वही सीमेंट, वही रेत, उसी पानी से तैयार हो गई,
जिससे पुल बना करते थे उसी से आज खड़ी दिवार हो गई,
बीमार माँ को घर पर छोड़ आया वो अकेला,
माताँ रानी के मंदिर के सामने कतार हो गयी,
भूख से तड़पता वो बच्चा कब का मर गया,
उसकी तस्वीर आज कल रौनक-ए-अख़बार हो गई,
उसके सिगरेट के धुएं ने न जाने कितनों को मारा होगा,
उसके मालिक ने केन्सर हॉस्पिटल बनाया तो जय जयकार हो गई,
बड़े शौक से उसने पंडित जिमाये श्राद्ध में बहुत
उसके माँ बाप की जिंदगी वृद्धाश्रम में खाकसार हो गई,
आज उनके बच्चो को कान्वेंट स्कूल में देखता हूं
जिनके जिहाद के कारण जन्नत आज उजड़ा बाजार हो गई,
खबर सुनी की एक कन्या भ्रूण को फिर से कुत्ता चबा गया,
दोष कुत्ते का नहीं ये तो इंसानियत शर्मशार हो गयी,
कभी जात पात कभी नोंट, कभी अपनी सुविधा को देख कर वोट दिया जिन्होंने,
आज वही कहते की राजनीति आजकल बेकार हो गई,
कोई बात नहीं एक और सुकून ए जिंदगी मांगेंगे खुदा से
ये जिंदगी तो आपसी झगड़ो में ही बलिहार हो गई,
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