लाइफ मंत्रा: विरोध करना सीखिए,अपनी ही नही दुसरो की समस्याएं भी समझिए,
ए वेडनेस डे फ़िल्म का एक संवाद जब अनुपम खेर, नसरुद्दीन शाह से पूछते है कि तुम इन आतंकवादियों को क्यो मारना चाहते हो ??क्या इनकी वजह से तुम्हारा कोई अपना खोया है तुमने?? इस पर नसरुद्दीन शाह का जवाब था नही,खोया तो नही लेकिन क्या मैं इसके लिए उस दिन का इंतजार करु जिस दिन ये आतंकवादी मेरा या परिवार का किसी अपने का अहित कर दे,??
कहने को कोई कोई खास बात नही लेकिन इस संवाद के पीछे एक बहुत बड़ा संदेश छिपा है, और हम अक्सर यही करते है,की हम किसी भी गलत बात/व्यक्ति / घटना का विरोध तभी करते है जब वो हमारी हो, कोई समस्या हमको तभी एक जटिल और विकराल समस्या लगती है जब वो अपनी हो,दुसरो की समस्या हमे समस्या नही लगती,
सरकारी हॉस्पिटल में अव्यवस्था की याद तभी आती है जब कोई अपना वहां एडमिट होता है,एन ए सी की गली में कचरा तभी दिखाई देता है जब वो हमारे घर के सामने हो,सड़को के गड्ढे तभी दिखाई देते है जब हम या हमारा कोई उसमे गिरे,बैंको की लाइन तभी तकलीफ देह होती है जब हम उसके खड़े होते है,सरकार के बेमानी नियम तभी सिर्फ बेमानी लगते है जब हम पर लागू होते है,बिजली विभाग को सिर्फ तभी गाली देते है जब हमारे घर मे बिजली नही होती, एल पी जी की कीमत /कालाबाजरी की समझ उसी संमय आती है जब हमें उसकी अधिक कीमत चुकानी पड़ती है,समाज मे कुछ गलत होता है और हम उससे प्रभावित नही है तो हमे ये कोई मतलब नही की वो गलत है या सही, उदाहरण सैकड़ो है,मगर मतलब एक हम किसी समस्या को सिर्फ तभी गंभीरता से लेते है जब हम उससे पीड़ित होते है,असल मे हम इन्तेजार करते है कि हम किसी चीज/बात/घटना का विरोध तभी करे जब हम इससे प्रभावित होने लगे,
हम महसूस तो करते है कि ये कुछ गलत हो रहा है मगर विरोध नही करते,ऐसी बात नही की हमे ये सब बातें दिखाई/सुनाई नही देती, या महसूस नही होती,मगर हम इतने अदूरदर्शी है कि हम इन्तेजार करते है ये सब घटनाएं हमारे साथ हो तो हम विरोध करे या फिर ये समझते है कि हम इतने खुशनसीब है कि ऐसा सब हमारे साथ नही होगा,क्या पता क्यो हमे ये भ्रम रहता है कि आज समस्या हमारी नही तो हमे कभी ऐसी समस्या का सामना नही करना पड़ेगा, पडोसी के घर की आग में तमाशा देखने वालों को पता भी नही चलता कि कब ये आग की लपटें उसके घर को घेर लेंगी,
इसलिए जब भी किसी समस्या/घटना के बारे में सुने उस पर प्रतिक्रिया दे,उसके बारे में सोचे,विरोध करे,चाहे वो समस्या अपनी हो या किसी और कि,हमारी जिंदगी इतनी बड़ी नही है कि हम सिर्फ अपने अनुभवो से सीखे,कई बार ऐसे होता है हमको लगता है कि कुछ गलत हो रहा है,मगर हम उसके विरुध्द आवाज नही उठाते, इस डर से आवाज उठाने की पहल नही करते कि लोग क्या कहेंगे??या क्यो किसी की बुराई मोल ली जाए?? मगर जब कोई विरोध करता है तो ये महसूस होता है कि ये शुरुवात मै क्यो नही की,??असल मे हम डरते है किसी के भी बुरा बनने से, चाहे वो किसी बुराई के लिए ही क्यो न हो, हम विरोध से डरते है इसके लिए की विरोध करने से विरोध सहना पड़ता है और हैम कुछ सहने के लिए तैयार नही,याद रखिये जो इंसां सबके लिए अच्छा होता है वो कभी महान इन्सान नही ही सकता,अगर आप का कोई विरोधी नही है तो ये इस बात को साबित करता है आज तक आपने कुछ बड़ा काम नही किया,क्योकि एक अच्छा काम हर किसी के किये अच्छा नही हौता,
मैं खुद को भी कई बार इस बात का दोषी रहा हु,हमारे सामने रोज कई उदाहरण होते है जो विरोध करने की अगुआई करते है और ऐसे लोग समाज मे प्राथमिक विरोध के बाद एक अलग पहचान के साथ जीते है,और हम भीड़ का हिस्सा बने रह जाते है, अगर आप भीड़ का हिस्सा नही बनना चाहते तो गलत बातो का विरोध करना सीखिए,चाहे वो अपने साथ हो या आपके अस पास किसी के साथ,अपनी प्रतिक्रिया दीजिये बिना इस बात की परवाह किये की इस आपको भी विरोध का विरोध सहना पड़ेगा, या फिर चुप रहिये और इन्तेजार कीजिये उस वक्त का जब कि आपके आस पास हो रही बुरी बात आपके साथ न घाट जाए,मगर एक बात तो तय है कि अपने आस पास के घरों में लगी आग को अगर आपने गंभीरता से नही लिया तो आपके घर मे आग लगने सिर्फ कुछ वक्त कीबात है और अपने बारी आने का इंतजार कीजिये ।
कही ऐसा न हो कि
हम बचाते रहा जाए कुछ कॉकरोचों से घर अपना,
और कुछ कुर्सी के दीमक पूरा देश खा जाए
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