Friday, 15 December 2017

लाइफ मंत्रा : सादगी है सदा के लिए,सादा जीवन उच्च विचार

लाइफ मंत्रा : सादगी है सदा के लिए,सादा जीवन उच्च विचार

आरएसएस का नाम लेते ही अधिकतर लोगों के मन मे एक कट्टर हिंदूवादी संगठन की छवि उभरती है लेकिन जो लोग आरएसएस से जुड़े है वो जानते है कि आरएसएस क्या है,कैसे कार्य करता है,कैसे बिना किसी विज्ञापन के और ढकोसलों के एक संगठन लगभग 90 वर्षो से निरंतर कार्यरत है,और आज विश्व मे सबसे बड़े स्वयं सेवक समूह में।रूप में जाना जाता है,जिसके पूरे देश- विदेश में 50 लाख कार्यकर्ता है,

आरएसएस की कई खासियत है लेकिन यह जिस खासियत की कि चर्चा मैं करना चाहता हु वो है सादगी,जो लोग आरएसएस से जुड़े है वो जानते है कि शाखा का मूल सादा जीवन उच्च विचार है,एक सादगी भरी जीवन शैली के कारण ही आम से लेकर खास लोग निरंतर शाखा से जुड़े है,अनुशाशन, समय प्रबंधन,नियम,संम्मान,समानभाव जैसे कई बातें जिसे आज की युवा पीढ़ी महत्व नही देती शाखा का आधार यही सभी छोटी छोटी चीजे है जो असल मे छोटी नही है,यही बाते हमारे जीवन का भी आधार है,

आज कल भौतिकतावाद के युग मे हमने अपनी इच्छाओं को इतना बढ़ा लिया है किहम दुखी हो गए है,सादगी से रहना हमे शर्मनाक लगता है, सादगी हमे साधारण लगती है लेकिन ये एक असाधारण चीज है,हम हमेशा कुछ तड़क भड़क वाली चीजें चाहते है लेकिन ये सिर्फ क्षण भंगुर है, असल मे हम वापस सादगी की और लौट आते है,पानी का गुण धर्म शीतल रहना है ,पानी को आप कितना भी उबाल लीजिये लेकिन जब आप उसको उबालना छोड़ देते है तो धीरे धीरे व्व वापस अपने साधारण तापमान में आजता है ठंडा हो जाता है, ऐसे है हम जितने भी आडम्बर कर ले हम फिर सादगी की और वापस आते है,

पहनने के लिए जितने भी महंगे परिधान हो हम अपने हल्की टीशर्ट और बरमूडा में ही आराम पाते है,महंगे से महँगे जुतेहो हमारे पास मगर उनमे स्लीपर जैसा आराम नही, हमारी पसंदीदा डिस चाहे पनीर हो या छोले,सादे दाल चावल रोटी ही हमारा दैनिक खाद्य है,चाहे हमारे पास मर्सडीज हो या फरारी पैदल चहलकदमी करने जैसा मजा किसी मे नही है,बड़े से बड़े होटल और फन पार्क में आप जितने भी पल बिता ले आपको जो संतुष्टि अकेले आप से बाते कर के मिलेगी वो कंही नही मिलेगी,

असल मे हमे बहुत कुछ नही चाहिये,हमने सिर्फ अपनी बढ़ी हुई इच्छाओं के चलते अपने समस्यायों को बढ़ा लिया है,उन चीजों की खातिर जो हमे नही चाहिये उनका मजा भी नही ले पाते जो हमारे पास है,सादगी हमारे कई समस्यायों का हल है,सादगी से रहिये,मस्त रहिये,क्योकि सादगी है सदा के लिए,मन तो बीच समुंदर में खड़े जहाज के पंछी की तरह है जो रोज इच्छाओं के अनंत आकाश मे उड़ता है और दूर दूर तक समुंदर देख कर वापस जहाज में आ जाता है, आचार, विचार,व्यवहार,में सादगी लाइये देखिए खुद महसूस कीजिये कि  कई समस्याएं खुद ब खुद खत्म हो जाएगी क्योकि वो कभी थी ही नही बल्कि हमारी भौतिकता के कारण हमने खुद ही बनाई थी,तो कोशिश कीजिये कि सादगी पसनद बने क्योकि जरूरते तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है,

Thursday, 5 October 2017

लाइफ मंत्रा: कितनां पैसा चाहिए आखिर जीने के लिए

लाइफ मंत्रा: कितना पैसा चहिये आखिर जीने के लिए ??

