Monday, 29 February 2016

वीर तुम बढे चलो....

वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।
हाथ में ध्वजा रहे ,
बाल - दल सजा रहे ,
ध्वज कभी झुके नहीं ,
दल कभी रुके नहीं ।
वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।
सामने पहाड़ हो ,
सिंह की दहाड़ हो ,
तुम निडर हटो नहीं,
तुम निडर डटो वहीं ।
वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।
मेघ गरजते रहें
मेघ बरसते रहें
बिजलियाँ कड़क उठें
बिजलियाँ तड़क उठें
वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो
प्रात हो कि रात हो
संग हो ना साथ हो
सुर्या से बढे चलो
चंद्र से बढे चलो ।
वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो

-द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

Sunday, 28 February 2016

न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम,सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी,

स्कुल के समय का ये गीत आज नेट पर मिला,
स्कुल में उस गीत के महत्व को समझ न पाया था मगर आज ये गीत पढ़ कर असीम प्रेरणा मिली,

मूल लेखक को आभार सहित...

न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम
सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी
सदा जो बिना जगाये ही जगा है
अँधेरा उसे देखकर ही भगा है
वंही बीज पनपा पनपना जिसे था
धुना क्या किसके उगाये उगा है
अगर उअग सको तो उगो सूर्य से तुम
प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी
सही राह को छोड़कर जो मुड़े है
वही देखकर दूसरों को कुढ़े है
बिना पंख तोले जो गगन में उड़े है
न सम्बन्ध उनके गगन से जुड़े है
अगर बन सको तो पखेरू बनो तुम
प्रखरता तुम्हारे कदम चूम लेगी
न जो बर्फ की आँधियों से लड़े है
कभी पगा न उनके शिखर पर पड़े है
जिन्हें लक्ष्य से कम अधिक प्यार खुद से है
वही जी चुराकर तरसते खड़े है
अगर जी सको तो जियो झूम कर
अमरता तुम्हारे कदम चूम लेगी

न हो साथ कोई अकेले बढे तुम
सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी...

Wednesday, 24 February 2016

कल के भारत का नेता हु

देश के वर्तमान नेताओ को समर्पित  मेरी नयी काविया

हां मैं भी एक नेता हु...

भारत के विश्व विजयी सपनो का मैं भी एक प्रणेता हु,
हर अभिनय में पारंगत  हु मझा हुआ अभिनेता हु,
झूठ बोलना सीखा रहा हु
कल के भारत का नेता हु |

झूठे वादे करने की मैंने भी ट्रेनिंग ले ली है,
जात पात को लड़ा भिड़ा कर खून की होली खेली है,
बाहुबली की छबि सही पर सब का बहुत चहेता हु,
झूठ बोलना सिख रहा हु कल के भारत का नेता हु |

घड़ियाली आसु की पास मेरे भरमार है
सारे देश विरोधी मेरे प्रियतम यार है ,
काम मैं उसका पूरा करता जिससे रिश्वत लेता हु
झूठ बोलना सीखा रहा हु
कल के भारत का नेता हु,

गरीबो के हक़ का भी मैं खाना खाना सीख गया
मुर्गी बकरी खाते-खाते चारा खाना सिख गया,
मुझसे सब खुश रहते है मैं झुठी आशाये देता हु
झूठ बोलना सिख रहा हु कल के भारत का नेता हु,

अब तो मैंने स्विस बैंक में भी खाता खोल लिया,
देश ये आगे कैसे जाए,इसपे भी भाषण बोल लिया,
गिरगिट सा रंग बदलने का हुनर भी मुझमें खूब है
उधर मैं छतरी घुमा लेता हु जिधर की बारिश धुप है,
इतनी काबिलिहत है मुझमे तभी तो मैं ये कहता हु,
झुठ बोलना सिख रहा हु मैं कल के भारत का नेता हु ..

