Monday, 1 October 2018

गांधी जयंती

सभी अंध और मजबूर गांधीवादियों से खेद सहित
गांधी जयंती पर विशेष कविता

महात्मा गांधी जब तक जीवित थे तब तक स्वयं सियासत थे और मरने के बाद एक सियासत का मुद्दा है, ये हर भारतीय राजनितज्ञ की राजनितिक मज़बूरी है कि वो उनके विरोध में नहीं बोल सकता,लेकिन मैं क्योकि राजनितिक निरपेक्ष हु इसलिए आप सभी को सच से सामना अवश्य करवाना चाहूंगा...

कितने झूले थे फ़ासी पर कितनो ने गोली खायी थी,
क्यों झूठ बोलते होसाहेब,की आजादी बस चरखे से आयी थी,

चढ़ गये न जाने कितने फ़ासी पर फिर भी उनके होठ मौन थे,
अगर आजादी बस गांधी लाये थे तो बताओ भगत सिंग कौन थे,

किस अंहिंसा की बात करते हो तुम,तुम्हारे एक निर्णय से सारा देश बरसो तक सिसका था,
ट्रेन भर कर आई थी लाशें,विभाजन पे जो लाखो का खून बहा  था बताओ वो खून  किसका था,

अगर अहिंसा के पुजारी को देश अगर इतना ही प्यारा था,
तो फिर उसने क्यों विभाजन स्वीकारा था,

2 अक्टूबर पर गर्व है मुझको इसलिए नहीं की इस दिन गांधी का जन्म हुआ,
ये महापर्व है क्योकि जय जवान जय किसान कहने वाले शास्त्री जी का अवतरण हुआ

कभी सोचिये, टटोलिये अपने आप को क्या इसी को इन्साफ कहते है,
भारतमाता को विभाजित करने वाले को आज हम देश का बाप कहते है,

विकाश खेमका
कांटाबांजी

No comments:

Post a Comment

आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,