Thursday, 5 October 2017

लाइफ मंत्रा: कितनां पैसा चाहिए आखिर जीने के लिए

लाइफ मंत्रा: कितना पैसा चहिये आखिर जीने के लिए ??

पैसा ही जिंदगी में सब कुछ नही है,और सिर्फ मोह माया है ये बात हर प्रबचन में हम सुनते है और इसको बताने वाले बाबा भी लाखो में अपनी फीस(आम भाषा मे दान- दक्षिणा) लेते है,आम आदमी की सोच  और जिंदगी सिर्फ पैसे से शुरू होती है और इसी पर खत्म, हमारे किसी भी सुख,सुविधा,खुशी,दुख,यहां तक कि बीमारी का मापद्दण्ड भी पैसा है,बहुत बड़ी बीमारी है इलाज में 10 लाख रुपये लगेंगे,ऐसा आपने अक्सर सुना होगा,कुल मिला कर हमारी अभी खाव्हिश,हमारी सभी कोशिश हमारी सभी चाहत पैसा है मगर आखिर हमें कितनां पैसा चाहिए??

अगर कोई हमे पूछ लें की आपको कितना पैसा चाहिए की आप सुखी रह सके,तो आप के पास कोई जवाब नही होगा, हमने पैसे को हर चीज का मापदंड बना रखा है,लेकिन पैसा कितनां चाहिए इसका कोई मापदंड नही बनाया है, इसके कुछ प्रसिद्ध गोलमोल जवाब ये है,बस इतना कि गुजारा ढंग से चल जाये, बस इतना कि बच्चों को तकलीफ न हो, बस इतना कि कोई सुविधा असुविधा में किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े, बस इतना कि खुद का घर गाड़ी हो,और बस इतना कि गुजारा चलता रहे,और इस जैसे कितने गोलमोल जवाब हम न जाने अपने आप को रोज देते है,और साथ मे एक टैग लाइन जोड़ देते है कि " बस इतना सा ख्वाब है",हम को खुद को नही मालूम कि हमको कितनां पैसा चाहिए,??

बढ़ने की इच्छा होना एक बहुत बढ़िया बात है मगर संतुष्टि भी कोई चीज होती है,इतना भी कमाने में क्या डूबे रहना की खर्च के लिए वक्त न बने, अपने आप को अत्यधिक व्यस्त कर के,अपनेपरिवार ,दोस्त यार को समय न देकर,अपने समाज के लिए कुछ न कर अगर आपने कुछ पैसे कमा भी लिए तो इसका सार क्या है??अधिकतर लोगों का जवाब होता है की हम जो कुछ कर रहेहै अपने परिवार के लिए तो कर रहे है,बहुत अच्छी बात है आप की सोच अच्छी है लेकिन सोच कर देखिए कि आप जो परिवार के लिए कर कहे है क्या उसे पा और आपके परिवार वाले भी एन्जॉय कर रहे है??जब आप घर से जाते है तो आपका बच्चा सोया रहता है जब आते है तब तक सो जाता है तो आप अपना कमाया हुआ एन्जॉय कब और किसके साथ करेंगे,

इकोनोमिक्स का पहला सूत्र है आदमी की इच्छाये अनंत है और कभी पूरी नही हो सकती लेकिन ये याद रखने की जरूरत है कि जिंदगी सीमित है,और साथ ही अनिश्चित भी,आपके कमाये लाखो करोडो रुपये आपके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु की गारंटी नही है,आज सोए तो कल उठेंगे या नही ये पता नही,

आज के दौर में एक मध्यमवर्गीय इंसान की सोच है कि छह अंको में उसकी मासिक कमाई उसके सपनो वाले जीवन को जीने में उसकी मदद करेगी,इस सोच और लक्ष्य से अपना करियर चालू करके न जाने कब अपने सपनो और लक्ष्यों को वो इतना बढाते जाता है उसका पता ही नही चलता,इतना बढ़ा लेता ही कि पता ही नही चलता कि कब वो एक इंसान से सिर्फ एक धन मसीन बन गया है,जिसमे भावनाएं नही बची है,कभी सोचा है कि हम पैसा क्यो चाहते है??पैसे को हम खा नही सकते,पी नही सकते, पहन नही सकते अगर फिर भी इसके प्रति हमारे मन मे इतनी दिवानगी है तो सिर्फ इसलिए क्योकि हम अपनी उन इच्छाओं से प्यार करते है जो हमे लगता है कि हम पैसे से पूरी कर सकते है, असल मे हम पैसे के पीछे नही अपनी इच्छाओं के पीछे भाग रहे है,"हरि अन्त हरि कथा अनंता " की तरह इच्छाये भी अनन्त है,अभी कुछ साल पहले तक 30 से 40 हजार रुपये को एक अच्छी मासिक इनकम माना जाता था,क्या सिर्फ 5-10 सालों में महंगाई इतनी बढ़ गयी को हम को 1 लाख भी कम लगने लगा,नही महगाई नही हमारी इच्छाये बढ़ गयी है,उन चीजों की इच्छाये जो हमे सिर्फ इसलिए कहिये क्योकि वो हमारे आस पास सबके पास है,और उनके न होने से हमारे सोसिअल स्टेटस में कमि आ जाती है हमारे अहम को ठेस लग जाती है,