पैसा ही जिंदगी में सब कुछ नही है,और सिर्फ मोह माया है ये बात हर प्रबचन में हम सुनते है और इसको बताने वाले बाबा भी लाखो में अपनी फीस(आम भाषा मे दान- दक्षिणा) लेते है,आम आदमी की सोच  और जिंदगी सिर्फ पैसे से शुरू होती है और इसी पर खत्म, हमारे किसी भी सुख,सुविधा,खुशी,दुख,यहां तक कि बीमारी का मापद्दण्ड भी पैसा है,बहुत बड़ी बीमारी है इलाज में 10 लाख रुपये लगेंगे,ऐसा आपने अक्सर सुना होगा,कुल मिला कर हमारी अभी खाव्हिश,हमारी सभी कोशिश हमारी सभी चाहत पैसा है मगर आखिर हमें कितनां पैसा चाहिए??

अगर कोई हमे पूछ लें की आपको कितना पैसा चाहिए की आप सुखी रह सके,तो आप के पास कोई जवाब नही होगा, हमने पैसे को हर चीज का मापदंड बना रखा है,लेकिन पैसा कितनां चाहिए इसका कोई मापदंड नही बनाया है, इसके कुछ प्रसिद्ध गोलमोल जवाब ये है,बस इतना कि गुजारा ढंग से चल जाये, बस इतना कि बच्चों को तकलीफ न हो, बस इतना कि कोई सुविधा असुविधा में किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े, बस इतना कि खुद का घर गाड़ी हो,और बस इतना कि गुजारा चलता रहे,और इस जैसे कितने गोलमोल जवाब हम न जाने अपने आप को रोज देते है,और साथ मे एक टैग लाइन जोड़ देते है कि " बस इतना सा ख्वाब है",हम को खुद को नही मालूम कि हमको कितनां पैसा चाहिए,??

बढ़ने की इच्छा होना एक बहुत बढ़िया बात है मगर संतुष्टि भी कोई चीज होती है,इतना भी कमाने में क्या डूबे रहना की खर्च के लिए वक्त न बने, अपने आप को अत्यधिक व्यस्त कर के,अपनेपरिवार ,दोस्त यार को समय न देकर,अपने समाज के लिए कुछ न कर अगर आपने कुछ पैसे कमा भी लिए तो इसका सार क्या है??अधिकतर लोगों का जवाब होता है की हम जो कुछ कर रहेहै अपने परिवार के लिए तो कर रहे है,बहुत अच्छी बात है आप की सोच अच्छी है लेकिन सोच कर देखिए कि आप जो परिवार के लिए कर कहे है क्या उसे पा और आपके परिवार वाले भी एन्जॉय कर रहे है??जब आप घर से जाते है तो आपका बच्चा सोया रहता है जब आते है तब तक सो जाता है तो आप अपना कमाया हुआ एन्जॉय कब और किसके साथ करेंगे,

इकोनोमिक्स का पहला सूत्र है आदमी की इच्छाये अनंत है और कभी पूरी नही हो सकती लेकिन ये याद रखने की जरूरत है कि जिंदगी सीमित है,और साथ ही अनिश्चित भी,आपके कमाये लाखो करोडो रुपये आपके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु की गारंटी नही है,आज सोए तो कल उठेंगे या नही ये पता नही,

आज के दौर में एक मध्यमवर्गीय इंसान की सोच है कि छह अंको में उसकी मासिक कमाई उसके सपनो वाले जीवन को जीने में उसकी मदद करेगी,इस सोच और लक्ष्य से अपना करियर चालू करके न जाने कब अपने सपनो और लक्ष्यों को वो इतना बढाते जाता है उसका पता ही नही चलता,इतना बढ़ा लेता ही कि पता ही नही चलता कि कब वो एक इंसान से सिर्फ एक धन मसीन बन गया है,जिसमे भावनाएं नही बची है,कभी सोचा है कि हम पैसा क्यो चाहते है??पैसे को हम खा नही सकते,पी नही सकते, पहन नही सकते अगर फिर भी इसके प्रति हमारे मन मे इतनी दिवानगी है तो सिर्फ इसलिए क्योकि हम अपनी उन इच्छाओं से प्यार करते है जो हमे लगता है कि हम पैसे से पूरी कर सकते है, असल मे हम पैसे के पीछे नही अपनी इच्छाओं के पीछे भाग रहे है,"हरि अन्त हरि कथा अनंता " की तरह इच्छाये भी अनन्त है,अभी कुछ साल पहले तक 30 से 40 हजार रुपये को एक अच्छी मासिक इनकम माना जाता था,क्या सिर्फ 5-10 सालों में महंगाई इतनी बढ़ गयी को हम को 1 लाख भी कम लगने लगा,नही महगाई नही हमारी इच्छाये बढ़ गयी है,उन चीजों की इच्छाये जो हमे सिर्फ इसलिए कहिये क्योकि वो हमारे आस पास सबके पास है,और उनके न होने से हमारे सोसिअल स्टेटस में कमि आ जाती है हमारे अहम को ठेस लग जाती है,

