8 मार्च,
अंतराष्टीय महिला दिवस पर सभी महिलाओं को सम्मान के रूप में समर्पित मेरी ये कविता...
कभी ब्रहांणी कभी रुद्राणी,कभी लक्ष्मी है कभी सीता है,
पति प्रेम को समर्पित होकर भी हैजीवन अग्निपरीक्षा में बीता है
कभी मीरा के रूप में प्रेम की परिभाषा है,
कभी राधा है जो एक अधूरी अभिलाषा है,
कभी भरी सभा में अपमानित होती बेबस द्रोपती है
कभी पति के साथ राख होने वाली महामाया सति है,
कभी स्वयं श्री विष्णु से छली गई तुलसी है,
कभी वो अहिल्या बन कर पत्थरो में बसी है,
कभी रंभा, मेनका,उर्वसी सी मन को लुभाती खूबसूरत है,
कभी अपना सर्वस्य लुटाती पन्ना धाय सी त्याग की मूरत है,
जिसका जीवन स्वयं त्याग की निशानी है
कभी राजधर्म निभाती झाँसी की रानी है,
कभी सेवा की प्रतिमा मदर टेरेसा है,
कभी इंदिरा गांधी सी प्रखर नेता है,
कभी वो कल्पना चावला बनकर देश को देती उड़ान है,
कभी सानिया,कभी सायना कभी दीप्ती बनकर देश का बढाती मान है
कभी माँ कभी पत्नी कभी बहन कभी बेटी है,
जो हमेशा हमारी सफलता का आश्वाशन बन कर बैठी है,
हालाकी उसकी कर्तव्य परायणता पर किसी को शक नहीं,
मगर इस पुरुष प्रधान समाज में उसको अपने पिता के दाह संस्कार का भी हक़ नहीं,
वो जो अपने साहस और कौशल से हर मकान को घर बनाती है
कितने घृणित बात है कि वो आज कल कोख में ही मर जाती है
वो सिर्फ एक देह नहीं वो भी पुरे सम्मान की अधिकारी है,
ये उसका कसूर नहीं उसका गर्व है कि वो एक नारी है,
वो त्याग है,तपस्या है, सुंदरता है, अभिमान है,
नारी तेरे हर एक रुप को मेरा शत शत प्रणाम है,
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