वो भी क्या कोई नेता थे जो देश पे जान निसार गए
भारत माँ की आन की खातिर जेल जो सौ-सौ बार गए,
आजादी पाने कि खातिर अपना घर-बार सब भूल गए,
कुछ तो इतने पागल थे की फांसी पर भी झूल गए,

मैं उनसा पागल थोड़े हु ,आराम से खाता पिता हु
झूठ बोलना सिख रहा हु कल के भारत का नेता हु,
झूठ बोलना सीखा रहा हु,कल के भारत का नेता हु,

आपकी अमूल्य राय की प्रतिक्षा में
विकाश खेमका

Tuesday, 23 February 2016

J N U प्रकरण पर मेरी "पहली कविता"

आप सब ने मेरे कई लेखो को बहुत सराहा है,
अब एक कदम और आगे बढ़कर आज पहली बार एक कविता लिखी है,

jnu प्रकरण पर मैंने भी कुछ लिखने का प्रयास किया है

आपकी राय चाहूँगा

वीर भगतसिंग के जैसे कितने ही फांसी  पर झूल गए,
भारत माता की खातिर वो सबकुछ अपना भूल गए,

ये वो परवाने थे जो मरकर अभी भी जिंदा है,
लानत उन गद्दारो पर जो अफजल की मौत में शर्मिंदा है,

लोकतंत्र के मंदिर पर हमला कर जिसने वीरो को मारा  था,
उसको फांसी वाला दिन  भारत के लिए नया उजियारा था,

आतंकी को शहीद बता कर उस पर नारे गढ़ते हो,
देश के पैसो से जो चलती उस jnu में पढ़ते हो,

अपने नाजायज अब्बा को  जायज तुम ठहरा गए,
जाने किसीकी बातो में आकर पडोसी को बाप बना गए,

राष्ट्र विरोधी नारे सुन कर पप्पू चुप रह सकता है,
जो भारत का बेटा हो वो ये कैसे सह सकता है,

अभिव्यक्ति की आजादी है माना की  देश में लोकतंत्र है,
भारत माँ को गाली देने वाला मगर क्यों स्वतंत्र है ,

हम भारत की आम नागरिक जब हम टैक्स चुकाते है,
जो हमारे टुकड़ो पर पलते वो हम पर  क्यों चिल्लाते है,

सीमा पर आज एक सिपाही ये बोल कर डटा नहीं,
गोली किस और से आएगी साहब मुझे पता नहीं,

जब तक गांधीवादी हु मेरा किसी से बैर नही,
भगत अंदर का जाग गया तो राष्ट्रदोहियो की खैर नहीं,

भारत के टुकड़ो पर पलकर जो भारत को गाली दे सकते है
ये वो है जो पैसो की खातिर बाप किसी को  कह सकते है,

कैसा पाठ पढ़ा है इनने जो इनको बिल्कुल शर्म नहीं,
मेरे लीये तो राष्ट्र धर्म से बड़ा कोई भी धर्म नहीं,

राष्ट्र धर्म दे बड़ा कोई भी धर्म नहीं,

कृपया मूल रूप में शेयर करे
विकाश खेमका

आरक्षण की आग

आज की कविता,
देश में बढ़ते आरक्षण की आग के विरोध में

कैसा अंधा कानून है कैसी अंधी होड़ है,
देश ये आगे कैसे बढे जब यहाँ पिछड़ा बनने की दौड़ है,

कंही पटेल,कंही गुर्जर कंही जाट दंगा करते है,
आरक्षण के नाम पे पुरे देश में पंगा करते है,

आरक्षण के नारे लेकर देखो वो चिल्लाते है,
जिनके बेटे audi लेकर कालेज पढ़ने जाते है,

जाट पात की इस आग में देश को फिर से झोक दिया,
विजयी विश्व तिरंगे का आगे बढ़ने से रोक दिया,

जो आरक्षण की मांगे  है करते वो देश से  एक करार करे,
जब वो बीमार हो तो कोई आरक्षणि उनका उपचार करे,

आरक्षण जितना चहिये उतना देश से ले लो तुम,
कभी सियाचिन में जाकर
मौत से कभी खेलो तुम,

देश पे मरने की बारी आई तो आरक्षण मर जाता है,
एक साधारण जाति का सैनिक बरफ तले दब जाता है,

