Tuesday, 26 September 2017

लाइफ मंत्रा : सफलता का कोई फॉर्मूला नही होता,सफलता डिग्रियो की मोहताज नही

लाइफ मंत्रा : सफलता का कोई फार्मूला नही होता,सफलता सिर्फ एजुकेशन की मोहताज नही,

आज एक खबर सुर्खियों में छाई रही कि पतञ्जलि के सी ई ओ आचार्य श्री बालकृष्ण ने भारत के 10 शीर्ष धनी व्यक्तियों में अपनी जगह बनाई,कहने को ये सिर्फ एक व्यापारिक खबर है लेकिन इस खबर ने सुर्खिया बटोरी क्योकि ये बहुत ही सुखद आश्चर्य है,पतंजलि मतलब बाबा रामदेव,और एक भगवाधारी बाबा की व्यापारिक सफलता सही मायने में काबिलेतारीफ है, बड़ी मुशकील से मैट्रिक तक पढ़े एक व्यक्ति की सफलता के सामने पढ़ाई की ढेरों मैनेजमेंट की डिग्रियां लिए हुए प्रोफेसनल आज सोच में पड़ गए है,सिर्फ 10 साल पुरानी एक कंपनी ने बिना किसी नामी गिरामी ब्रांड अम्बेसडर के न जाने ये कैसा बिज़नेस मॉडल डेवेलोप किया की उसके सामने 100 से अधिक वर्षो से पुरानी मल्टीनेशनल कंपनी की मार्केटिंग स्ट्रेटर्जी भी फेल हो गयी,उनके व्यापार का एक बड़ा हिस्सा पतंजलि ने छीन लिया,आज कॉलगेट जिसे टूथपेस्ट का पर्याय माना जाता था वो ब्रांड भी पतंजलि के दंतकान्ति के सामने छोटा पड़ गया, बड़ी ही हास्यापद स्थिति उत्पन्न होती है जब ग्राहक किसी दुकान में जाकर "पतंजलि कोलगेट" मांगता है,

बाबा रामदेव भले ही एक अध्यात्मिक योग गुरु के रूप में परिचित है मगर उनके सामने कई बड़े बड़े मेनेजमेंट गुरु फीके पड़ गए है,पतञ्जलि को सफलता दिलाने में जिस एक चीज का उन्होंने सबसे ज्यादा उपयोग किया वो है स्वदेशी सोच,उन्होंने जनमानस के दिमाग मे नही दिल को निशाना बनाया,

रामदेव बाबा की सफलता ने एक बार फिर से सिद्ध किया कि सफलता का कोई निश्चित फ़ॉर्मूला नही होता,ये कोई गणित नही जिसमे 2 में 2 जोड़ कर आप हर बार 4 बना ले और वो सही हो, सफलता के लिए नए आईडिया चाहिए, रामदेव बाबा ने भारत वासीओ को पहले योग द्वारा अपनी संस्कृति पर गर्व करना सिखाया,अपने शुध्द देशी अंदाज में लोगो के मन मे ये भरोसा दिलाया कि भारत का देशीपन किसी भी पश्चिमी सभ्यता से कंही आगे है यही भारतीयता पर गर्व उनके पतंजलि ब्रांड की नींव है,लोग पतंजलि खरीदकर ये महसूस करते है कि वो अपने आस पास की चीजें,देशी अंदाज वाली चीजें खरीद रहे है,ये खास बात है,नूडल्स जैसे चीजे जो भारतीय संस्कृति का हिस्सा नही थी उन्हें भी लोगो की पसंद के हिसाब से भारतीयकरण कर के लोगो को परोसना मास्टरस्ट्रोक कहा जा सकता है,दवाई से अपना धंधा चालू कर के आम।लोगो के बेडरूम बाथरूम और किचन तक पहुचने का पतञ्जलि का ये सफर वाकई पढ़ने और पढानेलायक है,अपने एक स्टेटमेंट से जो सॉफ्टड्रिंक कंपनियों की बैंड बजा सकता है वो मामूली इंसान नही है,अपने आप मे एक विश्वविद्यालय है,रामदेव बाबा को देखकर ये सीखा जा सकता है कि सफल होने के लिए काबिलियत,नई सोच,आपका मार्केटिंग फन्डॉ, लोगो सेजुड़ना ज्यादा मायने रखता है आपकी डिग्रियां नही,भारतीयों की आम मानसिकता है कि बाबा शब्द को वैराग्य का प्रतीक माना जाता है यहां भी एक बहुत बड़ी कालाकारी बाबाजी ने की है कि उन्होंने पतंजलि के फ्रंट में हमेशा आचार्य बालकृष्ण को ही रखा है,आज जब भारत के शीर्ष धनकुबेरों की गिनती में सूटबूट और टाई लागये हुए चमकधमक और चमचमाते चेहरो के बीच एक आम सफेद खादी के वस्त्र पहने एक आम से दिखने वाले आचार्य को देखता हूं तो ऐसा लगता है कि शायद मैनेजमेंट की किताबो में कुछ सुधार करने की जरूरत है,और सफलता के फॉरमुले के फिर से व्याख्या करने की आवश्यकता है,जब एक भगवा चोला पहना अर्धनग्न बाबा बड़ी बड़ी मल्टीनैसनल कंपनियों को अपने बाल नोचने पर मजबूर कर सकता है तो ये बात रोमांचित करती है,अपनी किसी भी सोच को छोटा मत सोचिये, आप देशी सोच के है तो ये आपके लिए शर्म नही गर्व है,

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