Wednesday, 22 May 2019

बाजार vs बाजारवाद

लाइफ मंत्रा: बाजार vs बाजारवाद

सफर आसान चाहते है तो समान काम रखिये,
जिंदगी आसान चाहते है तो अरमान कम रखिये,

किसी अनजान लेखक की लिखी ये पंक्तियां सर्वदा शास्वत सत्य है,लेकिन इन दो पंक्तियो को चरितार्थ करना इतना आसान भी नही है,हमारे आस पास फैलता हुआ बाजारवाद हमे ऐसा करने से  रोकता है, वर्तमान समय मे हम बाजारवाद को बाजार समझ बैठने की भूल समझ बैठे है,बाजार मतलब वो स्थान जहाँ हमे हमारे जरूरतों की चीज खरीदते है और बाजारबाद मतलब चीजे बना कर उनकी जरूरत महसूस कराई जाती है,साधारण सब्दो में इसे "मार्केटिज़्म"कहा जाता है,जहां बाजार का मतलब सिर्फ जरूरते पूरा करना है वहा बाजारवाद का मतलब जरूरते creat करना है,और ये बाजार जब से बाजारवाद बन गया है तब से जीवन मुश्किल हो गया है,बेवजह आपाधापी ,भागदौड़ बढ़ गयी है,

बहुराष्ट्रीय कम्पनियो में एक खासियत होती है उनके व्यापार का एक ही तरीका है किसी भी तरह से अपना प्रोड्कट बेचना,और इसके लिए वो हर विधा में पारंगत है,और आज कल  अपना सामान बेचने के लिए उन्होंने आम जनमानस पे भावनात्मक अत्याचार (इमोशनल ब्लैकमेलिंग) शुरू कर दी है,नए नए प्रोडक्ट को सोशल स्टेटस के प्रतीक से जोड़कर,अनचाहे फ़ूड सप्पलीमेंट को बच्चो के स्वास्थ्य एवं सफलता से जोड़कर,या अनचाहे समान को जिंदगी के आराम से जोड़कर अपने प्रोडक्ट को धड़ल्ले से बेच रहे है हमे लग रहा है कि हमे उस सभी प्रोडक्ट की आवष्यकता है लेकिन असल मे हमे उनकी आवश्यकताएं महसूस करा कर उन्हें खरीदने को विवश किया जा रहा है,

इसी बात को एक उदाहरण से समझते हैं,ओडोनिल का जो कि बाथरूम फ्रेशनर है,इस विज्ञापन में दिखाया जाता है कि जिस घर के बाथरूम में आडॉनील नही है उस घर का स्टेटस बेकार है,कॉम्प्लान और होर्लिक्स के विज्ञापन में दिखाया जाता है कि जो बच्चे ये नही पीते उनका विकाश सही ढंग से नही होता,बिना फेयर एन्ड लवली लगाए आप गोरा नही होंगे और इसके बिना लड़कियों को नौकरी नही मिलती,एक खास कंपनी का डीओ लगाने से लडकिया पटती है,रजनीगंधा खाने पर आप सफल बिज़नसमेन बनते है,बिना केंट प्यूरीफायर के पानी पिये हम बीमार हो जाते है,सॉफ्टड्रिंक्स पीने से हम कूल नजर आते है,उदाहरण हजारो है,उपरोक्त  बाते पढने में  बेतुकी लगती है लेकिन जब बड़े बड़े सितारे एक मोटी फीस लेकर उपरोक्त बाते हमारे मनपसनद टी वी चैनलो पर  बार बार दोहराते है तो ये बात हमे सच प्रतीत होने लगती है और फिर सुरु होती है बाजारवाद की दोहन प्रक्रिया,

हम भौतिकतावाद की दौड़ में धनमशीन बन जाते है और फिर धीरे धीरे मन मे ये बात घर करने लगती है कि बिना धन के जीवन बेकार है जबकि ऐसा नही है जीवन मे हमारी खुशिया वस्तुओ से नही है बल्कि लोगो से है,"दुनिया मे लोग प्यार करने के लिए है और वस्तुए उपयोग करने के लिए,लेकिन भौतिकतावाद और बाजार बाद के बहकावे में हम बस्तुओं से प्यार करते है और व्यक्तियों का उपयोग करते है,"

लगभग हर इंसान की मासिक आय विगत 10 वर्षों में लगभग दुगुनी हुई है और आप किसी भी वस्तु की कीमत देख लीजिए विगत 10 वर्षों में दुगुनी नही हुई है,लेकिन फिर भी हर आदमी आर्थिक तंगी से गुजर रहा है तो सिर्फ इसलिए कि हमारे खर्चो का दायरा बढ़ गया है,बाजार बाद ने हमे सोशल स्टेटस के चक्रव्यूह में कुछ ऐसा घेर लिया है कि हम इसमे अभिमन्यु बनकर रह गए है,अभी भी संभाल जाइये,इस बाजारवाद से सावधान रहिये,

वरना आप की हालात क्या होगी इस पर मुझे विश्व के सबसे बड़े निवेशक वारेन बुफे की एक बात याद आती है कि
"अगर आप उन चीजों को खरीदना नही छोड़ेंगे जिनकी आप को आवश्यकता नही है तो जल्द ही आपको वो सभी चीजें बेचनी पड़ेगी जिनकी आपको बहुत ज्यादा आवश्यकता है

धन्यवाद

No comments:

Post a Comment

आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,