Tuesday, 21 May 2019

चुनाव 2019: एक विश्लेषण

विश्लेषण : आम चुनाव 2019

साधारणतः मेरी छवि एक "भक्त" की है मगर फिर भी राजनीतिक निरपेक्षता की कोशिश करते हुए एक निष्पक्ष विश्लेषण की कोशिश की है,

आम चुनाव 2019 खत्म हो गया,अब सिर्फ एग्जिट पोल के जरिये ये कयास लगाए जा रहे है कि 23 मई को कौन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठेगा,ये चुनाव बहुत मायने में ऐतिहासिक रहा,नेताओ की बदजुबानी अपने चरम सीमा पर रही,राजनीति का स्तर रसातल से और नीचे गिर कर नित नए नए आयाम रच रहा है,इस चुनाव में बाकी चुनाव
के विपरीत मुख्य मुद्दा भ्रष्ट्राचार,रोजगार,महगाई,बिजली ,पानी,अपराध,या भूख नही थी,ये चुनाव सिर्फ एक ही मुद्दे पर लड़ा गया,सभी पार्टियों का एक कॉमन एजेंडा था,भाजपा का एजेंडा मोदी,कांग्रेस का भी मोदी,महागठबन्धन का भी मोदी,और देशकी मीडिया का मुद्दा भी मोदी, अब इसे लोकतंत्र की विडंबना ही कहा जाए कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावी मुद्दा सिर्फ एक व्यक्ति है,पूरा चुनाव मोदी केंद्रित रहा,ऐसे लगा कि जैसे देश मे समस्या बेरोजगारी,भुखमरी और महगाई नही बल्कि मोदी है,

हर पार्टी ने अपने अपने ढंग से,अपने अपने स्तर पर अपनी और से अपने प्रचार के लिए पूरी ताकत झोंक दी,कई समीकरण बदले,कई पुराने दुश्मनो ने अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए अपनी पुरानी रंजिश को राजनीतिक महत्वाकांक्षा की सूली पर चढ़ा दिया,एक बात हमेशा की तरह और ज्यादा स्पस्ट हो गयी कि राजनीति का सिर्फ एक ही उसूल है कि इसका कोई उसूल ही नही है,

इस बार के चुनाव को निष्पक्ष ढंग से निपटने के लिए चुनाव आयोग की तारीफ की जानी चाहिए,विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनाव अगर शांतिपूर्ण ढंग से(बंगाल की छिटपुट हिंसक घटनाओं को छोड़ कर) निपट जाना एक ऐतिहासिक सफलता है,लेकिन इतने भीषण प्रचार और वोट की अपील के बाद भी वोट प्रतिशत का न बढ़ना इस बात का प्रतीक है कि इस वृहदतम गणतंत्र में लोग देश के प्रति बिल्कुल भी गंभीर नही है,उनका देश के प्रति प्यार सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित है,

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ  मीडिया के लिए चुनाव ठीक उतना ही मतत्व पूर्ण है,जितना स्पोर्ट्स चेनल के लिए क्रिकेट और फुटबाल का वर्ल्डकप, ये सिर्फ इसलिए चुनाव को गंभीरता से लेते है क्योंकि ये उनकी trp बढाता है,पार्टियों के एजेंडे की तरह यहां भी मुख्य मद्दे गायब नजर आए,

इस बार के चुनाव के मुख्य बिंदु मोदी,नेताओ की भाषा का गिरता स्तर, और evm की निष्पक्षता रहे,जुबानी जंग देश के शीर्ष नेतृत्व को चोर कहने से शुरु हुई और धर्म,जाति, महिलाओं के अंतःवस्त्रों के रंग से होती हुई दिवंगत आत्माओ के अपमान तक चली,कई पुराने दंगो की कब्रे खोदी गयी,देश को जाति धर्म और क्षेत्र के आधार के नाम पर बाट कर अपने लिए वोट हासिल करने की भरपूर कोशिश की गई,देश के टैक्स पेयर्स के गाढ़ी मेहनत की कमाई को मुफ्त में बाटने के वादे किए गए,सभी पार्टिया लोकलुभावन वादे करते नजर आयी,इस बार चुनाव में हिंदुत्व का मुद्दा  हावी रहा,सभी पार्टियां रमजान का महीना होने के बावजूद जालीदार टोपी पहनने से बचती रही,जातीय समीकरणो से ज्यादा धार्मिक समिकरनों को तरजीह दी गयी,

सोशल मीडिया ने इस चुनाव में बहुत अहम रोल अदा किया अगर ये कहा जाए कि इस बार चुनाव सॉशल मीडिया पर लड़े गये तो कोई अतिशयोक्ति न होगी, राष्ट्रवाद और देशद्रोह के नारों के बीच आम जनता के बुनियादी मुद्दे गुमनामी की मौत मर गए,इस बार का चुनाव इन सिद्धान्तों पर लड़ा गया कि जीत ही सब कुछ है और अपने आप को जस्टीफ़ाइड कर देती है,

इस बार चुनाव कोई भी जीते लोकतंत्र का हारना तो तय है,इस चुनाव के नातीजो पर पद्मश्री सुरेद्र शर्मा की कुछ पंक्तिया या आती है,

" इससे कोई फर्क नही पड़ता कि राजा रावन बने या राम,
जनता तो सीता है राजा रावण हुआ तो  हर ली जाएगी,राजा राम हुआ तो फिर से अग्नि परिषा के लिए अग्नि में झोंक दी जाएगी,

इससे कोई फर्क नही पड़ता कि राजा कौरव बने या पांडव,
जनता तो द्रौपती है राजा कौरव हुए तो भरे दरबार मे चीरहरण कर लिया जाएगा,
राजा पाण्डव हुए तो जुए में हार दी जाएगी,

और इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि राजा हिन्दू बने या मुस्लिम
जनता तो लाश है हिन्दू बना तो जला दी जाएगी,
मुस्लिम बना तो दफना दी जाएगी,

चुनाव का नतीजा चाहे जो भी हो आपको कल भी कुछ  पिछड़े,मुफ्तखोर और कथित गरीबो के लिए कमाना था,अब भी कमाना है,सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकलते रहिये क्योकि यही वो एंटीडोट है जो आपकी मन कि भड़ास निकलता है,

जय हिंद
जय भारत,

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आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,