Sunday, 1 October 2017

जी एस टी : इतना हंगामा है क्यो बरपा ??

मेरा आज का लेख थोड़ा लंबा है,लेकिन आपसे अनुरोध है कि थोड़ा समय निकाल कर अवश्य पढ़े क्योकि ये आप की जिंदगी से जुड़ा है

जी एस टी: इतना हंगामा क्यो है भाई,

अगर मैं किसी भी न्यूज चैनल या किसी भी पान दुकान,होटल या सार्वजनिक जगह 10 मिनट भी खड़ा हो जाऊ तो 10 मिनट के भीतर अर्थव्यवस्था के कई बड़े भारी पंडितो का ये गुणगाण शुरू हो जाता है कि gst का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कितनां विपरीत असर हुआ है और इस पर व्याख्यान सुनने को मिल सकता है, ये महसूस होता है कि जी एस टी लागू होने के बाद से देश मे अफरा तफरी का माहौल है,देश आर्थीक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है,फिसिकल डेफिसिट,मुद्स्फीति, जीडीपी जैसे टेक्निकल अर्थनैतिक शब्द जिनका आम आदमी ढ़ंग से ट्रांसलेशन भी नही जानता उन पर व्याख्यान दे रहा है,

जो लोग प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष कर में फर्क नही जानते वो भी gst की कमियां खूब गिना रहे है,मैं हमेशा इस बात में इत्तेफाक रखता हूं कि समर्थन या विरोध सिर्फ विचारधारा का होना चाहिए व्यक्ति का नही,अगर मोदी जी कुछ सही करते है तो उसकी तारीफ करता हु कुछ गलत करते है तो उसका विरोध भी,मगर विरोध का मतलब ये नही की जिस तरफ भीड़ हो उस तरफ आप भी खड़े हो जाये और नारे लगाने लगे,

Gst देश के सभी अप्रत्यक्ष कर(जो कर सीधे करदाता नही भरता,उनसे लेकर कोई और भरता है जैसे सेल्स टैक्स,एक्साइज,एंट्री टैक्स,सर्विस टैक्स,प्रोफ़ेशनल टैक्स,लोकल टैक्स,एंटरटेनमेंट टैक्स सहित लगभग 18 टैक्स) को एक करके बनाया गया है, ताकि आम ब्यापारी/प्रॉफेशनल जो कि आम जनता से टैक्स लेकर उनके बदले ये टैक्स भरता है उसे कागजी कामो से कुछ आसानी हो, और gst के बारे में ये दावा भी किया गया की ये टैक्स भरने की प्रक्रिया को आसान करेगा,ज्यादा से ज्यादा सेवाओ को ऑनलाइन कर भरष्टाचार को कम करने में पहल करेगा,सब बातों को पारदर्शी बनाएगा,और इन सभी प्रचारों के साथ gst को लागू किया गया,

लेकिन gst लागु होने के बाद से लगातार इसका विरोध हो रहा है,इसके लागू होने के बाद इसकी कई खामियां उजागर हुई,जैसे gst की websight अभी तक पूरी तरह तैयार नही है, इसके लिए तैयारी पूरी नही है,इसके लिए लोगो को तैयार नही किया गया, समझाया नही गया,एक नए कॉन्वेप्ट को लागू करने से पहले जितना फील्ड वर्क करना था नही किया गया,

भारत की हर सरकार की ये सोच रही है कि वो किसी भी कानून के लिए पश्चिम के  विकसित देशों का मॉडल चुनता है और उसे अपने देश मे लागू करता है,gst भी लगभग यही है, भारत सरकार की हमेशा से एक आदत रही है कि वो कांनून तो पश्चिम के विकसित देशों के लागू कर देता है मगर उसके लिए उतनी सुविधाएं लागू नही करता, इस बात को एक साधारण उदाहरण ये है कि विदेशों की रोड की साफ सफाई देखकर भारत मे विदेशों की तरह थूकने और पेशाब करने पर पाबंदी और फाइन लगा दिया गया मगर  विदेशों की तरह हर चार कदम पर डस्ट बीन और हर दस कदम पर पेशाब घर भी बनाइये,वरना जब किसी को पेशाब आएगी तो आपके कानून की परवाह नही करेगा,एक और समस्या है कि बिदेशो की हर सफल कानून को यहां लागू करने में दिक्क्त भी बहुत है क्योंकि भारत मे जनसख्या का घनत्व बाकी विकसित देशों से लगभग 10 गुना है वहां जो कानून बनाते है उसकी मॉनिटरिंग आसान है क्योंकि वहां 2-5 या 10 करोड़ लोगों को ही मॉनिटर करना है और भारत मे 135 करोड़ लोगों को,ये बात भी अपने आप मे बहुत डिफरेंस पैदा करती है,अब gst की एक वेबसाइट जिसमे एक साथ लगभग 80 लाख करदाता एक साथ लोग इन करेंगे वो क्रैश तो होगी ही,