हामरे मन मे ये बात घर कर गयी है कि हमारा फ़ोन अगर समसुंग या एप्पल न हो तो हमे ओछी नजर से देखा जाता है,कार इंडिका या इंडिको हो तो आप को अपने क्लास की कोई परवाह नही है,घर मे ऐशोआराम के सारे संसाधन नही है तो आपकी जिंदगी बेकार है,विदेशों में घूमना फिरने भी हैम सिर्फ इसलिए जाना है कि फेसबुक में फोटो छोड़कर लोगो को अपना स्टेटस दिखाया जाए,जो शादियां पहले 2-5 लाख में।हो जाती थी इतना तो सिर्फ आजकल हम इसके प्रि-वेडिंग शूट में खर्च कर देते है क्योंकि ये फ़ैशन में है,अगर साधारण सब्दो में कहु तो हम हमेशा दुशरो से बेहतर रहने,दिखने की सोच से प्रभावित हो कर अपनी इच्छाओ को इतना फैला लिया है कि उसके लिए चादर हमेशा कम पड़ जाती है,जाने अनजाने हम भी अहम की उस अंधी दौड़ में शामिल हो गए है जो कभी खत्म ही नही होगी,सुविधावादी के साथ साथ हम आजकल सोशल स्टेटस के रिमोट कंट्रोल से संचालित होते है जो कि निर्धारित करता है कि हम कब किस चीज से हम कितनां खुश होंगे,हमे ज्यादा पैसा सिर्फ इस लिए चाहिए क्योकि हमने अपनी इच्छाओं को अपने अहम से जोड़ लिया है,और अहम की संतुष्टि तभी होती है जब हम अपने आप को औरो से कुछ ऊपर रखते है,इस अहम की खातिर हाय हाय मची है,आज कल हमे पैसा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए नही अपने अहम की पूर्ति के लिए चाहिये,अपनी नाक उची रखने के लिए हम अपने पूरे शरीर को तकलीफ दे रहे है,

शायद आप भुले तो नही होंगे कुछ दिन पहले ही एक करोड़पति अपने फ्लैट में सड़ी गली हालात में पाई गई थी, करोडो के मालिक को उनके बेटे ने दर दर के
की ठोकरे खाने को मजबूर कर दिया,एक पढ़ा लिखा आईएस घर के कलह से तंग आकर सुसाइड कर लेता है,फ़िल्म इंडस्ट्री के चकाचौन्ध वाली दुनिया के सैकड़ो ऐसे उदाहरण है जो मानसिक विक्षिप्त होकर मरे,पैसा इनके पास भी बेशुमार था फिर भी सुखी नही थे और ऐसे हालातो का सामना किया जिसको सोच कर आपकी रूह कांप जाएगी,

इस पैसे के हिरण के पीछे भागना छोड़िये,आपकी खुशिया जो आपके जिंदगी को खूबसूरत बनाती है वो  आपके भीतर ही है, उनकी तलाश में भटकना छोड़िये,अपनी इच्छाओं को सीमित कीजिये,आप बहुत खुशनसीब है कि आपकी जरूररते तो पूरी हो रही है,आपसी कांटेक्ट बढ़ाइए,मिलजुल कर रहिये,अपने परिवार और समाज से मिलकर चलिए,कम से कम इतना इंतेजाम तो कर लीजिए कि मरने के बाद आप के अर्थी के पीछे कुछ भीड़ हो जाये,जरूरते फकीरों की भी पूरी हो जाते है और इच्छाये बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है,अपनी इच्छाये सीमित कर लीजिए आप अपने आप को दुनिया का सबसे अमीर इंसान महसूस करेंगे,

