लाइफ मंत्रा: धर्म सिर्फ आध्यत्म की ही नही प्रेरणा की भी विषयवस्तु है
आज कल सोशल मीडिया में मोटिवशनल स्पीकेरो की भीड़ है,हर दूसरी या चौथी पोस्ट एक मोटिवेसनल वीडियो,या कोई प्ररेणादायक कविता,या कोई फ़ोटो है,ये सब फ़ोटो वीडियो और कोटेसन बहुत पसंद भी किये जाते है क्योंकि आज कल हर कोई एक निराशा के दौर से गुजर रहा है,बढ़ते भौतिकतावाद के दबाव के कारण हमने अपने आप को और अपने जीवन शैली को बहुत जटिल कर लिया है,और इसलिए हर दूसरा आदमी डिप्रेसन से ग्रस्त है और ये सभी मोटिवेसन इस डिप्रेसन से बाहर आने के लिए वक्ती तौर पर काफी सहायता करते है,हम ये सब वीडियो देखकर खुद को हौसला देते है और काफी रिलेक्स फील करते है,लेकिन क्या कभी सोचा है कि दुनिया का सबसे पहला मोटिवेशनल लेक्चर कौन सा था??,दुनिया का सबसे पहला सक्सेस लिटरेचर कौन सा था,??इस सवाल का जवाब आपको गर्व महसूस कराणे के साथ साथ आप का मोटिवेसन के प्रति नजरिया भी बदल देगा,
आपका सोचना सही है ,विश्व का सबसे पहला। सक्सेस लिटरेचर *श्रीमद भगवत गीता* है,लेकीन कभी हमारा इस और ध्यान ही नही गया,असल मे आज कल हम पश्चिमी शिक्षा पद्धति"मैकाल सिस्टम" का अनुसरण कर रहे है जिसमें भारतीय संस्कृति एवं धार्मिंक मान्यताओं की जगह नगण्य है,यहा सनातन धार्मिक ग्रंथो को सिर्फ आध्यत्म का विषय बनाया गया है,जबकि असल मे ये धार्मिक ग्रन्थ एक आदर्श जीवन शैली के लिए प्रेरित करते है,हमारा सनातन साहित्य ऐसा है कि हर समस्या का समाधान इसमे है,हर प्रकार की विधाओं के भविष्य के लिए कल्पना शक्ति है,हर तरह के विज्ञान के सूत्र है,लेकिन ये विडंबना है हमारी गलत शिक्षा प्रणाली के कारण हमारे ग्रन्थ एवं उपनिषद हमे सिर्फ कोरी कल्पना मात्र लगते है जबकि विश्व के लगभग सभी प्रसिद्ध आविष्कार किं कल्पना हमारे ग्रन्थों ने हजारो वर्ष पूर्व ही कर ली थी जब कि बाकी सभी संस्कृतियां अभी अपने शैशव काल मे ही थी,
इस बात को कुछ उदाहरण दे कर आप के समक्ष रखना चाहूंगा,भारतीय संस्कृति में भगवान के दशावतारों को हम काल्पनिक एवं कोरी गप्प बताते है जबकि अगर इस पर ध्यान दे तो आप पाएंगे कि यही थ्योर्री डार्विन के क्रमिक वंशवाद के विकास की थ्योरी की नींव है,की कैसे मानव सभ्यता का पानी से आविष्कार हुआ और क्रमशः विकाश होता हुआ कलयुग(कल मतलब मशीन युग) मे आया,
रामायण काल मे पुष्पक विमान की कल्पना आज के जम्बो बोइंग जेट की नींव है,इसे हमने कहानी बताया लेकिन विदेशियों ने इससे प्रेरणा ली,समुद्र पार पत्त्थर के सेतु आज हर बड़ी परियोजना की नींव है,
महाभारत काल मे जब कुरुक्षेत्र के युद्ध का विवरण जब संजय हस्तिनापुर में बैठकर अन्धे धृतराष्ट्र को सूनाते है तो यही आज के लाइव टेलिकास्ट के लिए प्रेरणा है,मगर हम इसे सिर्फ काल्पनिकता के लिहाज से लेते है,