Gst में हर व्यवस्था ऑनलाइन की जा रही है,हर चीज को व्यवस्थित करने का दावा किया जा रहा है,मगर इसके लिए जो मूलभूत सुविधाएं आवश्यक थी क्या उस पर भी ध्यान दिया गया,भारत गांवों का देश है जहां 90% आबादी के लिए अभी भी 24 घंटे बिजली अभी भी सिर्फ एक सपना है वहा ऑनलाइन सुविधाएं छलावा ही है, भारत के 50% गाव में अभी भी इंटरनेट के लिए घर की छत ने जाकर मोबाइल को ऊंचा उठाना पड़ता है,तब कंही जाकर नेटवर्क का एक टावर बड़ी मुश्किल से आता है ऐसे में ऑनलाइन सर्विस का मूल्य ही क्या है,

ऐसा नही है कि सिर्फ सरकार की अधूरी तैयारियां ही gst की लचर व्यवस्था के लिए दोषी है,कुछ हमारी सुविधवादी सोच भी है,भारत शुरू से ही एक तकनीकी क्षेत्र को नजरन्दाज करने वाला रूढ़िवादी देश है हम सिर्फ उसी तकनीक को पसंद करते है जिससे मजा आये सुविधा हो, हमने समार्ट फोन तो ले लिया उसमे व्हाट्सएप्प और फसबुक चलाना भी सीख लिया मगर सरकार की ओनलाइन सुविधाएं का कैसे उपयोग किया जाए नही सीखा,फेसबुक पर अपनी फोटो अपलोड करते समय या यु ट्यूब पर पोर्न देखते हुए हम काफी धैर्य से प्रतीक्षा करते है,बफरिंग हमे चिड़चिड़ा नही करती ,मगर gst की वेबसाइट में 1 मिनट की देरी पर हमारा धैर्य जवाब दे देता है,और लग जाते है gst को कोसने, क्या देश के लिए सब कुछ करने का जिममा सिर्फ सरकार का ही है,आप और हम कुछ नही करेंगे,

ये तो gst का तकनीकी पहलू था मगर अब बात करते है व्यवहारिक पहलू की,gst के सख़्ती से लागू होने के बाद से देश मे इसके दायरे में आने वाले व्यापारियों की संख्या बढ़ गयी,इसके पैन कार्ड से लिंक होने के कारण अब आयकर दाता की संख्या भी बढ़ेगी,एक सवाल ये ही कि जैसा कि gst तो एक अप्रत्यक्ष कर है जिसमे किसी व्यापारी को भी अपने हाथ से कर नही भरना है आप जितना टैक्स भरेंगे वो आप उपभोक्ता से ले कर भरेंगे फिर आपको तकलीफ क्या है,