Wednesday, 4 October 2017

लाइफ मंत्रा: अपने आप मे शल्य नही जामवंत जगाइए

लाइफ मंत्रा: अपने आप मे 'शल्य' नही जामवंत जगाइए,

कल एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी जी ने gst के समर्थन में अपना पक्ष रखा और इसकर विरोधियों की तुलना महाभारत के एक चरित्र'शल्य' से की,शल्य महाभारत युद्ध मे दानवीर कर्ण के सारथी थे,ये उनकी आदत थी कि वो हमेशा विरोधियों (अर्जुन एवं पांडव)की ताकत को बहुत बड़ा चढ़ा कर पेश करते थे,और अपनी(कर्ण) की किसी भी गलती को बहुत गंभीरता से महिमामंडित करते थे,कर्ण का अगर एक तीर खाली चले जाता था तो वे इसे हार का सूचक बताते थे,कहने का मतलब ये है कि वो इस तरह की बाते करते थे जो किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास हिला देती थी,प्रधान मंत्री में gst के बाद मची अफरातफरी के बाद इस के विरोध में प्रतिक्रिया देने वालो को शल्य कहा हैक्योकि ये उनव्हिजोंको भी महिमामंडित कर के बखान कर रहे है जो हुई ही नही,कुल मिलाकर वो आम जनता से मोदी सकार के प्रति विश्वाश भंग करने का कार्य कर रहे है,

उन्होंने अपने भाषण में इसी बात को और विस्तृत रूप से समझाते हुए कहा कि "शल्य" सिर्फ एक चरित्र नही एक प्रकृति है स्वभाव है,और उन्होंने ये बाते राजनीतिक परिचर्चा के रूप में कंही उसी बात को मैं जीवन के प्रबंधन के रूप में कहना चाहता हु की असल जिंदगी में भी हम अपने भीतर कई " शल्य" ले कर बैठे है जो हर काम के लिए हमे हतोत्साहित करता है,डराता है,संमस्याओ को बड़ा करके दिखाता है,विरोधियों को हम पर हावी करता है,जबकि ऐसा कुछ नही है,हमारे विरोधी सिर्फ उतने ही मजबूत है जितने हम सोचते है,और उनका मजबूत आ कमजोर होना इतना माययने नही रखता माय ने ये रखता है कि हम किसी आत्मविश्वास से उनसे लड़े, ये  विरोधी कोई आदमी ही नही हमारे गलत विचार,हमारी बुरी आदतें ,हमारा गलत स्वभाव ,हमारी अदूरदर्शिता भी हो सकता है,अकसर किसी बुरी आदत  से छोड़ने की कोशिश करने से पहले ही हम सोच लेते है कि हम ये आदत नही छोड़ पाएंगे,अक्सर किसी काम को करने से पहले हम ये सोच लेते है कि ये मुश्किल है हम नही कर पाएंगे,अक्सर संयश और भय के बादल हमारे कार्यशक्ति की रोशनी को रोके सकते है,एक कहावत है कि "अगर आप लड़ते है तो शायद हार जाए मगर आप नही लड़ते तो आपने हार मान ही ली है"

हमारे भीतर जो " शल्य" होता है वो हमको लड़ने से रोकता है,ये डर दिखा के की अगर हम लड़े तो हमे हारना का खतरा है,और इस इस डर में हम अक्सर ये भूल जाते है कि अगर हम न लड़े तो हार स्वीकार करते है,जहाज को जंग लगने का सबसे ज्यादा खतरा पानी से होता है लेकिन वो किनारे में खड़े होने के लिए नही लहरों का सीना चीर कर आगे बढ़ने के लिए बनाए गए है,जंग लगकर खराब होंना खड़े खड़े ऐसे ही कबाड़ बन जाने से कंही ज्यादा बेहतर है,

आप इंसान है और अगर आप भगवान में विश्वास करते है तो इस बात कर भी यकीन रखिये की भगवान ने आपको किसी उद्देश्य से ही यहां भेजा है,उसे पूरा करने के लिए प्रयास कीजिये, कई बातें आपको रोकेंगी,आपका हौसला कम करेगी लेकिन आप रुकने के लिए नही काम करने में विश्वास रखिये,अपने मन के "शल्य" को मारिये और जामवंत पैदा कीजिये,

