Friday, 18 January 2019

लाइफ मंत्रा: 10 years challenge

बहुत दिनों बाद एक लेख लिखा है,जो की ये महसूस हो रहा है कि दिल से निकला है और सिर्फ मेरे ही नहीं मेरे हमउम्र लोगो की मन की बात है

लाइफ मंत्रा: #10yearchallenge

आज कल सोशल मीडिया में एक मुहीम छाई हुई है जिसे #10 years chaalenge के नाम से सोसल मीडिया में ट्रेंड किया जा रहा है,इस चेलेंज में कई सेलेब्रेटी अपनी करंट और 10 साल पुरानी फोटो डाल रहे है और दूसरों को भी ऐसा करने को कह रहे है,इस तरह की खबरों को मैं एक पब्लिसिटी स्टंट और " चुतियापा" के अलावा कुछ नही मानता  और ऐसे चूतियापे में पार्टिसिपेट करने का न ही कोई मूड है लेकिन इस #10 years challenge ने मुझे एक बात को सोचने पर विवश किया की इन दस सालों में मैं फिसिकली नहीं बल्कि मेंटली कितना बदल गया हूं,

और ये बात काफी इंटरस्टिंग लगी और लगा जो चेंग इन 10 सालो में मुझमे आया है लगभग वही चेंज मेरे आयु वर्ग के मेरे सभी साथियों में भी आया है,10 साल पहले एक इंडिपेंडेंट लाइफ जीने वाला व्यक्ति आज बहुत से जिम्मेदारियो का गुलाम है,वक्त बेवक्त जबरजस्ती ठहाके लगाने वाले व्यक्ति को आज कल हसंने के लिए एक वजह का इंतेजार रहता है,हर बात के पीछे एक कारण चाहिए होता है,चाहे वो फॅमिली गेट टुगेथेर के लिए हो या दोस्तों से मिलने के लिए, छोटी छोटी खुशियॉ आज कल खुश नहीं करती,हर पल ये डर रहता है कि कंही कोई गलती न हो जाए जिससे कोई नाराज न हो जाए, किसी से नाराज होने से भी डर लगता है क्योकि क्या पता वो मनाने आये या न आये,न्यू ईयर,वेलेंटाइन,होली,दिवाली कोई भी त्यौहार अब रोमांचित नहीं करते है,ये सब भी आजकल आम दिनों की तरह लगते है,पहले काउंट किया करते  था की मैं कि अगले साल 25 या 26 साल का हो जाऊँगा,अभी नेगीटिव काउंटिंग शुरू है आज कल हिसाब होता है कि और जिंदगी में कितने साल बचे है,

बचपन में पहले पेन्सिल से लिखा जाता है और बड़े होते होते पेन दे दिया जाता है शायद इस लॉजिक के साथ की बचपन में की गयी गलतियां सुधारी जा सकती है मगर बड़े हो जाने पर एक बार जो लिख दिया लिख दिया, पिछले 10 सालों में  पेन्सिल खो गयी है और सारे कर्म पेन से लिखे जैसे हो गए है,गलतियां मार्कर से लिखी पंक्तियों जैसी हो गयी है जो एक बार लिखी गयी तो अमिट हो जाती है, उसे कोई अनदेखा ही नहीं करता,

खुद के लिए खुशी की परिभाषा खुद खुश रहना नहीं बल्कि लोगो को खुश रखना हो गया है,हर काम करने से पहले एक बार सोशल स्टेटस का ध्यान जरूर आता है, एक संघर्षशील युवा से हटकर छवि एक असफल योग्य व्यक्तित्व के रूप से होती जा रही है,

कोई बात पसंद न आये तो उसके लिए प्रतिक्रया देने का तरिका बहुत बदल गया है पहले जहां नापसंदगी की प्रतिक्रिया गुस्सा,रोष और चिल्लाना हुआ करता था अब नापसंदगी पर बस एक हल्की से मुस्कराहट और लम्बी खामोशी ही प्रतिक्रया है, शौक की खातिर कुछ करना बड़ा मेहनत और झुंझलाहट का काम लगता है, अपनी भावनाएं को कहने के लिए आज कल रियल नहीं वर्चुअल दुनिया(सोशल मीडिया) का सहारा लेना पड़ता है,खुश रहने से ज्यादा जरुरी खुश दिखना है क्योकि खुश न दिखने पर फेसबुक में फोटो को लाइक्स ज्यादा नहीं आते, बोलना,चलाना,नाचना,हँसना,पहनना इन सबके लिए अपने आप को शिष्टचार और औपचारिकता के दायरे में बाँध लिया गया है ,हर काम से पहले ये सोचना पड़ता है कि " लोग क्या कहंगे" ,

कुल मिलाकर पहले और आज के 10 सालो में जिंदगी इतनी बदली है कि पहले ये देखा करते थे की हर पल में जिंदगी है, अब ये गिनते है कि जिंदगी में कितने पल है,
आज कल जिंदगी जी नहीं जा रही,बल्कि सिर्फ गुजारी जा रही है,पिछले 10 सालों ने नाम,शोहरत,इज्जत,पहचान तो बहुत दी,मगर इस बात की एक कसक हमेशा रहेगी की पिछले 10 सालो ने मुझसे मेरा बचपना छीन लिया,

अब अपने और अपने हमउम्र लोगो के लिए बस एक ही सलाह है कि

यु गुजरते दिनों के साथ न खुद को शर्मिन्दा रखिये,
अगर बढ़ती उम्र को हराना है तो शौक कुछ ज़िंदा रखिये

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