Thursday, 16 February 2017

तुझे चाँद कैसे कह दू...


हर कोई अपने प्रिय को एक प्यारा सा नाम देने की कोशिश करता है एक संबोधन जिसको सुन के मन में प्यार उमड़े, प्यार महसूस हो, मैंने भी ऐसे कुछ नाम सोचे और फिर कुछ सोच कर नहीं रखे, ऐसी ही कश्मकश को लेकर मेरी एक कविता समर्पित है मेरी पत्नी को,

तुझे चाँद कैसे कह दू,उसमे तो दाग है,
तुझे सूरज कैसे कह दू, उसमे तो आग है,

तुझे गुलाब कैसे कह दू उसको तो मुरझा जाना है एक दिन,
तुझको बहार कैसे कह दू उसको भी चले जाना है एक दिन

तुझे सितारा कैसे कह दू जो टिमटिमाता रहता है,
तुझे सावन कैसे कह दू जो सिर्फ एक महीने के लिए आता है,

तुझे दिल कैसे कह दू कोई भी पल भर में तोड़ जाता है
तुझे मेरा साया कैसे कह दू जो अंधेरे में साथ छोड़ जाता है,

तू मेरा दिल है, धड़कन है,आँखों में बसी तस्वीर है,
खुदा की मेहरबानी है कि तू मेरी तक़दीर है,

तू मेरी ख़ुशी है, तू मेरी मुस्कान है,
तेरे बिन अधूरे मेरे दिल के अरमान है,

तू जिंदगी,तू बंदगी,तू प्यार है,हमराज है,
ए हमसफ़र,तू हर ख़ुश,हर गम में मेरे साथ है,

तुझे किसी नाम से पुकारु ये सोचता रहता हूं,
तुझे क्या कह के निखारु ये सोचता रहता हूं,

तुम्हे ऐसा नाम दू की हर घड़ी साथ मेरा निभाओगे,
आओ तुम्हारा नाम *जिंदगी* रख दू,मौत से पहले तो न छूट पाओगे,

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