जामवंत ,रामायण का एक चरित्र है जो हनुमान जी को उनकी शक्ति याद करवाता है जिसके बाद हनुमान जी 100 योजन के समुद्र को आसानी से पार कर लंका दहन कर के वापस लौटते है,अक्सर हम अपने मन मे शल्य को तो स्थान दे देते है लेकिन जामवंत को नही,अपने खूबियों को पहचननिये क्योकि आप इतने भाग्यशाली नही की जीवन के हर क्षेत्र में कोई जामवंत हर बार आपका आत्मविश्वास और उत्साह बढ़ाने को आपके साथ रहे, अपने लिए जामवंत खुद बनिये,
"शल्य" प्रवृति से छुटकारे पाइये "जामवंत " प्रवृति को अपनाइये,
शिकायते नही कोशिश कीजिये,
आसान कुछ भी नही gst हो या जिंदगी,मगर बस एक बार समझने की देर है और फिर कुछ भी मुस्किल नही

Sunday, 1 October 2017

जी एस टी : इतना हंगामा है क्यो बरपा ??

मेरा आज का लेख थोड़ा लंबा है,लेकिन आपसे अनुरोध है कि थोड़ा समय निकाल कर अवश्य पढ़े क्योकि ये आप की जिंदगी से जुड़ा है

जी एस टी: इतना हंगामा क्यो है भाई,

अगर मैं किसी भी न्यूज चैनल या किसी भी पान दुकान,होटल या सार्वजनिक जगह 10 मिनट भी खड़ा हो जाऊ तो 10 मिनट के भीतर अर्थव्यवस्था के कई बड़े भारी पंडितो का ये गुणगाण शुरू हो जाता है कि gst का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कितनां विपरीत असर हुआ है और इस पर व्याख्यान सुनने को मिल सकता है, ये महसूस होता है कि जी एस टी लागू होने के बाद से देश मे अफरा तफरी का माहौल है,देश आर्थीक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है,फिसिकल डेफिसिट,मुद्स्फीति, जीडीपी जैसे टेक्निकल अर्थनैतिक शब्द जिनका आम आदमी ढ़ंग से ट्रांसलेशन भी नही जानता उन पर व्याख्यान दे रहा है,

जो लोग प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष कर में फर्क नही जानते वो भी gst की कमियां खूब गिना रहे है,मैं हमेशा इस बात में इत्तेफाक रखता हूं कि समर्थन या विरोध सिर्फ विचारधारा का होना चाहिए व्यक्ति का नही,अगर मोदी जी कुछ सही करते है तो उसकी तारीफ करता हु कुछ गलत करते है तो उसका विरोध भी,मगर विरोध का मतलब ये नही की जिस तरफ भीड़ हो उस तरफ आप भी खड़े हो जाये और नारे लगाने लगे,

Gst देश के सभी अप्रत्यक्ष कर(जो कर सीधे करदाता नही भरता,उनसे लेकर कोई और भरता है जैसे सेल्स टैक्स,एक्साइज,एंट्री टैक्स,सर्विस टैक्स,प्रोफ़ेशनल टैक्स,लोकल टैक्स,एंटरटेनमेंट टैक्स सहित लगभग 18 टैक्स) को एक करके बनाया गया है, ताकि आम ब्यापारी/प्रॉफेशनल जो कि आम जनता से टैक्स लेकर उनके बदले ये टैक्स भरता है उसे कागजी कामो से कुछ आसानी हो, और gst के बारे में ये दावा भी किया गया की ये टैक्स भरने की प्रक्रिया को आसान करेगा,ज्यादा से ज्यादा सेवाओ को ऑनलाइन कर भरष्टाचार को कम करने में पहल करेगा,सब बातों को पारदर्शी बनाएगा,और इन सभी प्रचारों के साथ gst को लागू किया गया,

लेकिन gst लागु होने के बाद से लगातार इसका विरोध हो रहा है,इसके लागू होने के बाद इसकी कई खामियां उजागर हुई,जैसे gst की websight अभी तक पूरी तरह तैयार नही है, इसके लिए तैयारी पूरी नही है,इसके लिए लोगो को तैयार नही किया गया, समझाया नही गया,एक नए कॉन्वेप्ट को लागू करने से पहले जितना फील्ड वर्क करना था नही किया गया,

