वाब नहीं आता,
मै अक्सर ढूंढता रहता हु खुद में कुछ सवालो को,
मैं जानता हु की जिसका मुझे जवाब नहीं आता,
बस लिख पाता हु पर कभी अमल में नहीं ला पाता,
मुझे न जाने क्यों ये हिसाब नहीं आता,
बहुत कुछ गलत है इस जहा में जो बदलना चाहिए
इन अंधेरो को बदलने क्यों कोई आफताब नहीं आता,
हु मैं पारखी और हर शै की खबर रखता हु,
मगर कोई हुनर मुझे बेहिसाब नहीं आता,
कभी कभी मैं खुद को मायूस कर लेता हु,
खुद की हौसला-अफजाई का मुझे विश्वास नहीं आता,
कांधो में बोझ है जिम्मेदारियो का इसलिए कुछ धीरे चलता हु
मुझे अपनों को रुसवा करने का अंदाज नहीं आता,
-विकाश खेमका 'निरकुंश'
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