औरत को आईने में यूं उलझा दिया गया,
*बखान करके हुस्न का बहला दिया गया*
ना हक दिया ज़मीन का न घर कहीं दिया,
*गृहस्वामिनी के नाम का रुतबा दिया गया*
छूती रही जब पांव परमेश्वर पति को कह,
*फिर कैसे इनको घर की गृहलक्ष्मी बना दिया*
चलती रहे चक्की और जलता रहे चूल्हा,
*बस इसलिए औरत को अन्नपूर्णा बना दिया*
न बराबर का हक मिले न चूँ ही कर सकें,
*इसलिए इनको पूज्य देवी दुर्गा बना दिया*
यह डॉक्टर इंजीनियर सैनिक भी हो गईं,
*पर घर के चूल्हों ने उसे औरत बना दिया*
चाँदी सोने की हथकड़ी, नकेल, बेड़ियां,
*कंगन, पांजेब, नथनियां जेवर बना दिया*
व्यभिचार लार आदमी जब रोक ना सका,
*शृंगार, साज, वस्त्र पर तोहमत लगा दिया*
खुद नंग धड़ंग आदमी घूमता है रात दिन,
*औरत की टांग क्या दिखी नंगा बता दिया*
नारी ने जो ललकारा इस दानव प्रवृत्ति को,
*जिह्वा निकाल रक्त प्रिय काली बना दिया*
नौ माह खून सींच के बचपन जवां किया,
*बेटों को नाम बाप का चिपका दिया गया*
💐👸💃 📚🙏
No comments:
Post a Comment
आपके अमूल्य राय के लिए धन्यवाद,