भारत की हर सरकार की ये सोच रही है कि वो किसी भी कानून के लिए पश्चिम के  विकसित देशों का मॉडल चुनता है और उसे अपने देश मे लागू करता है,gst भी लगभग यही है, भारत सरकार की हमेशा से एक आदत रही है कि वो कांनून तो पश्चिम के विकसित देशों के लागू कर देता है मगर उसके लिए उतनी सुविधाएं लागू नही करता, इस बात को एक साधारण उदाहरण ये है कि विदेशों की रोड की साफ सफाई देखकर भारत मे विदेशों की तरह थूकने और पेशाब करने पर पाबंदी और फाइन लगा दिया गया मगर  विदेशों की तरह हर चार कदम पर डस्ट बीन और हर दस कदम पर पेशाब घर भी बनाइये,वरना जब किसी को पेशाब आएगी तो आपके कानून की परवाह नही करेगा,एक और समस्या है कि बिदेशो की हर सफल कानून को यहां लागू करने में दिक्क्त भी बहुत है क्योंकि भारत मे जनसख्या का घनत्व बाकी विकसित देशों से लगभग 10 गुना है वहां जो कानून बनाते है उसकी मॉनिटरिंग आसान है क्योंकि वहां 2-5 या 10 करोड़ लोगों को ही मॉनिटर करना है और भारत मे 135 करोड़ लोगों को,ये बात भी अपने आप मे बहुत डिफरेंस पैदा करती है,अब gst की एक वेबसाइट जिसमे एक साथ लगभग 80 लाख करदाता एक साथ लोग इन करेंगे वो क्रैश तो होगी ही,

Gst में हर व्यवस्था ऑनलाइन की जा रही है,हर चीज को व्यवस्थित करने का दावा किया जा रहा है,मगर इसके लिए जो मूलभूत सुविधाएं आवश्यक थी क्या उस पर भी ध्यान दिया गया,भारत गांवों का देश है जहां 90% आबादी के लिए अभी भी 24 घंटे बिजली अभी भी सिर्फ एक सपना है वहा ऑनलाइन सुविधाएं छलावा ही है, भारत के 50% गाव में अभी भी इंटरनेट के लिए घर की छत ने जाकर मोबाइल को ऊंचा उठाना पड़ता है,तब कंही जाकर नेटवर्क का एक टावर बड़ी मुश्किल से आता है ऐसे में ऑनलाइन सर्विस का मूल्य ही क्या है,

ऐसा नही है कि सिर्फ सरकार की अधूरी तैयारियां ही gst की लचर व्यवस्था के लिए दोषी है,कुछ हमारी सुविधवादी सोच भी है,भारत शुरू से ही एक तकनीकी क्षेत्र को नजरन्दाज करने वाला रूढ़िवादी देश है हम सिर्फ उसी तकनीक को पसंद करते है जिससे मजा आये सुविधा हो, हमने समार्ट फोन तो ले लिया उसमे व्हाट्सएप्प और फसबुक चलाना भी सीख लिया मगर सरकार की ओनलाइन सुविधाएं का कैसे उपयोग किया जाए नही सीखा,फेसबुक पर अपनी फोटो अपलोड करते समय या यु ट्यूब पर पोर्न देखते हुए हम काफी धैर्य से प्रतीक्षा करते है,बफरिंग हमे चिड़चिड़ा नही करती ,मगर gst की वेबसाइट में 1 मिनट की देरी पर हमारा धैर्य जवाब दे देता है,और लग जाते है gst को कोसने, क्या देश के लिए सब कुछ करने का जिममा सिर्फ सरकार का ही है,आप और हम कुछ नही करेंगे,

ये तो gst का तकनीकी पहलू था मगर अब बात करते है व्यवहारिक पहलू की,gst के सख़्ती से लागू होने के बाद से देश मे इसके दायरे में आने वाले व्यापारियों की संख्या बढ़ गयी,इसके पैन कार्ड से लिंक होने के कारण अब आयकर दाता की संख्या भी बढ़ेगी,एक सवाल ये ही कि जैसा कि gst तो एक अप्रत्यक्ष कर है जिसमे किसी व्यापारी को भी अपने हाथ से कर नही भरना है आप जितना टैक्स भरेंगे वो आप उपभोक्ता से ले कर भरेंगे फिर आपको तकलीफ क्या है,