एक तकलीफ तो इसके भरने के जटिल प्रक्रिया से है,की एक छोटा व्यापारी अपना व्यापार करेगा या अपने कागजी कामो में उलझा रहेगा,इसे थोड़ा आसान बनाने की आवश्यकता है, एक और बात ये भी ही कि हर विभाग की तरह कुछ असाधु व्यापारियों के गडंबड़ी का खामियाजा एक साफ सुधरे व्यापारियों को भी उठाना पड़ रहा है,उदहारण से संमझते है,एक असाधु व्यापारी एक माल को 100 रुपये में बिना बिल के खरीदता है उसके 10 रुपये अपना प्रॉफिट जोड़कर 110 में बेच देता है, वही सही व्यापारी 100 में खरीदेगा 28% टैक्स देगा, उसकी लागत ही 128 है अब 5% फायदे में भी बेचेगा तो 133 रुपये में बेचेगा, क्या भारत का आम उपभोगता इतना समझदार और ईमानदार है कि वो इस समान को बिना बिल के 110 में न खरीदकर 133 में बिल में ख़रीदे, असल मे हम अपनी समस्या के लिए बहुत कुछ खुद दोषी है,अगर सरकार को gst को लागू करना है तो उन असाधु व्यापारी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी पड़ेगी जो सही व्यापारियों के लिए मुश्किल पैदा कर रहे है, और जिनके कारण व्यापारी टैक्स भरने से बच रहे है,

Gst के बाद एक और हास्यापद और मजेदार बात हुई है कि gst में लगभग 95% चीजो में टेक्स काम हुआ है लेकिन चीजो के दाम बढ़े है,सुनने में अटपटा लगता है लेकिन सच है कैसे,?? इस बात को भी उदाहरण से संमझते है,gst से पहले कोई वस्तु 100 रुपये की थी,जिस पर 12 % एक्साइज लगता था, अब 112 पर cst 2% मतलब लगभग मूल्य114.50, फिर 14% वैट मतलब लगभग उस चीज का मूल्य 130 रुपये, फिर एंट्री टैक्स 1 से 2 % मतलब 132 रुपये,और किसी किसी वस्तु पर एंटरटेनमेंट टैक्स,प्रॉफेशनल टैक्स अलग था ,वही gst के बाद वही वस्तु 100 रुपये मूल्य और 28% अधिकतम gst के साथ 128 रुपये की है,कुलमिला कर देखा जाए तो चीज 6से 7 % सस्ति हुई है,लेकिन व्यावहारिक रूप से पहले लोगो के पास रास्ते थे जिससे वो टैक्स देने से बच जाते थे और वही 100 रुपये की वस्तु को बिना बिल के कोई टैक्स भरे 110 में बेच देते थे,अगर gst के वाद ये चोरी का रास्ता काफी हद तक ब्लॉक हो गया है, अब आपको उसके लिए 128 रुपये मूल्य और उसमें दुकानदार अपना मार्गीन जोड़ के 140 में बेचता है तो आपको लग रहा है कि gst में महंगाई बढ़ा दी है,अब मेरी तो समझ मे नही आ रहा है कि इस महंगाई के लिए सरकार का विरोध करू या फिर देश मे टैक्स की चोरी रोकने के लिए सरकार की सराहना करू,

एक और बात जिसका असर आगे चल कर होगा,भारत मे छोटे और मझोले उद्योग के पास पूंजी की कमि है, संसाधनों की कमी है, सुविधा के नाम पर सरकार से उन्हें सिर्फ आश्वाशन मिलते है,ऐसे में वो जो अपना माल बनाते है उसे बेचने और बहुराष्टीय कंपनियों से मुकाबला करने के लिए उन्हें अपने उत्पाद की कीमत उनसे 20% तक कम रखनी पड़ती है,जबकि बहुरासट्रीय कंपनियां अपने असीमित संसाधनों की वजह से ,आधुनिकीकरण की वजह से,अपने अकूत पूंजीवाद के दम पर हर उत्पाद को बहूत कम लागत में बना लेती है लेकिन क्योकि बड़े लेवल में टैक्स की चोरी संभव नही है इसलिए ये टैक्स का अमाउंट (लगभग 30%)ही है जो उनके प्रोडक्ट को छोटी और मझोली निर्माताओं की प्रोडाक्ट से महंगा करता है,मगर gst के बाद छोटे निर्माताओं कोे टैक्स भरना ही पड़ेगा तो उनके प्रोडक्ट का महंगा होना लाजमी है,और जब उनके और बहुराक्षत्रिय प्रोडक्ट के रेट समान हो जायेगे,तो उनके लिए अपने आप को बचाना अस्तित्व की लड़ाई है,
अगर दोनों प्रोडक्ट की गुणवता समान भी है तो आम भारतीय सोच के चलते बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रोडक्ट हमे सुपीरियर लगते है,क्योकि उनसे हमारी इमेज बढ़ती है सोशल स्टेटस बढ़ता है क्योकी उस प्रोडक्ट को अमिताभ,शाहरख सचिन,बेचते है,ऐसे में आगे चलकर gst छोटे और मझोले निर्माताओं के लिए काल है,ऐसे में gst के बाद आम मध्यमवर्गीय निर्माताओं के पास बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों बिक जाने/या उनकी नौकरी करने के अलावा कोई विकलप नही बचेगा,