आगे चलकर महाकवि कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत लिखा जिसमे एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को बादलो में अपना संदेश लिख कर भेजता है और हम इसे पढ़कर अपने पूर्वज कवियो की कल्पना का मजाक उड़ाते है जबकि इसी तकनीक को गंभीरता से ले कर अगर हम प्रेरित हुए होते तो आज व्हाट्सएप्प,फेसबुक,क्लाउड टेक्निक सब भारत की देन होता,लेकिन हम पर पश्चिमी करण इतना हावी है कि आज कल समस्याओ में हमे सुपर मैन और स्पाइडर मैन याद आते है हनु मैन(मान) नही,
ये बात सत्य है कि हमने अपने धर्मगनाथो को सिर्फ आध्यत्मिक दृष्टि से पढ़ा है कभी प्रेरणात्मक दृष्टि से नही पढ़ा है,कभी हनुमान चालिशा को पढ़ कर संमझ कर देखिये,हमें शास्त्रों में संकट में हनुमान चालीसा पढ़ने को कहा गया है तो इसलिए नही की किसी भी संकट में हनुमान जी आकार हामारे संकट दूर करेगे,बल्कि इसलिए कहा गया है कि हनुमान चालिसा से प्रभावित होकर हम स्वयं ये याद करेंगे कि किनसे संकट के समय हनुमान जी ने अपनी बिसरी हुई शक्ति को एकत्रित किया और फिर अपनी स्वयं की शक्ति से सौ योजन का समुद्र लांध गए,ये है प्रेरणा,
रामचरित मानस में जो श्रींराम का चरित्र है आदर्श है,इससे सिर्फ रामभक्ति नाहींश्री राम के आदर्शो को सीखिये की कैसे जंगलो में 14 वर्ष तकलीफ पाने के बाद ही प्रभु श्री राम *मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम* हुए,श्री राम से धैर्य सीखिये की विपत्ति में कैसे धैर्य रखा जाता है,
महाभारत काल मे श्री कृष्ण का चरित्र तो भारतीय संस्कृति की अतुलनीय चरित्र है जो बांसुरी भी बजाता है और सुदर्शन चक्र भी चलाता है,श्री कृष्ण का चरित्र किशोरवस्था में पवित्र प्रेम सिखाता है तो महाभारत के युद्ध मे गीता का ज्ञान देता है,
भारतीय ग्रंथ एवं धर्म ग्रहणीय एवं पठनीय है इसलिए नही किए सभी धार्मिक मान्यताओं से जुड़े है बल्कि इसलिए पठनीय है क्योंकि ये दैन्यदिनी जीवन के हर क्षेत्र में हमारे लिए प्रेरणात्मक है
आपके आम जीवन के हर समस्या का हल हमारे पुराणों मे धर्म मे है बस इसे एक बार ठीक से पढ़ने की और समझने की आवश्यकता है,हमारा धर्म और संस्कृति सिर्फ आध्यात्मिक ही नही बल्कि वैज्ञानिक और तार्किक भी है,इस बात को जिस दिन हम समझकर अपने धर्म को सिर्फ कोरी कल्पना न समझ कर एक प्रेरणादायक ग्रंथ के रूप में लेंगे उस दिन हमारी शिक्षा का स्तर सही मायने में बढ़ जाएगा,अपनी सोच का दायरा बढाइये,अपने धर्मग्रन्थो की और वापस आईये,
क्योकि
कमजोर हो नीव तो किला ध्वस्त हो जाता है,
गलत हो दिशाएं तो हौसला पस्त हो जाता है,
जरा बच कर रहिये पश्चिमी सभ्यता से
सूरज पश्चित में जाकर अस्त हो जाता है,
धन्यवाद
विकाश खेमका
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