एक तकलीफ तो इसके भरने के जटिल प्रक्रिया से है,की एक छोटा व्यापारी अपना व्यापार करेगा या अपने कागजी कामो में उलझा रहेगा,इसे थोड़ा आसान बनाने की आवश्यकता है, एक और बात ये भी ही कि हर विभाग की तरह कुछ असाधु व्यापारियों के गडंबड़ी का खामियाजा एक साफ सुधरे व्यापारियों को भी उठाना पड़ रहा है,उदहारण से संमझते है,एक असाधु व्यापारी एक माल को 100 रुपये में बिना बिल के खरीदता है उसके 10 रुपये अपना प्रॉफिट जोड़कर 110 में बेच देता है, वही सही व्यापारी 100 में खरीदेगा 28% टैक्स देगा, उसकी लागत ही 128 है अब 5% फायदे में भी बेचेगा तो 133 रुपये में बेचेगा, क्या भारत का आम उपभोगता इतना समझदार और ईमानदार है कि वो इस समान को बिना बिल के 110 में न खरीदकर 133 में बिल में ख़रीदे, असल मे हम अपनी समस्या के लिए बहुत कुछ खुद दोषी है,अगर सरकार को gst को लागू करना है तो उन असाधु व्यापारी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी पड़ेगी जो सही व्यापारियों के लिए मुश्किल पैदा कर रहे है, और जिनके कारण व्यापारी टैक्स भरने से बच रहे है,

Gst के बाद एक और हास्यापद और मजेदार बात हुई है कि gst में लगभग 95% चीजो में टेक्स काम हुआ है लेकिन चीजो के दाम बढ़े है,सुनने में अटपटा लगता है लेकिन सच है कैसे,?? इस बात को भी उदाहरण से संमझते है,gst से पहले कोई वस्तु 100 रुपये की थी,जिस पर 12 % एक्साइज लगता था, अब 112 पर cst 2% मतलब लगभग मूल्य114.50, फिर 14% वैट मतलब लगभग उस चीज का मूल्य 130 रुपये, फिर एंट्री टैक्स 1 से 2 % मतलब 132 रुपये,और किसी किसी वस्तु पर एंटरटेनमेंट टैक्स,प्रॉफेशनल टैक्स अलग था ,वही gst के बाद वही वस्तु 100 रुपये मूल्य और 28% अधिकतम gst के साथ 128 रुपये की है,कुलमिला कर देखा जाए तो चीज 6से 7 % सस्ति हुई है,लेकिन व्यावहारिक रूप से पहले लोगो के पास रास्ते थे जिससे वो टैक्स देने से बच जाते थे और वही 100 रुपये की वस्तु को बिना बिल के कोई टैक्स भरे 110 में बेच देते थे,अगर gst के वाद ये चोरी का रास्ता काफी हद तक ब्लॉक हो गया है, अब आपको उसके लिए 128 रुपये मूल्य और उसमें दुकानदार अपना मार्गीन जोड़ के 140 में बेचता है तो आपको लग रहा है कि gst में महंगाई बढ़ा दी है,अब मेरी तो समझ मे नही आ रहा है कि इस महंगाई के लिए सरकार का विरोध करू या फिर देश मे टैक्स की चोरी रोकने के लिए सरकार की सराहना करू,

एक और बात जिसका असर आगे चल कर होगा,भारत मे छोटे और मझोले उद्योग के पास पूंजी की कमि है, संसाधनों की कमी है, सुविधा के नाम पर सरकार से उन्हें सिर्फ आश्वाशन मिलते है,ऐसे में वो जो अपना माल बनाते है उसे बेचने और बहुराष्टीय कंपनियों से मुकाबला करने के लिए उन्हें अपने उत्पाद की कीमत उनसे 20% तक कम रखनी पड़ती है,जबकि बहुरासट्रीय कंपनियां अपने असीमित संसाधनों की वजह से ,आधुनिकीकरण की वजह से,अपने अकूत पूंजीवाद के दम पर हर उत्पाद को बहूत कम लागत में बना लेती है लेकिन क्योकि बड़े लेवल में टैक्स की चोरी संभव नही है इसलिए ये टैक्स का अमाउंट (लगभग 30%)ही है जो उनके प्रोडक्ट को छोटी और मझोली निर्माताओं की प्रोडाक्ट से महंगा करता है,मगर gst के बाद छोटे निर्माताओं कोे टैक्स भरना ही पड़ेगा तो उनके प्रोडक्ट का महंगा होना लाजमी है,और जब उनके और बहुराक्षत्रिय प्रोडक्ट के रेट समान हो जायेगे,तो उनके लिए अपने आप को बचाना अस्तित्व की लड़ाई है,
अगर दोनों प्रोडक्ट की गुणवता समान भी है तो आम भारतीय सोच के चलते बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रोडक्ट हमे सुपीरियर लगते है,क्योकि उनसे हमारी इमेज बढ़ती है सोशल स्टेटस बढ़ता है क्योकी उस प्रोडक्ट को अमिताभ,शाहरख सचिन,बेचते है,ऐसे में आगे चलकर gst छोटे और मझोले निर्माताओं के लिए काल है,ऐसे में gst के बाद आम मध्यमवर्गीय निर्माताओं के पास बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों बिक जाने/या उनकी नौकरी करने के अलावा कोई विकलप नही बचेगा,

