Saturday, 30 January 2016

कभी बहरे भी बनिए...

कुछ दिनों पहले एयरलिफ्ट मूवी देखि,बहुत ही शानदार मूवी है एक अच्छा देशभक्ति का सन्देश देती है की आप देश को भूल जाते है देश आपको कभी नहीं भूलता,

इस फ़िल्म में एक किरकार है mr जॉर्ज का, ये वो किरदार है जो हमेशा असंतुस्ट है,उसे हमेशा और हर चीज से तकलीफ है,उसे हमेशा ये लगता है की उसके साथ नाइन्साफी हो रही है,हर चीज में नुक्स निकालने की आदत है,हर चीज में नियम और कानून है,उसे लोगो की गलतियां ढूढ़ने की आदत है,आलोचना करने की आदत है,मगर उसकी हर आलोचना को उनदेखा कर रणजीत कात्याल(अक्षय कुमार)अपना काम करता है और अंततः सफल होता है 170000 हिन्दुस्तानियो को बचाने में,

ये mr जॉर्ज का जो किरदार है ये आपको अपनी असल जिंदगी में हर जगह बहुत मिलेंगे,अपने घर परिवार में,किसी भी संस्था में,नगर में, जिनका काम सिर्फ नकारत्मक बाते करना है,वो ये तो बखूबी बताते है की क्या गलत हो रहा है मगर उसकी सही करने की हिनम्मत नहीं जुटाते, इनको ये इस से फर्क नहीं पड़ता की आप सही है या गलत ये सिर्फ आपके विरोध में है,सिर्फ आलोचना इनका मकसद है,
अगर आप इनकी आलोचना को ध्यान न दे और अपने काम में लगे रहे तो आप भी रंजीत कात्याल बन सकते,

अब आप ये निर्णय कीजिये,
अपने अंदर के mr जॉर्ज को मारिये रंजीत कात्याल बनिए,

सभी नकारात्मक चीजो के लिए बहरे बन जाइए,

सफलता आपके कदम चूम लेंगे,

इसी तरह के
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क्या आप अपने बच्चों की सफलता की कीमत जानते है

सफलता की कीमत,

सफल होना कोई आसान बात नहीं है,ये एक साधना है जिसे साधने के लिए बहुत कुछ त्यागना पड़ता है,बिना कुछ खोये कुछ  नहीं मिलता ,हर सफलता की एक कीमत होती है,

आप अपने बच्चे का भविष्य,उनकी आदते,उनका करियर खुद बनाते है,बच्चों की सफलता या असफलता की  जिम्मेदारी अक्सर माँ बाप की होती है, मगर बच्चों की सफलता के मायने क्या है, उसका माप दंड क्या है??, क्या स्कूल में पढ़ लिख कर फर्स्ट आना सफलता है,इस के लिए सब कुछ त्याग देना सफलता है,
सबकी अपनी अपनी जिंदगी है अपने अपने अपने मायने है,
मैं ये पसंद करूँगा की एक दिन स्कूल में कम उपस्थित रह कर मेरा बच्चा स्कुल  में 1%मार्क कम ले आये मगर उस दिन अगर कोई फॅमिली पिकनिक हो तो उसे अटेंड जरूर करे,आज हम बच्चों को पढने के मशीन बना रहे है उनमे भावनाए भरना भूल जाते है,खुद महसूस कर के देखिये की आज आप को अपने स्कुल की अपनी मार्कशीट उतना मजा नहीं देती जितना परिवार या दोस्तों के साथ बिताये हुए पिकनिक या साथ के पल की यादे मजा देती है,

अपने बच्चों को जुझारू बनाना, उन्हें पढने के लिए प्रेरित करना बहुत अच्छी बात है मगर इसके लिए आप उनसे क्या कीमत ले रहे है ये बहुत मायने रखता है,पारिवारिक मूल्य, संपर्क,सामाजिकता,और उनके स्वास्थ्य की कीमत पर ये सफलता बहुत महगी है,

एक बहुत ही बारीक लकीर है सफलता और ख़ुशी के बिच,आप किस तरफ खड़े है ये खुद निर्णय कीजिये,

सही सफलता बहुत कुछ एक चम्मच दौड़ की तरह है ,स्कुल में जिस तरह  हमें चम्मच दौड़ में मुह में चम्मच रख कर इसमें एक कंचा रखा कर दौड़ना  होता था,और एक लकीर पार करनी होती थी,अगर हम लकीर पार कर भी लेते मगर चम्मच से कंचा गिर जता तो हम जित कर भी हारे हुए माने जाते थे,
उसी तरह अगर आपके बच्चे सफलता को पारिवारिक मूल्यों,और सामाजिकता को ताक में रख कर स्कुल में फर्स्ट आ जाते है तो मेरे हिसाब से ये आप जित कर हार गए,

आपकी बेटी अपनी बीमार माँ को बुखार में तड़पता छोड़ कर अगर 1 दिन स्कूल अटेंड कर भी लेती है तो क्या उसका पढाई के प्रति ये समर्पण आपको बहुत पसंद आएगा,
हम कोई प्रोग्राम किये हुए कम्प्यूटर नहीं हाड़-मांस से बने हुए इंसान है जो करंट से नहीं भावनाओ से संचलित होते है,

सफलता की कीमत भावनाशून्य  या भवनाविहीन होना मेरे लिए तो महंगा है,

खैर सही और गलत तो सिर्फ गणित में होता है,हर इंसान अपने हिसाब से सही ही है,
मैं अपनी भावना लिख रहा हु,क्या पता शायद मैं ही गलत हु,

मैंने ये निर्णय लिया है की मैं अपने बच्चे को एक सफल नहीं एक काबिल इंसान बनाना चाहता हु,मैं चाहता हु की वो एक पारिपारिक मूल्यों का पालन करने वाला,सामजिक,जीवन के हर क्षेत्र में परिस्थितियों का मुकाबला करने वाला,और कभी न हारने वाला इंसान बने चाहे इस के लिए उसके मार्क्स 5 % कम क्यों न हो जाए,

हो सकते है मेरी बाते थोड़ी अप्राकृतिक और भारी लगे,कागजी लगे मगर मेरी फिलहाल यही सोच है और कल किसने देखा है???

