Tuesday, 18 August 2015

दृश्यम

कल "दृश्यम " फ़िल्म देखि,
फ़िल्म का  कॉन्सेप्ट है इनसान का मनोविज्ञान है की  देखि हुई  मेमोरी सबसे मजबूत होती है और ये सब मेमोरी पर भारी होती है,
हम बाकी इंद्रिया जैसे कान,नाक, स्पर्श,इत्यादि की याददास्त सीमित होती है, इन सब के मुकाबले देखि हुई चीजे बहुत लंबे समय तक याद  तरही है, उदाहरण के तौर पर हमें पढ़ी हुई चीजे बहुत दिनों तक याद रहती है क्योकि इस में हमें उस चीज को देख कर पढते है, टीवी का ऐड रेडियो के ऐड से 10 गुना महंगा होता है क्योकि देखि हुई यादो को अनदेखा करना बहुत मुश्किल होता है,

कहने का मतलब ये है की हम या हमारा स्वाभाव ,हमारी आदते बहुत कुछ इस पर निर्भर करती है की हम रोज क्या देखते है,

यही सोच अपने बच्चों पर लागु कर के देखिये,
आज हर किसी को ये शिकायत है की उनका बच्चा लापरवाह है,गैर जिम्मेदार है,आलासि है, स्वार्थी है,झूठ बोलता है या कुछ न कुंछ थोड़ी हो या ज्यादा शिकायत सब से है,

हम तो रोज अपने बच्चों को अच्छी  शिक्षा देते है  की अच्छे इंसान बनो,अच्छे काम करो, झूठ मत बोलो, तो फिर वो ये सब कहा से सिख रहे है,

बाल मन एक कोरा पन्ना होता है ये वही सीखता है जो वो देखता  है,अपने बच्चों के सामने हम खुद झूठ बोलकर हम उन को हम खुद झूठ बोलना सिखाते है,
उनके समाने अपने कर्तव्यों से भागकर हम खुद उन्हें गैर जिम्मेदार बनाते है,उनके सामने दुसरो की बुराई कर के उनको बुराई करना सिखाते है,

अनजाने में ही हमारी कथनी और करनी में इतना फर्क है की बच्चा वो ही सीखता है जो वो देखता है वो नहीं जो हम कहते है,

कोशिश कीजिये की ये विरोधभास बच्चों के सामने न हो,बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए  उन्हें एक अच्छी सिख देने के बजाय एक अच्छा उदाहरण बन कर देखिये,

शायद अपने बच्चों से आपकी शिकायते कुछ कम हो जाये...

मेरी और भी विषयो पर मेरे विचार पढ़ने के लिए लोग इन करे http://vikashkhemka.blogspot.com
धनयवाद,
विकाश खेमका,
उपाध्यक्ष
मारवाड़ी युवा मंच,कांटाबांजी

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