और भी कई बातें है मगर ऐसा नही है कि gst बहुत बुरा है,वो लोग अभी भी जिंदा है जो एक सेल्स टैक्स नंबर लेने के लिए सेल्सटैक्स आफिस के महीनों चक्कर काटते थे,cto को बारंमबार दंडवत प्रणाम करते थे,और 10 से 20 हजार रुपये तक खर्च करते थे, लेकिन अब मात्र 10 मिनट ऑनलाइन बैठिए,अप्लाई कीजिये आपका gst नंबर 24 से 72 घण्टे में बिना किसी खर्च के आपके हाथ मे है, शायद लोगो को वो दिन याद नही जब एक वेबिल के लिए 15 दिन तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगते थे,लेकिन इंसान का स्वाभव है आपको दी गई एक असुविधा पहले दी गयी सारी सुविधाओ को नजरअंदाज कर देती है,और आप इंसान ही तो है,ये एक प्राकृतिक प्रक्रिया है,

में नही कहता कि gst परफेक्ट है, दुनिया मे कोई भी चीज पेरफकट नही होती क्योंकि सभी मे सुधार की गुंजाइश है,gst अच्छा है बुरा है,जैसा भी है मगर अब कानून है,इसमे सुधार हो रहे है,महीनें में तीन रिटर्न्स भरना संभव नही मगर इस पर विचार किया जा रहा है,e वेबिल की सीमा बधाई जा सकती है,आपकी असुविधा को ध्यान में रखकर इसमे सुधार किया जा रहा है,अब इसके सुधार की प्रक्रिया को इसके असफल होने का प्रमाण न बताए,

नया नया जुता भी कुछ दिन काटता है ये तो पूरा नया कानून है,कोई भी कानून सबके लिए अच्छा नही होता,जब कानून ही बदल गया है तो आप भी अपने आप को कुछ बदलिए,ये कच्चे पक्के वाली मानसिकता से बाहर आइये, ये पारम्परिक खाता बही से ऊपर उठिए तकनीक का लाभ उठाइए ,खुद को कंप्यूटेरिसेड कीजिये,व्हाट्सप और फेसबुक सिख सकते है तो कंप्यूटर भी सिख ही सकते है,

40 रुपये के पेट्रोल को टैक्स लगाकर 75 रुपये में सिर्फ इस लिए बेचना की अपनी सरकार बचाने के लिए निम्न बर्ग को मुफ्त में खैरात बाटने के लिए पैसे इक्कठे कर लिए जाए में इस बात का समर्थन कभी नहीं करता,लेकिन सबकी अलग अलग मजबूरी है आपको अपने व्यापार की चिंता है नेताओ को अपने व्यपार की,
भारत मे जहाँ विकाश के मुद्दे धर्म,जाति, आरक्षण आदि गैरजरूरी मुद्दों के आगे गौण हो जाते है वहा हर कोई अपनी सुविधा देखेगा ही,आप भी तो उन्ही में से एक है न जिसने अपनी जाति/धर्म के उम्मीदवार को बीना उसकी काबिलियत देखे सिर्फ इसलिए वोट दे दिया था क्योंकि वो आपको धर्म/जाति /पहचान का है,

आज के हालात पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरागांधी की मौत के बाद दिया हुआ राजीव गांधी का एक बयान याद आता है कि *एक बड़ा पेड़ गिरता है तो जमीन तो हिलती है* न जाने के पुराने लालफीताशाही कानूनों के वटवृक्ष गिरे है कुछ हलचल तो होगी ही, घबराइये मत,बस अपने आप को झटके सहने का आदि  बना लीजिए,

धन्यवाद
सपोर्ट gst/ बस अपने आप को इसके लिए तैयार करे,

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