आरक्षण देश क कलंक इस कालिख को तुम साफ़ करो,
जात पात को भूल के काबिल के संग इन्साफ करो,

40 पर्सेंट मार्क लाकर कोई डॉक्टर बन जाता है,
कोई 90 पर्सेंट वाला दर दर ठोकर खाता है,

उसको आरंक्षण क्यों है की मिलता जो की धन्ना सेठ है,
आरक्षण अधिकार है उसका जिसका भूखा पेट है,

भीख मांगना छोड़ो अब तुम भी स्वाभिमानी बनो,
कब तक गुर्जर,जाट रहोगे,कभी तो हिन्दुस्तानी बनो,

कृपया बिना  किसी कांट छाट के मूल रूप में शेयर करे,

विकाश खेमका

Tuesday, 16 February 2016

समाजिकता का कीड़ा

सामाजिकता का कीड़ा,

मुझे आज भी याद है वो दिन,हमारी 7 वी क्लास का साइंस पीरियड, आज हमें ये पढ़ाया जा रहा था  की दूध से दही कैसे जमाया जाता है,
आचार्य जी ने समझाया की दूध में जब हम कुछ जामन डालते है तो उसके बाद से उसमे कुछ कीटाणु सक्रीय हो जाए है और उसमे रासायनिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है और फिर एक निश्चित समय के बाद दूध से दही जम जाती है, गर्मी में वो कीटाणु अपेक्षकृत तेजी से सक्रीय होते है इसलिए दही जल्दी जमती है,और ठण्ड में धीरे,

जब से ये जानकारी मिली की दूध से दही जमने का मुख्य कारण कुछ कीटाणु होते है तो इस  जानकारी के बाद से मुझे दही खाने में झिझक हिने लगी,मुझे समझ में नहीं आ रहा था की बड़े लोग तो कहते है की दही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है जब की विज्ञान कहता है इसमें कीटाणु भरे है,उस समय सुबह का नास्ता ही दही रोटी था, जब अगली सुबह मैंने दही खाने से मना किया और कारण पूछने पर बताया की आज हमें स्कूल में पढ़ाया गया है की  दूध में जब कीटाणु सक्रीय होते है तो दही जमता है,और मैं कीटाणु वाली चीज नहीं खाऊंगा,तब मेरी माँ ने मुझे समझाया की बेटा स्कूल में बिलकुल सही पढ़ाया गया है और मेरा संयश दूर किया की ये कीटाणु ही हमारे स्वास्थ्य का आधार है ये वो कीटाणु है जो हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता पैदा करते है, और हमें बीमार होने से  बचाते है,कुल मिलाकर हमारे शरीर में अच्छे और बुरे दोने कीटाणु होते है बुरे कीटाणु वायरस का काम करते है हमें बीमार करते है और वंही जो कीटाणु दूध दही,इत्यादी में रहते है वो एंटी वायरस का काम करते है,तो हमारे अंदर जितना ज्यादा एंटीवायरस होगा हम उतने कम बीमार पड़ेंगे,स्वस्थ्य रहेंगे,
बात मुझे संमझ में आई और फिर से मैंने निरन्तर दही खाना जारी रखा,