क्या पता शायद मेरी ये मेरी भूल हो,
मगर एक बार मेरी सोच से सोच कर जरूर  देखिये,...

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Wednesday, 27 January 2016

चलो आज खुश रहा जाए

आज घर में एक नल टूट गया था,मैंने उसकी जगह एक नया नल लगवा दिया,

थोड़ी देर बाद मेरे 2 साल के बच्चे की नजर उस पर पडी तो वो 'नया नल' नया नल कर के खुश हो कर नाचने लगा, उसको पता है की कोई नयी चीज आना ख़ुशी  की बात है,
उसको खुसी से नाचते देख मेरे मन में एक सोच आई,
की खुस होने के लिए कोई बहुत बडी वजह नहीं चाहिए,
और शायद खुस रहने के लिए वजह ही नहीं चाहिए ,आप हमेशा खुस रह सकते है बस थोड़ा सा नजरिया और सोच बदलने की देर है,
और यु बिना वजह खुश रहने का मजा ही कुछ और है,
अभी कुछ महीने पहले मैंने नयी कार ली थी मगर तब भी मैं इतना खुस नहीं हुआ था जितना खुश मेरा 2 साल का बेटा उस नए नल को देख कर हुआ था,

खुशिया किसी बड़ी वजह की मोहताज नहीं है,बस आपकी सोच बदलते ही आप खुश रहने लगते है,

आपको ये तो नहीं पता की आपकी जिदगी में कितने पल है मगर आप ये तो निर्धारित कर सकते है की आपके हर पल में कितनी जिंदगी रहेगी

खुश रहिये ...
हमेशा...
कभी छोटी सी वजह से..
कभी बिना वजह से

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Thursday, 21 January 2016

मंच आयोजन संबंधी प्रोटोकोल और अपचारिक्ता

मंच से जुड़े सभी युवाओ की जानकारी के लिए एक लेख प्रस्तुत है,
हम सब मंच से जुड़े है और लागातार कार्यक्रम करते है इसमें स्टेज के कार्यक्रम भी होते है,और अतिथि भी आते रहते है,ऐसे में ये लेख आपको मंच संबंधी प्रोटोकोल और ओपचारिक्ताये समझाने के लिए लिखा गया है,

स्टैज हमेशा एक विशिष्ट उचाई के साथ अपेक्षित भीड़ को ध्यान में रख कर बनाया जाये, साधारणतः 2 फ़ीट की ऊंचाई  आदर्श है,अगर भीड़ ज्यादा होने की संभावना है तो दूर वाले दर्शको इसे आसानी से देख सके इसलिए इसकी ऊंचाई सुविधानुसार बधाई जा सकती है,

स्टेज हमेशा आयताकार होना होना चाहिए,

स्टेज में कुर्सियो,सामने मेज,के बिच और आगे पीछे एक अच्छा गेप होना चाहिए ताकि आने जाने में सुविधा हो,

मंच संचालक की कुर्सी सभी कुर्सियो से अलग स्टेज के किनारे लगाईं जाती है

साधारणतःस्टेज में कुर्सिया ओड संख्या में लगाईं जाती है जैसे 5,7, इत्यादि,

स्टेज में किसी भी संस्था के शाखा अध्यक्ष,सचिव,कार्यक्रम संयोजक, कोई प्रान्त,राष्ट्र के पदाधिकारी,विशिष्ट अतिथि और सबसे अंतिम में मुख्य अतिथि को मंचासीन करने के लिए आमन्त्रित किया जाता है,

मुख्य अतिथि को सबके बिच में बैठाया जाता है,

और उनका सम्मानं पुष्प गुच्छ/बेच/शाल इत्यादि ठीक इसके उलटे क्रम में किया जाता है,मतलब पहले मुख्य अतिथि,विशिष्ट अतिथि इत्यादि...

कार्यक्रम का प्रारम्भ दीप प्रवल्लित कर,भगवान की आराधना कर किया जाना चाहिए,

भाषण  मंचासीन कराने के  क्रम में कराया जता है ,सबसे अंतिम में मुख्य अतिथि का भासन होता है,

कोई भी पुरूस्कार,/पारितोषक भासन के बाद दिया जाता है,

सारे कार्यक्रमों के बाद एक आभार प्रदर्शन किया जाना चाहिए(साधारणतः सचिव के द्वारा)

कार्यक्रम की समाप्ति राष्ट गान में साथ की जानी चाहिए,

प्रोटिकल और औपचारिकता के साथ किये गए आयोजन आपकी गरिमा बढ़ाते है,

सुविधा और जरूरत के अनुसार इनमे आवस्यक परिवर्तन किया जा सकता है,

मंचहित में  युवाओ के ज्ञानवर्धन  के लिए जारी

विकाश खेमका
उपाध्यक्ष
कांटाबांजी शाखा,