हामरे मन मे ये बात घर कर गयी है कि हमारा फ़ोन अगर समसुंग या एप्पल न हो तो हमे ओछी नजर से देखा जाता है,कार इंडिका या इंडिको हो तो आप को अपने क्लास की कोई परवाह नही है,घर मे ऐशोआराम के सारे संसाधन नही है तो आपकी जिंदगी बेकार है,विदेशों में घूमना फिरने भी हैम सिर्फ इसलिए जाना है कि फेसबुक में फोटो छोड़कर लोगो को अपना स्टेटस दिखाया जाए,जो शादियां पहले 2-5 लाख में।हो जाती थी इतना तो सिर्फ आजकल हम इसके प्रि-वेडिंग शूट में खर्च कर देते है क्योंकि ये फ़ैशन में है,अगर साधारण सब्दो में कहु तो हम हमेशा दुशरो से बेहतर रहने,दिखने की सोच से प्रभावित हो कर अपनी इच्छाओ को इतना फैला लिया है कि उसके लिए चादर हमेशा कम पड़ जाती है,जाने अनजाने हम भी अहम की उस अंधी दौड़ में शामिल हो गए है जो कभी खत्म ही नही होगी,सुविधावादी के साथ साथ हम आजकल सोशल स्टेटस के रिमोट कंट्रोल से संचालित होते है जो कि निर्धारित करता है कि हम कब किस चीज से हम कितनां खुश होंगे,हमे ज्यादा पैसा सिर्फ इस लिए चाहिए क्योकि हमने अपनी इच्छाओं को अपने अहम से जोड़ लिया है,और अहम की संतुष्टि तभी होती है जब हम अपने आप को औरो से कुछ ऊपर रखते है,इस अहम की खातिर हाय हाय मची है,आज कल हमे पैसा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए नही अपने अहम की पूर्ति के लिए चाहिये,अपनी नाक उची रखने के लिए हम अपने पूरे शरीर को तकलीफ दे रहे है,

शायद आप भुले तो नही होंगे कुछ दिन पहले ही एक करोड़पति अपने फ्लैट में सड़ी गली हालात में पाई गई थी, करोडो के मालिक को उनके बेटे ने दर दर के
की ठोकरे खाने को मजबूर कर दिया,एक पढ़ा लिखा आईएस घर के कलह से तंग आकर सुसाइड कर लेता है,फ़िल्म इंडस्ट्री के चकाचौन्ध वाली दुनिया के सैकड़ो ऐसे उदाहरण है जो मानसिक विक्षिप्त होकर मरे,पैसा इनके पास भी बेशुमार था फिर भी सुखी नही थे और ऐसे हालातो का सामना किया जिसको सोच कर आपकी रूह कांप जाएगी,

इस पैसे के हिरण के पीछे भागना छोड़िये,आपकी खुशिया जो आपके जिंदगी को खूबसूरत बनाती है वो  आपके भीतर ही है, उनकी तलाश में भटकना छोड़िये,अपनी इच्छाओं को सीमित कीजिये,आप बहुत खुशनसीब है कि आपकी जरूररते तो पूरी हो रही है,आपसी कांटेक्ट बढ़ाइए,मिलजुल कर रहिये,अपने परिवार और समाज से मिलकर चलिए,कम से कम इतना इंतेजाम तो कर लीजिए कि मरने के बाद आप के अर्थी के पीछे कुछ भीड़ हो जाये,जरूरते फकीरों की भी पूरी हो जाते है और इच्छाये बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है,अपनी इच्छाये सीमित कर लीजिए आप अपने आप को दुनिया का सबसे अमीर इंसान महसूस करेंगे,

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आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,