Tuesday, 31 May 2016

लाइफ मंत्रा : छोटी छोटी बातो से बड़ी बड़ी सफलता

थोड़ा बड़ा लेख है, मगर पढ कर दिल को न छुए तो कहना..

*छोटी छोटी बाते vs बड़ी बड़ी सफलता*

कुछ बड़ा करने के लिए कुछ बड़ा नहीं करना पड़ता बस कई छोटी छोटी बातो पर सुधार करना होता है, यहि छोटी छोटी बाते निर्धारित करती है की हम कितनी बड़ी सफलता पा सकते है,

एक बड़ा घर बनाने के लिए छोटी छोटी ईंटो को जोड़ना पड़ता है, एक 1000 किलोमीटर का सफर भी एक छोटे से कदम से ही सुरु होता है,
एक अपार समपत्ति का आधार भी छोटी छोटी बचत होती है, ये वो छोटी छोटी बाते है जो ये निर्णय करती है की हमारी सफलता कितनी बड़ी होगी,इन छोटी छोटी बातो को सही ढंग से पालन हमें बड़ा बनाता है, और इन छोटी छोटी बातो को सहीं ढंग से करना कोई छोटी बात नहीं,इस के लिए रोजमर्रा की जिंदगी में रोज कई त्याग करने पड़ते है,

अगर आप अच्छा स्वास्थ्य चा्हते है तो आप को रोज अपनी नींद और आलस का त्याग करके सुबह उठ कर योग,व्यायाम इत्यादि करना पड़ता है,

अगर आप लोगो से अच्छे सम्बन्ध चाहते है तो छोटी छोटी बातो को भूलना पड़ता है,

अगर आप अच्छा व्यापार चाहते है तो व्यापार के छोटे छोटे सूत्रो को ध्यान रखना पड़ता है,

अगर आप सामजिक संगठनो में सफलता और नेतृतव् चाहते है तो रोज आपको अपना थोड़ा सा समय और समर्पण इनको देना पड़ता है,

ये छोटी छोटी बाते हमारी आदत्त का निर्माण करती है की हमने अपने आप को किस चीज के लिए अभ्यस्त किया है, और यही अभ्यास अगर सही दिशा  में किया गया हो तो सफलता की और जाता है ,गलत किया गया हो तो असफलता की और,

निरंतरता  और अनुशाशन वो हथियार है जो अक्सर अपने से कई गुना बड़े और मजबूत चीजो को हरा सकता है, जिस पथ्थर को फोड़ने में बड़े से पड़े लोहे के हथियार काम नहीं करते उन्हें पानी की निरंतर धारा चूर चूर कर देती है,ये शक्ति है निरन्तरता की,

हम अकसर कई छोटे छोटे कार्य ये सोच कर छोड़ देते है की इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता,लेकिन ऐसा नहीं है,फर्क पड़ता है लेकिन वो हमें महसूस नहीं होता, एक पत्थर को तोड़ने के लिए उस पर हथौड़ी से सौ बार प्रहार किया गया,जब उस पर सौवीं बार प्रहार किया गया तो पथ्थर टूट गया तो इसका मतलब ये नहीं की पथ्थर को तोड़ने के लिए श्रेय सिर्फ उस सौवीं चोट को जाता है,हर चोट का  इसमें सामान योगदान है,हर एक चोट के साथ साथ पत्थर कमजोर होता गया और अंतिम चोट में वो टूट गया, पत्थर की जगह अपने जीवन की रुकावट को रखे और चोट की जगह प्रयासों को, और निरन्तरता बनाये रखे, अकसर हम रुकावट पर कोई फर्क न पड़ता देख अपने प्रयास बंद कर देते है,

आधे अधूरे मन से किये गए प्रयास,आधे समय तक किये गए प्रयास ,आधी सफलता  नहीं लाते बल्कि पूरी असफलता लाते है,धान की एक फसल को पकने के लिए 45 दिन का समय चाहिए अगर हम 25 दिनों में उसको निकाल देते है तो हमें आधी फसल नहीं मिलेगी ,बल्कि हमारा हासिल शून्य होगा,
हर चीज के लिए वक्त तय है,उतना तो सब्र करना पडेगा, अगर आप का लक्ष्य और उसके लिए प्रयास सही है तो आप निरन्तरता बनाये रखे सफलता आपका इन्तेजार कर रही है,