और भी कई बातें है मगर ऐसा नही है कि gst बहुत बुरा है,वो लोग अभी भी जिंदा है जो एक सेल्स टैक्स नंबर लेने के लिए सेल्सटैक्स आफिस के महीनों चक्कर काटते थे,cto को बारंमबार दंडवत प्रणाम करते थे,और 10 से 20 हजार रुपये तक खर्च करते थे, लेकिन अब मात्र 10 मिनट ऑनलाइन बैठिए,अप्लाई कीजिये आपका gst नंबर 24 से 72 घण्टे में बिना किसी खर्च के आपके हाथ मे है, शायद लोगो को वो दिन याद नही जब एक वेबिल के लिए 15 दिन तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगते थे,लेकिन इंसान का स्वाभव है आपको दी गई एक असुविधा पहले दी गयी सारी सुविधाओ को नजरअंदाज कर देती है,और आप इंसान ही तो है,ये एक प्राकृतिक प्रक्रिया है,

में नही कहता कि gst परफेक्ट है, दुनिया मे कोई भी चीज पेरफकट नही होती क्योंकि सभी मे सुधार की गुंजाइश है,gst अच्छा है बुरा है,जैसा भी है मगर अब कानून है,इसमे सुधार हो रहे है,महीनें में तीन रिटर्न्स भरना संभव नही मगर इस पर विचार किया जा रहा है,e वेबिल की सीमा बधाई जा सकती है,आपकी असुविधा को ध्यान में रखकर इसमे सुधार किया जा रहा है,अब इसके सुधार की प्रक्रिया को इसके असफल होने का प्रमाण न बताए,

नया नया जुता भी कुछ दिन काटता है ये तो पूरा नया कानून है,कोई भी कानून सबके लिए अच्छा नही होता,जब कानून ही बदल गया है तो आप भी अपने आप को कुछ बदलिए,ये कच्चे पक्के वाली मानसिकता से बाहर आइये, ये पारम्परिक खाता बही से ऊपर उठिए तकनीक का लाभ उठाइए ,खुद को कंप्यूटेरिसेड कीजिये,व्हाट्सप और फेसबुक सिख सकते है तो कंप्यूटर भी सिख ही सकते है,

40 रुपये के पेट्रोल को टैक्स लगाकर 75 रुपये में सिर्फ इस लिए बेचना की अपनी सरकार बचाने के लिए निम्न बर्ग को मुफ्त में खैरात बाटने के लिए पैसे इक्कठे कर लिए जाए में इस बात का समर्थन कभी नहीं करता,लेकिन सबकी अलग अलग मजबूरी है आपको अपने व्यापार की चिंता है नेताओ को अपने व्यपार की,
भारत मे जहाँ विकाश के मुद्दे धर्म,जाति, आरक्षण आदि गैरजरूरी मुद्दों के आगे गौण हो जाते है वहा हर कोई अपनी सुविधा देखेगा ही,आप भी तो उन्ही में से एक है न जिसने अपनी जाति/धर्म के उम्मीदवार को बीना उसकी काबिलियत देखे सिर्फ इसलिए वोट दे दिया था क्योंकि वो आपको धर्म/जाति /पहचान का है,

आज के हालात पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरागांधी की मौत के बाद दिया हुआ राजीव गांधी का एक बयान याद आता है कि *एक बड़ा पेड़ गिरता है तो जमीन तो हिलती है* न जाने के पुराने लालफीताशाही कानूनों के वटवृक्ष गिरे है कुछ हलचल तो होगी ही, घबराइये मत,बस अपने आप को झटके सहने का आदि  बना लीजिए,

धन्यवाद
सपोर्ट gst/ बस अपने आप को इसके लिए तैयार करे,