ऐसा ही कुछ फिर से मेरे साथ हाल ही के दिनों में फिर से हुआ,आपने आसपास के प्रभाव और  कुछ अपनी सोच से मैं पिछले 3  वर्षो से समाज सेवा,सामजिक कार्यो और संस्थाओ से जुड़ा और कई संस्थाओ में सक्रीय भाव से काम किया, जब अपने आस पास के दोस्तों में मैं एक सामजिक कार्यकर्ता के रूप में जाना जाने लगा तो अक्सर ये सुनने को मिलने लगा की इसको समाजिकता या समाजसेवा के कीड़े ने काट लिया है ये अपने बस में नहीं है,लगातार ये समाजसेवा के कीड़े काटना की बात ने मुझे बहुत सोचने पर मजबूर किया, कई बार नकारत्मक सोच भी आई की क्या मैंने सामाजिक होकर कोई गलती तो नहीं की है???
बहुत सोचने के बाद इसका जवाब मुझे अपने 7वी कक्षा में पढ़ाये गए उपरोक्त पाठ से याद आया, तब लगा की ये कीड़ा सबमे होना चाहिए,
ये वो कीड़ा है जो मन में आने वाले हर नकारत्मक सोच के लिए एंटी वायरस का काम करता है, ये वो कीड़ा है जो किसी भी असफलता को आप पर हावी नहीं होने देता है,
ये वो कीड़ा है जो आपको एक बार हारने के बाद भी दोबारा खड़े होने की शक्ति देता है, ये वो कीड़ा है जो आप की सफलता के प्रति भूख बढ़ाता है, ये वो कीड़ा है जो हमारे मन की आंतरिक स्वास्थ्य को बनाये रखने में मदद करता है, ये वो कीड़ा है जो बाहर की नकारात्मक बातो को आप में घुसने से बचाता है, तो अगर ये कीड़ा आप में है तो आप के पास एक ताकत है,
अगर आप के अंदर ये समाजिक होने का समाज के लिए कुछ करने का कीड़ा नहीं है  तो आप को सोचने की आवश्यकता है ,मुझे एक कीड़े की कदर पता है,
और मैं हमेशा कोशिश करता हु की ये कीड़ा और मजबूत होता रहे,
आप ये आप को ये सोचने की जरुरत है की कौन सही है,

इसी तरह के
मेरी और भी विषयो पर मेरे विचार पढ़ने के लिए लोग इन करे http://vikashkhemka.blogspot.com

Sunday, 7 February 2016

दिन नही गुजरता साल तो यु ही गुजर जाते है

खास मेरी उम्र के मेरे दोस्तों के लिए

क्या आप बोर हो गए है अपनी जिंदगी से,कुछ मजा नहीं आ रहा है ? तो आइये मैं  आपको याद् दिलाता हु कुछ वो पल जिसे याद करके आप को शयद थोडा आश्चर्य हो थोसी खुसी हो ,

1. आप को स्कूल छोड़े करीब  20 साल हो गए है .
2. आप को कॉलेज पूरा किये हुए भी  लगभग 15 साल हो गए है
3. आप ने जिस बच्ची  को अपनी गोद में खिलाया था  पिछले महीने उसके बच्चे की सालगिरह थी ,
4.आप ने जिस बच्चे को गोद में खिलाया था उसकी शादी का कार्ड आपकी टेबल पर रखा हुआ है
5.मोबाइल युज करते हुए आपको लगभग 15 साल हो गए है
6.आपने पहली बार दाढ़ी लगभग 20 साल पहले बनाइ थी
7.जिस अंकल की शादी में आपने बहुत मस्ती की थी वो अंकल अपनी शादी की रजत जयंती मना रहे है
8.अपने किसी खास दोस्त से बिना किसी खास वजह से मिले आपको शायद 10 साल गुजर गए होंगे
9. वो दोस्त जो आपका बहुत खास था आपने उससे साल भर हो गए फ़ोन पर बात नहीं की है
10.जब आप पिछली बार बारिश में भीगे थे ये बात भी अब लगभग 15 साल पुराणी हो गई है
11.अब तो याद  भी नहीं है की पिछली बार साइकिल कब चलाइ थी

और भी बहुत बाते है जो याद आने पर आप सोचेंगे अरे कल की तो बात है

मेरे दोस्त " दिन गुजरने में समय लगता है  सालों  तो यु ही गुजर जाते है "

कल आप अपना बैंक बैलेंस देख कर इतना खुसी नहीं होगी जितना की पुरानी यादे,

अच्छी यादे संजोते रहिये....

इसी तरह के
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Monday, 1 February 2016

कभी Window shopping कर के देखिये

Window shopping..