अक्सर हमांरे पास अपनी असफलताओ के लिए बहुत ही शानदार बहाने होते है,की
मैं अकेला था,
मैं गरीब था,
मैं नहीं जानता था,
इत्यादि..
दुसरो के साथ साथ हम अपने आप को भी इस चीज का विश्वास दिलाने की कोशिश करते है की हमारी असफलता में भाग्य का ज्यादा रोल है प्रयासो में कोई कमी नहीं थी,
मगर कभी शांत मन से बैठ कर सोचिये की सही क्या है,
आज आपको अपने आस पास ही कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जिनके पास आप से कंही कम संसाधन थे, कम।मौके थे,वे आपसे बुरी परिस्थिति में थे,मगर आज आपसे मिलो आगे है,सिर्फ इसलिए नहीं की उनका भाग्य आपसे अच्छा था ,इस्लिये क्योकि उनका प्रयस आपसे अच्छा था, दिल से था,निरन्तर था,

कुछ बड़ा करने के लिए छोटी छोटी बातो को सुधारिये,
बहुत फर्क पड़ता है आपके स्वास्थ्य जब आप शारीर के लिए रोज 5 मिनट अतिरिक्त देते है,

बहुत फर्क लड़ता है आप आप की आर्थिक परिस्थिति पर जब अपने सेविंग्स पर 5% अतिरिक्त जमा करते है,

बहुत फर्क पड़ता है आपके व्याअपर पर जब आप आप अपने व्यापार पर थोडा अतिरिक्त ध्यान देते है,

बहुत फर्क पड़ता है जब  आपके सामाजिक प्रतिष्ठा पर जब आप समाज के लिए  थोड़ी अतिररिक्त सोच रकते है,

हर छोटा सा प्रयास अगर निरन्तर किया जाए तो एक बड़ी सफलता ला सकता है,

किसी दौड़ में प्रथम और द्वितीय स्थान में आने वाले प्रतोयोगीई के बिच एक छोटा सा 1 या 2 सेकेण्ड का फर्क होता है, यही फर्क होता है एक जितने वाले और हारने वाले में, कुछ थोडा सा थी फर्क होता है, जो अपने छोटे से प्रयासों से हम ये फर्क दूर कार सकते है,

छोटी बाते ही बड़ा बनाती है,
तो आईए इन छोटी छोटी।बातो में सुधार करे,एक बेहतर जीवन के लिये,
एक बेहतर समाज के लिए,एक बेहतर  देश के लिए,

ताकि हम हमेशा छोटे न रहे,

धन्यवाद
विकाश खेमका

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vikashkhemka/blogspot.com

Monday, 30 May 2016

अपनी तरफ लोगो का ध्यान आकर्षित कैसे करे

लोगो का अपनी और  ध्यान आकर्षण करने का मनोवैज्ञानिक तथ्य

मानव स्वभाव  और विज्ञान के अनुसार मानव का मस्तिष्क हर चीज में नकारात्मकता पहले खोजता है, किसी की भी खूबी से पहले उसकी कमी नजर आ जाती है, हमारा दिमाग ऐसे प्लान किया हुआ है की हम सभी अपने आप को हमेशा कुछ ऊंचा समझते है,आप कंही भी जाइए आप के दिमाग में हमेशा ये होता है की आप दुसरो से बेहतर है इस बात को साबित करने के लिए हम हर चीज में कुछ न कुछ गलती निकालने की कोशिश करते है,ये एक प्रमाणित तथ्य है,
उदाहरण के तौर पर अगर एक बड़े व्हाइट पेपर पर  हम एक छोटा सा काला डॉट लगा कर पूछे की आपको क्या नजर आ रहा है, तो हर कोई कहेगा कहेगा की काला डॉट,कोई नहीं कहेगा की वाइट पेपर,
इंसान नकारात्मकता तलाशता है,लोग हमारी अच्छी बातो या चीजो की तरफ ध्यान देते है सिर्फ इसलिए की उसमे कमी खोज सके,

तो लोगो के ध्यान आकर्षण पाने का एक बहुत अच्छा तरीका है की अपने प्रेसेंटशन में,अपनी बातो में,अपने तथ्यों में ,थोड़ी सी गलती रखे, अगर सामने वाला उसे करेक्ट करने का प्रयास करता है यो इसका मतलब वो आप पर ध्यान दे रहा है,आप के ऊपर उसका अटेंशन है,

और अगर वो आपकी हर गलती इग्नूर करता है तो इसका दो मतलब हो सकता है या तो उसका आपमें और आपकी बातो में कोई इंट्रेस्ट नहीं है या फिर उसका दिमाग इतना शक्षम नहीं है की ये सब कर सके,

इन दोनों सूरतो में आपको अपनी बात ,प्रेजेंटेशन,रोकना चाहिए क्योकि इसका नतीजा शून्य है,

