कैसे छुपाऊ सबसे,चेहरे पे पढ़ ली जाती है आजकल,
मुझसे मेरी उदासियों की और हिफाजत नहीं होती,
कोई और जिम्मेदार होता तो फिर थी ठीक था,
खुद की गलतियों की खुद से शिकायत नहीं होती,
सब कुछ सुधर सकता है अगर मैं सुधर जाऊ,
मगर खुद को सुधारने की अब ताकत नहीं होती,
एक बार मरने के लिए जिंदगी भर जीना,
अब मुझसे से सारी पंचायत नहीं होती,
चलो आज मिल कर के फिर एक जश्न मनाये,
कौन कहता है की नाकामियो की कोई दावत नहीं होती,
अक्सर दुनिया से हार जाते है वो शक्स ,
जिनहे खुद को जित लेने की आदत नहीं होती,
कोई उठा कर अपने साथ लगा ले तो कमाल कर सकता हु,
मैं वो शून्य हु जिसकी अकेले कोई अहमियत नहीं होती,
- विकाश खेमका,
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