लाइफ मंत्रा: जो अपनें मालिक नहीं बन सकते किसी के नौकर बन जाते है
एक बन्दर को आप अगर 2 केले दिखाये और 100 रुपया का नोट दिखाये तो वो झट से 2 केले ले लेगा,और उस पर टूट पडेगा,क्योकि उसे नहीं मालूम की अगर वो 100 रूपये ले ले तो उससे ऐसे 200 केले ले सकता है,उसे इस बात का ज्ञान नहीं है कि पैसा क्या है,इसका उपयोग क्या है, बस वो ये जानता है कि केले खाने में अच्छे लगते है,उसमे सोचने और समझने की क्षमता ही नहीं है कि कैसे बेहतर चीजो का चुनाव किया जाए,हर बेहतर फैसला लेना मुश्किल होता है और हर कोई सिर्फ आसान रास्ते का चुनाव करना चाहता है
हम में से अधिकतर लोग ऐसे ही पढ़े लिखे काबिल बन्दर है, जो 2 केले (नौकरी) के लिए अपने100 रूपये (व्यापर/ प्रोफेशन) छोड़ देते है, ये बिना सोचे समझे की की इस 2 केले की कितनी बड़ी कीमत आने वाले दिनों में हमे चुकानी पड़ेगी,लेकिन आसान रास्ते की खासियत है कि वो हमें अपनी और खींचता है आकर्षित करता है,खूबसूरत झूठ बदसूरत सच से ज्यादा अच्छा लगता है,
खुद के दम पर काबिलियत को साबित करना बहुत कठिन है,क्योकि इसमें रिस्क बहुत है,कई अनिश्चित्तताये है,हार जाने का खतरा है, और हम लोगों की आदत है कि हम लोग हार जाना नहीं चाहते और हारने से बचने के लिए हम ये आसान रास्ता चुनते है कि लड़ते ही नहीं,ये भूल जाते है कि लड़े तो शायद हार भी जाए लेकिन न लड़े तो हमने मान ही ली है,
हमें नौकरी करना बहुत सेफ लगता है क्योंकि यहाँ हमें एक निश्चिंतता नजर आती है, 8 घंटे काम के बदले कई हजार या की बार कई लाख रूपये हमें बहुत ज्यादा लगते है, हम इस बात का कभी आकलन ही नहीं करते की इन कुछ हजार रुपए के बदले हमें क्या क्या देना पड़ता है,
इन कुछ हजार रुपये के लिए हम सिर्फ अपने 8 घंटे ही नहीं बल्कि अपनी स्वतंत्रता गिरवी रख देते है, हम कब खुश/या उदास होंगे इसका निर्णय हम नहीं हमारा बॉस करने लगता है, जैसे माँ को ठण्ड लगे तो बच्चे को भी स्वेटर पहनना पड़ता है वैसे ही हम हँसे,खुश हो या उदास रहे इसका निर्णय बॉस का मूड करता है,एक सेफ इनकम के एवंज् में हम अपने सपनो को गिरवी रख देते है,अपने बढ़ने की इच्छा को विराम दे देते है,
ऐसा नहीं है कि लोग प्रयास नहीं करते सेल्फ डिपेंडेंट बनने का मगर ज्यादातर लोग इतने कमजोर होते है कि क्षणिक असफलता को अपनी किस्मत मानतेे हुए इस निर्णय पर पहुच जाते है की शायद नौकरी ही उनकी नियति है,
गलती हमारी भी नहीं है हमें बचपन से सिखाया गया है,की अच्छे से पढोगे औरअच्छे मार्क लाओगे तो अच्छी कंपनियां में तुम्हे नौकरी मिलेगी,खुश रहोगे,यहाँ तो खुद माँ बाप हमारे मन में इस बात को घर कराते है कि हमें बड़ा हो कर नौकर ही बनना है, हम खुद अपने बच्चों को नौकर बनाने के लिए पढ़ा रहे है,क्या पता ये विकृत मानसिकता कब जायेगी की 90 % प्लस मार्क्स ही काबिलियत है,जबकि हम दिन रात यही देखते है कि हर टॉपर सिर्फ कंपनी का सी इ ओ है मालिक नहीं,आज भी 8 वी पास लोग देश को कई पढ़े लिखे लोगो से ज्यादा बेहतर ढंग से चला रहा है,
लेकिन हम है कि नौकर ही बनना चाहते है, एक आदमी जो 10 लोगो को नौकरी देने की ताकत रखता है खुद किसी बड़े शहर में जाकर कुछ हजार की नौकरी कर रहा है क्योंकि इसमें उसे आसानी होती है,उसे आजादी महसूस होती है,हम अपनी क्षणिक और भौतिक इच्छाओ को अपने मन मुताबिक़ पूरा करने की आजादी समझते है
असल में हमें संघर्ष करना बड़ा मेहनत वाला काम लगता है,हम को अंधेरो को इतनी आदत पड़ गयी है कि उजाला आँखों को चुभता है,हम बदलना नहीं चाहते,अपने आप को तकलीफ देकर बदलाव करना नहीं चाहते,चाहे वो हमारी भलाई के किये भी क्यों न हो?
हम भूल जाते है कि कुछ हजार की सेफ इनकम के लिए हमें अपना जमीर से समझौता करना पड़ता है, उन बातों पर चुप रहना पड़ता है जो हम जानते है कि गलत है क्योकि नौकरी का पहला उसूल है कि बॉस इस ऑलवेज राईट,नौकरी में सर सिर्फ ऊपर से नीचे हिलाने की आजादी होती है दाए से बाएं नहीं,नौकरी में "यस मेन" बनना पड़ता है,यहाँ सही नही बल्कि मालिक का पसंदीदा काम करना पड़ता है,
मालिक बनना इसलिए भी हमें मुश्किल लगता है क्योकि मालिक बनने से पहले इसके लायक बनना पड़ता है, अपनी कई इच्छाओ को मारना पड़ता है,रोज छोटी छोटी ख्वाहिशो को मारना पड़ता है जो की छोटी बात नहीं इसलिए हम अपने खुद के मालिक बनने की बजाय दूसरे का गुलाम बनना पसंद करते है,
नौकरी करना कोई बुरी बात नहीं,जीविका का कोई भी साधन जो इज्जत से कमाया जाए गलत नही, यहां बात है खुद के काबिलियत के उपयोग की,हम अपनी काबिलियत को खुद के लिए उपयोग करके उससे कंही हासिल कर सकते है जितना हम अपनी काबिलियात को दूसरों के लिए उपयोग करके हासिल करते है, लेकिन इसमें वक्त लगता है और वक्त किसी के पास नहीं है, हर कोई 2 मिनट मैग्गी की तरह हों गया है जिसे इंस्टेंट रिजल्ट चाहिए,
धैर्य रखिये,अपने रास्तो का चुनाव करने से पहले अपने विवेक का उपयोग कीजिये,संघर्ष की राह आरम्भ में मुश्किल जरूर होती है लेकिन बाद में जिंदगी आसान कर देती है और इसका उलटा भी इतना ही सही है,
जो हंस रहा है उसी ने दर्द पाला होगा,
जो चलता रहा है उसी के पाँव में छाला होगा,
एक बार जल के देख जीवन में सूरज की तरह
तेरी भी शोहरत होगी तेरे पीछे भी उजाला होगा
No comments:
Post a Comment
आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,