धन्यवाद,

# मनोविज्ञानिक तथ्य : मानव स्वभाव/नकरात्मक आकर्षण,

विकाश खेमका

क़ानूनी भ्रस्टाचार

कानूनी भ्रस्टाचार

भ्रस्टाचार कानूनन अपराध है,
इसका मतलब होता है अपने पद,या शक्ति का दुरूपयोग कर किसी व्यक्ति,कंपनी,संस्था या परिवार विशेष के हित में लाभ पहुछाना और उसके एवज में कुछ लाभ लेना,

इससे देश को धन की हानि होती है, निर्माण या जिस कार्यो में भ्रस्टाचार होता है उसकी गुणवता घटती है,साधारण सब्दो में भ्रस्टाचार अपने व्यक्तिगत लाभ क लीेये किसी को नियमो में छुट देना है,

मैं आपके सामने इस इस गैरकानूनी नहीं बल्कि कानुनी रूप से हो रहे भ्रस्टाचार की कुछ दलील रख रहा हु,

सरकार देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए कानून बनाती है, और कानून भी अपनी मर्जी से,आज सरकार के हिसाब से कुछ सबी लगता है तो वो क़ानूनी,और सरकार को कुछ गकत लगता है तो गैरकानूनी, देश में कुछ लोगो की मर्जी के ऊपर जब सुप्रीम कोर्ट का ठप्पा लग जाता है तो उसे कानून कहते है, देश के विकाश के लिए पैसा चाहिए तो टैक्स के रूप में माध्यम और आमवर्ग जो राशि देता है ,इस पैसे न उपयोग सएकार को नियम के हिसाब से देश के विकास कार्यो में लगाना चाइये,मगर सरकार उस पैसे से अपना वोट बैंक खरीदती है,लोक लुभावन बजट बनाती है, मुफ़्त में चीजे देती है सर्फ इसलिए की जो गरीब और अशिक्षित तबका है वो सरकार से खुश रहे,और वोट उन्ही को दे,
क्या ये कानूनी भ्रस्टाचार नहीं है,

जहा सरकार अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए सरकारी पैसे,बल्कि जनता के पैसे का दुरूपयोग कर रही है,अपने अधिकरों का दुप्पयोग कर रही है,

बस इस भ्रस्टाचार को क़ानूनी जामा पहना दिया गया है, जिस पैसे को सरकार देश के विकाश के नाम पर लेती है उसे क्यों फिजूलखर्च करती है,
स्कूल बनाओ सही है, हूस्पिटल खोलो सही है मगर लोगो को खाना,रहना मुफ़्त में  दे कर वो जनता को कामचोर बना रही है,

राजंनिति का एक प्राथमिक  सूत्र है की किसी की भी समस्या पूरी तरह हल मत करो ,क्योकि समाधान हो जाने के बाद लोग तुम्हे भूल जाएंगे,सिर्फ उनकी समस्याओं को मुद्दा बनाओ ताकि वो रोज तुम्हारे पास आये,रोये,गिड़गिड़ाए,उन्हें बस आस्वाशन दो,

जितने पैसा सरकार मुफ़्त की चीजे बाटने में खर्च करती है उतनेपैसा  में एक साल में इतने रोजगार पैदा हो सकता  है की कोई  भूखा न मरे,हर किसी को काम मिल जाएगा
मगर अपने स्वार्थ की खातिर ये कानूनी भ्रस्टाचार जारी है,

मेरा ये लेख पढ़कर कई लोग मुझे गरीब विरोधी कह सकते है,मगर सोच कर देखिये सरकार के पैसे सरकार के पैसे नहीं आपके खून पसीने की कमाई है, अगर देश की किसी भी पार्टी को गरीबो की इतनी ही फ़िक्र है तो अपने पार्टिफण्ड से ये सब कर के दिखाए,

नहीं ऐसा नहीं होगा,हम है न ,सरकारी खजाना भरने के लिए,सरकार को माले-मुफ़्त मिल रहा है और वो दिले-बेरहम हो रही है,

और ये क़ानूनी भ्रस्टाचार बदस्तूर जारी है,

सभी टैक्स भरने वालो को समर्पित..✍🏻
विकाश खेमका

हर समस्या का अलग समाधान है

एक प्रसिद्ध गणितज्ञ थे जिनकी गणित और ज्ञान की ख्याति की बहुत चर्चा थी,
एक बार उन्हें एक स्कूल पिकनिक की जिममेदारी दी गई, गणितज्ञ ने भी अपनी पूरी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हये बहुत बढ़िया संयोजन किया,