तेजी से बढ़ती महानगरीय संस्कृति,भौतिकतावाद,और बढ़ता  सोशल स्टेटस, इन सबके बिच अपने आप को, अपने अहम् को ज़िंदा रख पाना मध्यमवर्गीय इंसान के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है,उसे अपनी और  अपने बच्चे की किसी  इच्छा को पूरा करने के लिए महीनो प्लानिंग करनी पड़ती है और एक छोटी सा अनिश्चितता उस महीने भर की प्लानिंग को फ़ैल कर देती है,
आज हम हमेशा रोना रोते है की महगाई बढ़ गई है,उसके लिए सरकार दोषी है,क्रूड आयल,या अंतराष्ट्रीय मार्किट की मंदी दोषि है,मगर मैं ये मानता हु की इसके लिए सबसे ज्यादा दोषी है हमारी उपभोगीता करने की शक्ति का बढ़ना,हमारी खर्च करने की क्षमता का बढ़ना,आज से 10 साल पहले एक मध्यमवर्गीय परिवार का गुजारा 10000 रूपये में हो जाता था,मागर आज 25000 में भी मुश्किल है,अगर पिछले 10 सालो में देखे तो आम उपभोग में आने वाली कोई भी चीज का दाम 2.5 गुना नहीं हुआ है,फिर ये तकलीफ क्यों है,
इसकी जिम्मेदार है हमारी भौतिकवादी सोच ,भारत का मध्यमवर्ग इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है की किसी चीज को मध्यम वर्ग की पहुच में लाकर उसकी खपत कई गुना बधाई जा सकती है,"
"यहा जरूरत पूरी नहीं की जा रही है जरूरत creat की जा रही है",

और बहुराष्ट्रीय कंपिनय इस चीज में माहिर है,
वो पहले lays, kurkure,pepsi, pizza burger का विज्ञापन दिखाकर उनको खाने को प्रेरित करते है,फिर इसे खाकर जब हम ओवरवेट होते है तो स्लिम होने की दवाई बेचते है,

कुल मिला कर ये हमको एक atm की तरह use करते है ये जानते है की किस atm में kaise कितना पैसा निकाला जा सकता है,

मैं जब छोटा था तो घर में कपडे का बजट लगभग साल में 3 -4 जोड़ी का हुआ करता था आज कोई हिसाब ही नहीं है की हम कितना कपड़ा खरीदते है, इसके बाद भी आजकल न हमारे पास पहनने के लिये कपडे है और न अलमारी में कपडे रखने की जगह,

क्या इस अंधी दौड़ का कोई अंत है,?? इस समस्या का इलाज क्या है,

इस समस्या का इलाज एक दंपति ने मुझे सिखाया,

वो लोग एक मल्टीप्लेक्स के बहार सज-धज कर खड़े थे और एक फ़िल्म का पोस्टर देख रहे थे,उस बारे में बात कर रहे थे,फ़िल्म का समय हो चला मगर वो उन्होंने पिक्चर जाने का कोई उपक्रम न किया,बहुत देर बाद मुझसे रहा न गया मैंने उनसे पुछ लिया की आप पिक्चर क्यों नहीं जा रहे है,
उन्होंने बताया की वो एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से है जहा वो हर हफ्ते मल्टीप्लेक्स में पिक्चर देखना अफ़्फोर्ड नहीं कर सकते,अगर फिर भी वो हर हफ्ते मल्टीप्लेक्स आते है यहाँ घूमते है फिरते है,पोस्टर देखते है,यहाँ की दुकानों में घूमते है ,यहाँ शोकेस में लगे हुए कपड़ो को निहारते है,
और कुछ नास्ता ,चाय पानी कर के चले जाते है,इनसे उनकी इच्छा भी काफी हद तक पूरी हो जाती है और खर्चा भी बच जाता है,इसे वो window shopping कहते है,
ये window shopping का कांसेप्ट मुझे बहुत पसंद आया एक तरह से ये भी एक तरिका है अपने मन को समझाने का,अपने हद में रहकर अपनी जिंदगी का मजा लेने का,कुल मिलाकर उन्होंने सिखाया की जिंदगी में अपनी औकात में रह कर भी मजे लिए जा सकते है,
तो आप अपनी window shopping कब कर रहे है,

इसी तरह के
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