Tuesday, 9 May 2017

लाइफ मंत्रा: कोई भी शारीरिक नही मानसिक रूप से विकलांग होता है

लाइफ मंत्रा: कोई भी शारीरिक नही बस दिमागी रूप से विकलांग है,

कल एक प्रेणादायक  वीडियो देखा जिसने बहुत कुछ सॉचने पर मजबूर किया,ये कोई किस्सा नही हकीकत है, ये हकीकत है उत्तर प्रदेश की रहने वाली अरुणिमा सिन्हा का आपके लिए ये शायद कुछ अंजाना सा नाम हो,लेकिन अगर आप जिंदगी में कभी कंही हौसला खो देते है तो इनका जीवन आपको वापस प्रेरणा से भर देगा, यू पी के एक छोटे से गाँव की लड़की जिसके साथ ट्रैन चैन खिंचने की कोशिश के चलते एक हादसा हुआ,वो ट्रैन से गिर गई,और सारी रात ऐसे ही दो पटरियों के बीच 12 घंटे तक पड़ी रही,सुबह किसी तरह उसे दिल्ली के किसी हॉस्पिटल में ले जाया गया वहा इलाज के बाद उसे पता चला कि इस हादसे में उसकी कमर और पाव की कई हड्डियां टूट गयी है,और एक पाव तो नही रहा, जगह जगह गहरे जख्म है,उसकी ऐसे हालात देखकर आस पास के डॉक्टर भी उस पर तरस खाकर कहने लगे कि आखिर के कैसे और क्यो बच गई,इस विकलांग जिंदगी से अच्छा तो वो मर ही जाती,लेकिन उस लड़की को जब ये सब मालूम हुआ तो उसके शब्द थे" भगवान ने अगर मुझे बचाया है तो कुछ अच्छा और बड़ा करने के लिए ही बनाया होगा" और उसी पल उसने अपने लिये एक लक्ष्य चुना की ऐसे माउंट एवरेस्ट चढ़ना है,

और मामूली रिकवरी के बाद अपने जख्मी शरीर और अपाहिज पैरों के साथ वो पर्वतारोही बछेंद्रीय पाल के पास गई और उनको अपनी इच्छा बताई, उसकी बातें सुनकर बछेंद्रीय पाल ने लगभग रोते हुए उसे गले से लगाया और कहा बेटी अगर इस हालात में भी तू एवरेस्ट चढ़ने का सोच सकती है तो समझ ले तूने एवरेस्ट चढ़ लिया, बस दुनिया को उसकी तारीख पता चलनी बाकी है, और उसके बाद को हुआ वो इत्तिहास था,अरुणिमा सिन्हा से न सिर्फ एवरेस्ट फतह को बल्की दुनिया के कई ऊंचे पहाड़ भी फतह की,उसके इस हौसले के लिए सरकार द्वारा उन्हें "पद्मश्री" के पूरस्कार से भी सम्मनित किया गया,

अरुणिमा की कहानी ये सिखाती है कि हम शरीर से नही दिमाग से विकलांग होते है, और विकलांग  जब होते है जब अपने दिमाग में अपनी हार को ग्रहण कर लेते है अपने बिलीव सिस्टम में ये बात डाल लेते है कि हम नही लार सकते, इसे सुधारने की जरूरत है, हम क्या है, हमारे पास क्या साधन है,और हम किस परिस्थिति में है ये कोई खास मायने नही रखता,मायने ये रखता है कि हम किसी भी परिस्थिति में अपनी सोच कैसे रखते है, ये सोच का फर्क ही लोगो की सफलता म् फर्क करता है, जहा थोड़ी सी विकलांगता लोगो के हौसले को तोड़ देती है उसी परिस्थितियों में अरुणिमा ने रिकॉर्ड तोड़ दिया,

मानसिक शक्ति शाररिक शक्ति से कई ज्यादा ताकतवर है,कोई भी काम को पूरा करने से पहले हमे उसको मन म् पूरा  करना पड़ता है उसके बाद ही हम् उसे पूरा करते है,हम सिर्फ उतने ही ताकतवर या कमजोर है जितना हम खुद को संमझते है,ये अंतर्मन ही सबसे बड़ी ताकत और प्रेरणा है,जब हम ये ठान लेते है कि हमे जीतना है तो फिर हमे कोई नही रोक सकता,

अक्सर हम अपने गरीब, कम पढेलिखे,कमजोर, साधनसम्पन्न न होने,और छोटे होने का बहाना बनाते है और अपने अपनी किसी भी असफलता के लिए ऐसे ही किसी बाहाने को कसूरवार ठहराते है जबकि हमारे सामने रोज ऐसे सैकड़ो उदाहरण गुजरते है जो इन सब साधनो के मामले में हमसे कही पीछे थे मगर आज सफलता की बुलंदियों पर खड़े है इसलिए नही की उनकी किस्मत अच्छी थी मगर इसलिए क्योकि उनकी मेहनत, हौसला और बिलीफ सिस्टम बहुत अच्छा था,उन्हें खुद पर भरोसा था, वो भी गिरे ,असफल हुए मगर उन्होंने अपना हौसला नही छोड़ा,एक असफलता ने उन्हें परेशान नही किया,बस गलतियों की सीख दी,और उसको सुधार कर आज वो सफल है,

सफल होने के साधन नही हौसला चाहिए,आप मि शारीरिक अक्षमता या गरीबी आप की राह में रुकावट नही,रुकावट है आपकी सोच, उसे सुधारिये और जिस दिन आपको ये विश्वासः हो गया कि आप कारः सकते है उस दिन संही मे आप कर सकते है,बस जब कभी आपका हौसला टूटने लगे तो आंखे बंद कर के अरुणिमा या उसके जैसे ही किसी संघर्ष पूर्ण व्यक्तित्व का जीवन याद करे ये आपको प्रेरित करेगा कि जब वो कर  सकते है तो मैं क्यों नही,

रूक जाना नही कभी तू हार के,
कांटो पे चलके मिलेंगे साये बाहर के,
ओ राही ....ओ राही...

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