जब छात्रो के खाने की व्यवस्था की बात आई तो उन्होंने हिसाब लगया की कुल संख्या का हिसाब लगाया, ये अनुमान लगाया की एक एक छात्र की औसत खुराक कितनी है ,उस हिसाब से गुना भाग किया और उतने खाने की व्यवस्था की ,और उनके इस प्रयास से खाना  की बहुत ही सूंदर व्यवस्था हुई और सभी को प्रयाप्त खाना मिला,

ऐसा ही गणित उन्होंने छात्रो की रहने की व्यवस्था का भी लगाया और अपना गुना भाग करके लगाया और सभी छात्रो के लिए रहने की पर्याप्त और उपयुक्य् व्यवस्था की,

इन सभी अच्छे संयोजन से  गणितज्ञ की बहुत प्रशंशा हुई, गणितज्ञ को भी अपने ज्ञान और कौशल पर गर्व हुआ,

पिकनिक के दौरान  रस्ते में एक नाला पड़ा, जिसमे पानी भरा था,  अब समस्या थी की हर कोई उसकी गंभीरता के बारे में अनजान था तो उस पानी से भरे नाले को पार कैसे किया जाए,

सभी बच्चों की उम्मीद अब अपने  गणितज्ञ से थी, गणितञ ने फिर से इस बार सभी अपना दायित्व समझते हुए अपना प्रयास शुरू किया, उन्होंने एक पेड़ की शाखा तोड़ी  उस नाले के पास गए उन्होंने उस शाखा को पानी में डुबाया, उसकी गहराई नोट की फिर थोड़ा आगे बढ़ाकर गहराई नोट की, वहा पानी कुछ ज्यादा गहरा था, ऐसे ही 4-5 जगह उन्होंने गहराई नोट की,

फिर वो वापस आये ,सब छात्रो को एक लाइन से खड़ा किया और उनकी ऊंचाई नोट की,

उसके बाद अपना कुछ हिसाब किताब लगाया और बड़े उत्साह से बोले की हम बड़ी आसानी से नाला पार कर सकते है,

सभी छात्र उनके पीछे हो लिए,
लेकिन ये क्या कुछ ही दूर जाकर कुछ छात्र पानी में डूबने लगे,
बड़ी मुश्किल से उन्हें बचाया गया,

जैसे तैसे इसके बाद व्यवस्था कर के सबको अपने घर तक पहुचाया गया,

पिकनिक के बाद स्कूल मैनजमेंट ने उस गणितञ को बुलाया और पूछा की आपने किस हिसाब से छात्रो के जीवन को इतने संकट में डाला, जब आपको गहराई का अंदाज नहीं था,तो छात्रो को नाला पार करवाने की क्या आवश्यकता थी,

गणितज्ञ ने बड़े ही  आश्चर्य से कहा, यही बात तो मेरे समझ से भी बहार है मेरा गणित का अनुमान आज तक कभी फेल नहीं हुआ ,मैंने पिकनिक के लिए खाने ,रहने की व्यवस्था भी अपने गणित के आंकलन के आधार पर की थी वो सभी सही थे, क्या पता आज कैसे हो गया,आज मेरा गणित कैसे फ़ैल हो गया ??

सबने उनके अनुमान का आधार पूछा
गणितज्ञ ने बताया-
मैंने विबिन्न जगहों पर पानी की गहराई नापी कंही 3 फ़ीट  कंही 5 फ़ीट कंही 5 फ़ीट कंही  6 फ़ीट थी
जिसका पानी की गहराई का औसत 4.5 फ़ीट हुआ,

फिर मैने छात्रो की ऊंचाई नापी जो औसत में 5.5 फ़ीट थी,
दोनों में लगभग 1 फ़ीट का अंतर था उस हिसाब से हमें ये नाला पार कर लेना था,

सभी स्कुल मैनेजमेंट के लोगो ने अपना माथा पिट लिया,

मोरल- हर समस्या के लिए एक समाधान नहीं ही सकता, एक ही थ्योरी जिंदगी के हर क्षेत्र में कम नहीं आती,व्यवाहारिक ज्ञान अंनुभव किसी भी किताबी ज्ञान से बड़ा है,
आप की एक बात किसी को अच्छी लग सकती है तो किसी को खराब, एक ही बात आज किसी को पसंद आ सकती ही कल नापसन्द, परिस्थिति के साथ हर इंसान का  स्वाभाव और दिमाग बदलता रहता  है, एक लॉजिक हर इंसान पर ,या हर समय एक इंसान पर काम नहीं करता,

एक दम सही या एक दम गलत सिर्फ गणित में होता है जिंदगी में नहीं,

समाधान ,समस्या और परिस्थितियों को देखकर तय कीजिये अपने लॉजिक को देखकर नहीं,

धन्यवाद,