Wednesday, 14 September 2016

मुहब्बत सी सियासत

आज  हिंदी दिवस के अवसर पर मैंने एक कविता लिखी जो मुझे लगा की शायद बहुत अच्छी लिखी गई है,एक बार पूरी अवश्य पढ़े, आप सभी की प्रतिक्रया अवश्य चाहूंगा

मैंने कोशिश की है दिल की दुनिया और हकीकत की जिंदगी को जोड़नेकी,

" मुहब्बत सी सियासत"

अपनी मुहब्बत का ये क्या हाल बना रखा है,
इसे भी तुमने सियासत का बाजार बना रखा है,

न् कोई छत, न कोई दिवार, बस तुम्हारे  यादो की शामियानों में सिमटा है,
बस वक्त बेवक्त किसी मुद्दों के बहाने याद करते हो,
तूने मेरे दिल को राम लला का विहार बना रखा है,

कभी तुम खरे न् उतरे फिर भी तुम पर पूरा अख्तियार है
लेकिन बस रसूखदार और कामयाब ही तुम्हारे यार है
तुमने अपने आप को  देश की सरकार बना रखा है,

कुछ दिन अमन से गुजरे ,फिर दंगे से बरबाद हो गए,
जन्नत से मेरे दिल में जहन्नुम से हालात हो गए,
तुमने मेरे दिल को कश्मीर का बाजार बना रखा है,

बस आश्वाशनो का झूठा पुलाव देते हो,
नजर तब आते हो जब चुनाव होते हो
तुमने मुहब्बत को कोई नेता रसूखदार बना रखा है,

हर बात के अपने मायने निकालना,हर मसले को बढ़ा देना
सिर्फ अपनी कुछ खुसी की खतिर कई सच की बलि चढ़ा देना,
तुमने ये बिलकुल मीडिया का व्यपार बना रखा है,

मेरे आम दिल के लिए तुम्हारे पास वक्त नहीं,
किसी ख़ास के लिए कभी तुम होते सख्त नहीं,
तुमने ये बिलकुल पुलिसिया अत्याचार बना रखा है

मुझ से ही शुरू की थी तुमने अपनी दुनिया कभी,
कभी खुद को बयां करते थे मेरे सहारे
कुछ मुझे अपनों ने सहारा न् दिया,कुछ गैर तुम्हे लगने लगे प्यारे,

कभी मैं हर वक्त तेरी जुबान पर था ,
कभी फक्र महासुस करते थे मेरे साथ पर
अब मैं एक गुजरा हुआ वक्त सा हो गया हूं तुम्हारे लिये
मेरी हालात को तुमने " हिंदी" सा शर्मसार बना रखा है,

मुहब्बत को भी सियासत का बाजार बना रखा है,

Tuesday, 6 September 2016

आज कल

# मेरे जैसे कुछ सोशल मीडिया एडिक्टेड व्यक्तियों को समर्पित

कितनी बढ रही है लोगो में खुश् दिखने की चाहते,
फेसबुक पर हर चेहरा हँसता हुआ दिखता है आजकल,

हर तरफ सिर्फ सेल्फीया उपलोड हो रही खुद  की,
इतने अकेले हो गए है कि कोई फोटो खिचने वाला भी नहीं बचा आजकल,

हर किसी की फ़्रेंडलिस्ट में 1000 से ज्यादा दोस्त है,
मगर किसी से दिल की बात कह सके ऐसे कोई दोस्त नहीं आजकल,

क्या हों रहा है जमाने में सब कुछ ट्विटर बता देता है,
पड़ोस में क्या हो रहा है बस पता नहीं चलता आजकल,

कागज कलम को अपनी बेबसी पर रोते हुए देखा,
उंगीलिया बस मोबाइल पर सरकती है आजकल,

उंगीलिया माग करने लगी है ओवरटाइम की,
जुबान पर तो मंदी की मार सी है आजकल,

रोटी कपड़ा और मकान की चाहत अब oldfashion हो गई,
फ्री वाईफाई का मुद्दा ही इलक्शन जीता देता है आजकल,

बच्चो के खिलोने कब मोबाइल में तब्दील हो गई,
वो बचपन की भागदौड़ मोबाइल में ही सिमट गई आजकल,

नशे की लत को दिखाने " उड़ता पंजाब " बना दी,
यहाँ तो पूरी दुनिया इस लत का शिकार है आजकल,

किसी ने दिल बहलाने को बनाया था इस सोशल मीडिया को,
हम तो जिंदगी बहला रहे है इस पर आजकल,